गुरुवार, 26 नवंबर 2009

वाह ओबामा, शेम चिदंबरम

अमेरिका की यात्रा पर गए भारतीय प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह को दिए रात्रिभोज के अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने स्वागत भाषण की शुरुआत हिन्दी में करके भारतीयों का दिल जीतने का सुनहरा मौक़ा झपट लिया। यह उनकी कूटनीतिक व राजनैतिक सूझबूझ का परिचायक था। इसके लिए वे सराहना के पात्र हैं।
इधर हमारे देश के प्रधानमंत्री अपनी राष्ट्रभाषा का नाम तक लेना ही भूल गए। विदेश में जाकर देश की भाषा बोलने में शर्म महसूस करने वाले वे कोई पहले पहले भारतीय शासनाध्यक्ष नहीं हैं। उनसे पहले भी कुछेक को छोड़कर सभी ने अपनी भाषाई गुलामी का परिचय देने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा। वैसे भी स्वदेश में वे कौनसे अपनी राजभाषा का उपयोग करते हैं। कुछेक अवसरों को छोड़ दें तो वे अपने देश की भाषा को हीन दृष्टि से देखते हैं। यहां तो देश के गृहमंत्री तक हिन्दी दिवस का संदेश भी केवल अंग्रेजी में पढ़कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। गत १४ सितम्बर को देश के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने यही तो किया हिन्दी में सराहनीय कार्य करने के उपलक्ष्य में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में। क्या राजभाषा विभाग लागू करवा पाएगा ऐसे ऊलजलूल गृहमंत्री के नेतृत्व में राजभाषा, जो ख़ुद हिन्दी दिवस के अवसर पर दिए जाने वाले अपने भाषण का केवल अंग्रेजी रूप पढ़कर चलते बने। इससे तो मुझे पंजाबी में ट्रकों के पीछे लिखी ये उक्ति याद आती है: चल नी राणिये,तेरा रब राखा।
(मेरा अन्य ब्लॉग: parat dar parat )

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