परमात्मा का लाख लाख शुक्र है कि परसों की दुर्घटना में हम पति पत्नी मरते मरते बचे। इस बचाव में न जाने किस का लिया दिया आगे आया और हैम आज इस दुनिया में हैं। वरना तो आज बस हमारी यादें ही बाकी रहती । इस अवसर पर सभी सहयोग करने वालों का हम हार्दिक धन्यवाद करते हैं और उन सबकी सर्वभावेन प्रसन्नताओं के लिए हृदय से कामना करते हैं। हमारे पूरे परिवार व रिश्तेदारों के भी हम कृतज्ञ हैं।
मंगलवार, 17 दिसंबर 2013
शुक्रवार, 2 अगस्त 2013
गुरुवार, 30 मई 2013
सोमवार, 27 मई 2013
छत्तीसगढ़ का कतले आम
छत्तीसगढ़ में परिवर्तन रैली से लौट रहे कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर नकली हमले ने पूरे देश के शासनतंत्र को हिलाकर रख दिया है। यह सीधा सीधा देश के लोकतंत्र पर हमला है। इसकी कड़ी से कद्दी निंदा की जानी चाहिए। अब वे तथाकथित मानवतावादी चुप क्यों हैं जो नक्सलवादी नाके मारे जाने पर मानवाधिकार की बात जोर शोर से उठाते हैं और प्रजातंत्र को खामियों से भरा हुआ मानते हैं तथा नक्सलवादियों को गुमराह नौजवान बताकर उनसे बातचीत के जरिये कोइ हल निकालने की बात करते हैं।
रविवार, 19 मई 2013
मुझे मैं नहीं वो दिखता है
यह एक प्रचलन सा हो गया है कि भ्रष्टाचार को बढाने में सरकारी तंत्र व राजनेताओं को दोषी ठहराया जाता है। मेरे विचार से इस हमाम में हम सभी वस्त्रविहीन हैं और सिर्फ अपने सामने वाले को नंगा कहकर यह भूल जात़े हैं कि दूसरों की ऊंगलियां हमारी और उठ रही हैं।
मेरे अन्य ब्लोग हैं parat dar parat
गुरुवार, 4 अप्रैल 2013
बुधवार, 6 मार्च 2013
injustice to the unemployed
बेरोजगारों से होता अन्याय
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि देश में लाखों बेरोजगारों को काम की तलाश है और देश को मानव शक्ति की निहायत जरुरत है। तिस पर भी न तो बेरोजगारों को रोजगार मिल पा रहा है और न ही देश को उपयुक्त मानवशक्ति। जो थोड़े बहुत रोजगार पा जाते हैं उनमें से अधिकतर सिफारिश या पैसा अथवा दोनों के सहारे इस काम को अंजाम देते पाए गए हैं। बाकी बचे बेरोजगारों को कुछ स्वार्थी व जालसाज लोग एक सुनियोजित तरीके से लूटने का षड्यंत्र रच लेते है। वे कभी प्राइवेट कम्पनी बनाकर तो कभी सरकारी एजेंसी से मिलते जुलते नाम से फर्जी कम्पनी बनाकर लाखों और कभी कभी तो करोड़ों रूपए ठग लेते हैं। न जाने कबतक चलता रहेगा यह सब?
रविवार, 10 फ़रवरी 2013
देश और मानवता के दुश्मनों को सजा सही है।
अफज़ल गुरु को आखिर उसके किए की सजा मिल ही गयी। देश की संसद को बंधक बनाने की आतंकवादी मंशा को अंजाम दी जाने को रोकते हुए अपनी जान पर खेल जाने वाले शहीदों की शहादत को मान मिल गया। देश के दुश्मनों के साथ इसी तरह सलूक किया जाना निहायत जरूरी है क्योंकि ये देश के ही नहीं मानवता के भी दुश्मन होते हैं। इस पर किन्तु परन्तु अथवा राजनीति करने की कोइ भी कोशिश अथवा मानव अधिकार का वास्ता बेमानी है। मानवाधिकार की बात सभी पर व सदा ही लागू होती हैं, केवल आतंकवादियों को सजा देने के वक्त ही नहीं।
शनिवार, 19 जनवरी 2013
rising and setting sun
लोग चढ़ते सूरज को ही अर्ध्य देते हैं
यह कोई नई बात तो नहीं है, लेकिन इसे नजरअंदाज कर पाना भी संभव नहीं है। चढ़ते सूरज को सलाम किया जाता है। उसकी स्तुति की जाती है,पूजा अर्चना की जाती है। सूरज ढलने लगता है तो दुनिया उसे छोड़ चांद के दर्शन करने के लिए इंतजार करने लगती है। सूरज उपेक्षित व असहाय अनुभव करते हुए अस्ताचल को चला जाता है- यह सोचते हुए कि मैं भी कभी पूजित था और दिया जाता था मुझे भी अर्ध्य लोगों द्वारा। कल फिर जब मैं उदित होऊंगा तो वही क्रम दोहराया जाएगा और ऐसा युगों से होता आ रहा है और न जाने कब तक यूँ ही चलता रहेगा।
मेरे अन्य ब्लॉग हैं : parat dar parat & tau molad
बुधवार, 16 जनवरी 2013
decision or......
यह फैसला यों ही करना था तो?
हरियाणा की राजनीति वैसे तो आया राम गया राम का दंश शुरू से ही झेलती आ रही है, किन्तु वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा ने तो इसे महिमामंडित करने वाला फैसला देकर और भी किरकिरी करा दी है। वैसे शुऱू से ही लग रहा था कि हजकां की टिकट पर निर्वाचित जिन पांच विधायकों ने जनता व अपनी पार्टी के साथ धोखा करते हुए वर्तमान सरकार बनाने में जो भूमिका निभाई थी उसका प्रतिफल देने में हुडा के नेतृत्व में चल रही सरकार की पूरी मशीनरी एडी चोटी का जोर लगा देगी। इसी कारण विधान सभा के अध्यक्ष को बदला गया और अपने अधिक विश्वस्त को यह कुर्सी सौंपी गई,ताकि सभी दाँव पेच लड़ाकर इन पांचों को उपकृत किया जा सके। वैसे पहले विधानसभा अध्यक्ष ने भी मामले को लटकाकर रखने में कोई कमी नहीं छोडी थी। तभी तो उनको मंत्रिपद से नवाजा गया था ताकि आने वाला फैसला लेने में इस मेहरबानी को ध्यान में रखे। वैसे स्वर्गीय पंडित चिरंजीलाल जैसे जुझारू व स्वाभिमानी नेता के सुत से जनता को इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी।सीधी सी बात को कानून की चासनी में लपेटने की यह तरकीब पूरी तरह अनैतिक व जनविरोधी है। इसे मानना ही पड़ेगा। अध्यक्ष से निजी अथवा अपनी पार्टी के ही हितों के पक्ष में फैसला देने की अपेक्षा कोई नहीं करता होगा, पर यह फैसला दिया गया और वो भी न्यायालय के सख्त आदेशों के बाद वरना शायद पूरा कार्यकाल समाप्त होने तक इसे लटकाया भी जाता, ऐसी संभावना को नकारा नहीं जा सकता। यहां एक बात सीधी सी है कि अगर यही फैसला देना था तो इतना समय,धन बर्बाद करने की जरूरत नहीं थी। जनता अब इतनी भोली नहीम रह गई है की जिन्दा मक्खी को खा जाए।मेरे अन्य ब्लॉग हैं : parat dar parat & tau molad(haryanvi)
सदस्यता लें
संदेश (Atom)