गुरुवार, 12 नवंबर 2009

निर्दलियों,दलबदलुओं रूपी बैसाखियों के सहारे

हरियाणा में स्पष्ट जनादेश के अभाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी कांग्रेस का सत्तामोह उसे नैतिक अनैतिक की लक्ष्मणरेखा को लांघने के लिए उकसा कर छह निर्दलियों व एकमात्र बसपा विधायक के समर्थन से सत्तासीन कराने में सफल रहा। इतने से ही उसे चैन नहीं मिला और नैतिकता पर चलने का ढोल पीटने वाली इस पार्टी के कर्ताधर्ताओं ने हजकां के पांच नवनिर्वाचित विधायकों को भी किस लालच से अपनी पार्टी में शामिल कर लिया इसे तो वे ही जानें, पर यह तो एक करेला और दूसरा नीमा चढ़ा वाली कहावत को ही चरितार्थ करता नजर आया। इसके समर्थन में सम्मिलित कराने वाले व सम्मिलित होने वाले अपने तर्क दे रहे हैं। पर ये किसी के गले उतरने वाले नहीं लगते। कांग्रेस ने इस कुकृत्य से एक तीर से दो शिकार करने का काम किया है। एक तो इससे सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलियों पर नकेल कसी जाएगी तथा दूसरे कुलदीप बिशनोई व भजन लाल को यह भी संदेश दे दिया की उनकी पीएचडी की डिग्री को मात देने के लिए वे किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।इससे एक निशाना और भी साधा गया लगता है कि निर्दलियों व हजकांईयों की सत्ता लालसा को शमित करने के लिए उन्हें मंत्री या संसदीय सचिव आदि काम-बेकाम के पदों से नवाजने से खफा अपने विधायकों की भलाई भी अब चुप रहने में ही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें