गुरुवार, 26 मई 2011

स्वामी अग्निवेश का बडबोलापन

सन्यासी से आर्य समाज के प्रधान बनकर राजनीति में पैर रखने की कोशिश में स्वामी इन्द्रवेश व अग्निवेश हरियाणा में ऐसे युवा सन्यासियों के रूप में उभरे जो समाज को कुछ देने की आकांक्षा रखते थे। समय के साथ-साथ उनके सफर ने कई मोड़ लिए और स्वामी अग्निवेश बंधुआ मुक्ति आन्दोलन के अगुआ बनकर देश में कार्य करने लगे। कई बार नक्सलियों से सहानुभूति रखने के कारण उनको आलोचना झेलनी पडी। इसी तरह कई बार विवादित रहते हुए उनकी ताजा विवादित जबान तब हुई जब उन्होंने कश्मीर के नरमपंथी अलगाववादी नेता के साथ मुलाकात में अमरनाथ यात्रा को ढकोसला और धोखा आदि शब्दों का प्रयोग करके करोड़ों की आस्था को ठेस पहुंचाई। बेशक वे एक अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता हैं और इस नाते उनका सम्मान भी किया जाता है। लेकिन इस कारण उन्हें किसी की भी भावना से खिलवाड़ करने का अधिकार तो कदापि नहीं मिल जाता है। उन जैसी शख्सियत को यह शोभा भी नहीं देता है। उनकी तीखी आलोचना बेवजह नहीं है। उन्हें बोलने से पहले अपनी बात को तोल लेना चाहिए।

मंगलवार, 24 मई 2011

अधिग्रहण उपजाऊ जमीन का नहीं बेकार की जमीन का हो

हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हूडा ने उत्तर प्रदेश के किसानों को उनकी अधिग्रहीत भूमि का उचित मुआवजा न देने के कारण पिछले दिनों वहां की सरकार को काफी खरी खोटी सुनाई थी। अब उसी तरह के आन्दोलन पर चल रहे हरियाणा के अम्बाला व सोनीपत तथा सिरसा जिलों के लोगों ने संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। सरकार की ओर से उनसे किस तरह से निपटा जाता है यह तो वक्त ही बता पाएगा, लेकिन औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत की कहावत को चरितार्थ करते हुए इस किसान पुत्र ने क्या अबतक यह भी नहीं तय किया था कि अधिग्रहीत उपजाऊ जमीन का मुआवजा भी तो भरपूर दिया जाना चाहिए था। उद्योगों के लिए जमीन के अधिग्रहण को सही बताने वाले मुख्यमंत्री को यह तो पता होगा ही कि उपजाऊ जमीन पर उद्योग स्थापित करके वे राज्य को दोहरा नुकसान पहुँचाने पर क्यों तुले हैं। यह सही है कि उद्योग देश की अर्थव्यवस्था की जान होते हैं; लेकिन इनके लिए बंजर पडी जमीन की ओर भी तो ध्यान दिया जा सकता है।। इससे बेकार पडी जमीन का उपयोग भी हो जाएगा और उपजाऊ जमीन पर पेट भरने के लिए अन्न भी मिलता रहेगा। उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण करके क्या सरकार अंडे खाने को बढ़ावा देना चाहती है? अथवा बढ़ती जनसंख्या के उदर को भरने का कुछ और विकल्प ढूंढ लिया है तो उसे स्पष्ट करे।

सोमवार, 23 मई 2011

गिरता भूजल स्तर और सम्बंधित समस्याएँ

आजकल पानी की कमी चाहे उतनी गंभीर नहीं है जितनी कि भयावह यह हो सकती है, लेकिन उस ओर हम तेजी से बढते जा रहे हैं। यदि समय रहते हम नहीं संभले तो उस भयावह स्थिति के आने में देर नहीं। धरती के अन्दर के पानी के अनाप-शनाप दोहन के कारण भूजल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है और कई नलकूप व हाथ के नलके सूख गए हैं। आजकल सबमर्सीबल पम्पों के प्रचलन ने पानी के व्यर्थ बहने की मात्रा कई गुना बढ़ा दी है। विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन व पानी के अंधाधुंध दोहन के चलते अगले दशक में भारत के ६०% ब्लाक सूखे की चपेट में होंगे और तब फसलों की सिंचाई की बात तो भूल जाईए पीने के लिए भी पानी की मारामारी शुरू हो जाएगी। इस समय भी देश के ५७२३ ब्लोकों में से १८२० ब्लोकों में जलस्तर खतरनाक हदें पर कर चुका है। इस समस्या पर तुरंत ध्यान देकर इसके निराकरण की जरुरत है।

सोमवार, 16 मई 2011

जनता से नाईंसाफी और सरकारी मनमानी

कल से पट्रोल के दामों में की गयी पाँच रूपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी से जनता में आक्रोश फैलना स्वाभाविक था और उसकी प्रतिक्रिया में प्रदर्शन आदि होने ही थे। यह बात केंद्र सरकार भी अच्छी तरह जानती थी। लेकिन पाँच राज्यों की विधान सभाओं के चुनावों के परिणाम आते ही की गयी यह वृद्धि काफी समय से लटका कर रखी गयी थी। विधान सभा चुनावों में अपनी लाज बचाकर रखने की चिंता के कारण कांग्रेस नीत केंद्र की गठबंधन सरकार ने इसे इस समय तक लटकाए रखने में ही भलाई समझी। ये जनता से नाइंसाफी है। पहले लटकाए रखकर अब एकदम भरी बोझ जनता की जेब पर डालना एकदम तर्करहित और मनमाना है। अब रसोई गैस व डीजल के दामों में भी बढ़ोतरी का मसौदा तैयार है और उच्चाधिकार प्राप्त मंत्री समूह के समक्ष अनुमोदन के लिए भेजा जाने वाला है, जहाँ इसे स्वीकृति मिलने की सम्भावना भी है । यदि ऐसा हुआ तो जनता की जेब पर यह तिहरा डाका होगा। अब यदि लोग सड़कों पर आकर रोष प्रकट न करें तो भला क्या करें। फिर इसी पर राजनीति होगी और धीरे-धीरे असली मुद्दे से लोगों का ध्यान हट जाएगा और इसी तरह सरकारी स्तर पर मूल्यवृद्धि होती रहेगी। परिणामस्वरूप महंगाई बढ़ती ही जाएगी और आम आदमी पिसता ही रहेगा , बार-बार लगातार।

रविवार, 15 मई 2011

पुराने व बेकार हो चुके रिवाजों को बदलें.

क्या हम अभी भी आने सड़े गले रीति-रिवाजों को पकडे रहेंगे और कभी भी उन्हें बदलें की दिशा में नहीं सोचेंगे? कई बार तो ऐसा ही प्रतीत होने लगता है। इसका कारण भी है। जब कभी भी जिस किसी ने किसी भी बेकार की बेड़ियों को तोड़ने की कोशिश की उसे अथवा उन्हें ही तथाकथित परम्परावादियों की मनमानी का शिकार होना पड़ा। यातनाएं झेलनी पडी। इस बात से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं उठता कि परम्पराएं किसी भी समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक हैं। किन्तु जिन परम्परों का अब औचित्य ही नजर नहीं आता, उन्हें ढोते रहने का कारण भी तो सही नहीं लगता है। अपनी झूठी शान के लिए इस तरह की परम्पराओं की आड़ में किसी भी तरह का शोषण, दोषण अथवा/और उत्पीडन भी तो समझ से परे है। समय के अनुसार परम्पराओं में परिवर्तन होते रहने से समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। बाबा अदम के ज़माने के रूढ़िवादी व अंधविश्वास से भरे रिवाजों को बदलने में ही सबका हित है।

शनिवार, 14 मई 2011

जनता की शक्ति लो सलाम

अभीहाल में संपन्न विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आने के बाद यह बात तो स्पष्ट हो गयी है कि जनता अब अधिक देर तक चुनावी झुनझुने को सुनकर ही वोट नहीं देती है बल्कि अब वह मुद्दों के आधार पर पार्टियों को चुनाव में सत्तासीन भी कर देती है और अपनी अपेक्षा के अनुसार न चलने वाले राजनेताओं व उनकी पार्टी को सत्ता से बेदखल भी कर देती है। सत्ता में बैठे नेता इस भ्रम में अब न रहें कि एक बार उन्हें सत्ता में आने के मौका मिल गया तो उन्हें हटाने का काम असं नहीं है,क्योंकि अब जनमानस पहले जैसा भोला व किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं रह गया है। जनता को चुनावी भाषण के रूप में गोली देकर पूरे पञ्च साल अपनी मर्जी चलने वाले राजनेताओं को अब चेत जाना चाहिए, वरना वे अपने राजनैतिक कैरियर दांव पर लगाने के लिए तैयार रहें। बिहार में लालू यादव से शुरू करके तमिलनाडू में करूणानिधि एंड कंपनी तथा पश्चिम बंगाल में और केरल में वाम मोर्चे तक चली जा रही यह परंपरा कांग्रेस को तो बहुत पहले से जला रही है। यही कारन है कि केंद्र में छोटे-छोटे राजनैतिक दलों की बैसाखियों के सहारे सरकार चलाने को मजबूर यह पार्टी राज्यों में उनकी पिछलग्गू बन कर रह गयी है। रामविलास जैसे अपने अहं के कारण जनता द्वारा नकारे जा चुके हैं। अब वे अपने राजनैतिक पुनर्वास की बात जोह रहे हैं।


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सोमवार, 9 मई 2011

कानून सब के लिए बराबर लागू हो.

हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कलानौर (रोहतक ) में ग्रामीणों की शिकायतों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। अच्छी बात है, एसा ही होना भी चाहिए। आजकल कानून का डर असर व रसूख वाले लोगों के मन से निकल सा गया लगता है। कलानौर कांड में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। इसी तरह के अनेक वाकये होते जा रहे हैं। वारदात करने वाले आसानी से बच निकलते हैं, शायद यही वजह है कि अपराधों और अपराधियों पर लगाम नहीं लग पा रही है। मामला चाहे कानून तोड़ने का हो या किसी की जान लेने का। अपराधी बेखौफ नजर आते हैं। लेकिन हुड्डा जी का ध्यान इस बात की ओर भी दिलाना जरूरी है कि झूठे दहेज़ मामले में फंसाए जाने से आहत पानीपत के भाई-बहन ने आत्महत्या कर ली और पुलिस कार्रवाई से क्षुब्ध परिजनों ने अस्पताल के सामने कुछ देर के लिए रोड जाम कर दिया तो उनपर केस दर्ज करने की बात कही गयी,किन्तु कई दिन तक आरक्षण की मांग को लेकर प्रदेश के अधिकतर रोड जाम करने वालों पर उससे भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए थी जो नहीं हुई।

रविवार, 8 मई 2011

अनुपालन सभी नियमों का कराया जाना चाहिए

एक अजीब सी स्थिति है हमारे देश में पुलिस की। उससे भी अजीबोगरीब हैं अपनी कार्रवाई के औचित्य के पक्ष में दी गए उनके कुतर्क, जो केवल पुलिसिया धौंस के आधार पर वे देकर अपने टार्गेट को पूरा करने के नाम पर बेरोकटोक मनमानी करते हैं और फिर भी उच्चाधिकारी एक ही बात कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं उन्हें इस बात या घटना की जानकारी नहीं है।वे यह कहना भी नहीं भूलते कि जल्दी ही पूरी जानकारी लेकर मामले के दोषी को सख्त सजा दी जाएगी। पर उसके बाद क्या होता है, अल्प स्मरण शक्ति के कारन जनता को न तो इसके सुध ही रहती है और न ही जनता की इस कमजोरी का लाभ लेकर मामले को अपने पक्ष में मोड़ लेने की महारत रखने वाले हमारे पुलिस,प्रशासनिक अथवा राजनीतिक सरगनाओं के पास ही मामले की तह तक जाकर दोषी को दण्डित करने की फुरसत होती है। आजकल भी समय-समय पर अपनी फुर्ती ट्रेफिक के चुनिन्दा नियमों का उल्लंघन करने वाले दुपहिया चालकों के चालान काटकर अपने कोटा पूरा करने के लिए पुलिस सक्रिय दिख रही है। मेन रोड की बात तो छोडिए.सेक्टरों के अन्दर या गलियों में भी पुलिस का यातायात विभाग अपनी पूरी चुस्ती फुर्ती के साथ चालान कटाने में लगा हुआ है। इसी तरह कभी कभी कर अदि के चालान अपनी पसंद के छोटे से छोटे नियम के उल्लंघन के नाम पर चालान काटे जाते हैं और साथ मेन यह भी दर्शाने की कोशिश की जाती है कि यह चालान तो कम पैसे वाला काटा गया है। वैसे कागजों मेन मीनमेख निकालकर किसी न किसी बात के लिए चालान काटते हमारे ये कानून के रखवाले रेलेव फाटकों पर धड़ल्ले से नियमों का उल्लंघन नहीं देख पाते।

शनिवार, 7 मई 2011

रेल सड़क व वायु दुर्घटनाएँ

सड़क हादसों में रोजाना न जाने कितनी जानें जा रही हैं। रेल व सड़क दोनों के साथ-साथ वायु दुर्घटनाएँ भी मौत के दूत बनाकर उभर रहे हैं। यह चिंता के साथ-साथ चिंतन का विषय है। इसे सहज रूप में न लेकर इसके कारणों और निवारणों पर मंथन किया जाना अपेक्षित है। तत्पश्चात कोई ऐसी ठोस व कारगर नीति बनाई जानी जरूरी है जिसमें खामियों को जगह न मिल पे। यह बात अलग है कि कोई भी योजना अथवा नीति पूरी तरह त्रुटि रहित नहीं होती। उसमें हमेशा सुधर की गुंजायश बनी रहती है। इसलिए वर्तमान नीति की कमियों पर गौर करते हुए उन्हें दूर करने के लिए और हादसों की इंतज़ार न कर तुरंत कारगर कदम उठाए जाने चाहिएं। लालफीताशाही में न उलझ कर नीतियों को कार्यरूप देने में ढील कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। एक-एक आदमी की जन कितनी कीअती है यह तो वही जन सकते हैं जिनके घर से व्यक्ति इस तरह की दुर्घटनाओं में काल का ग्रास बन गया हो। देश के दूरदराज के क्षेत्रों में जन गंवाने वाले भी इन्सान ही होते हैं। उनके भी परिवार हैं, रिश्तेदार हैं। उनकी भी घर पर प्रतीक्षा होती है। उनको भी प्यार करने वाले व चाहने वाले होते हैं।

शुक्रवार, 6 मई 2011

राजनेता बनाम अधिकारी

राजनेताओं तथा अधिकारियों के बीच गोटी फिट न बैठे तो दोनों के बीच टकराव निश्चित है। यह टकराव किसी भी रूप में हो सकता है। शीतयुद्ध की भांति भी और खुले रूप में भी। बेशक ऐसी कोई भी स्थिति दोनों अपने अहंभाव के कारण पैदा कर लेते हैं। कहीं नेता पर अधिकारी हावी है तो अन्य स्थान पर नेता अपनी बाजी मार ही जाता है। अभीहाल में भी ऐसा ही वाकया देखने का अवसर मिला जब हरियाणा के शिक्षा निदेशक ने आनन-फानन में निर्णय ले लिया कि स्कूल समय में प्रतिदिन डेढ़ घंटे की बढ़ोतरी की जाए और इसके लिए उनकी ओर से परिपत्र भी जारी कर दिया गया। यहाँ तक कि स्कूलों के स्तर पर इस पर अमल भी शुरू हो गया लिस पूरी प्रक्रिया से सम्बंधित मंत्री को पहले विश्वास में ही नहींलिया गया। इस कारण मंत्री महोदया को गिला था और वे परचेज कमेटी की बैठक से अनुपस्थित रही। बाद में मुख्य मंत्री की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में मंत्री महोदया का गिला सामने आया और मामले की जानकारी होते ही मुख्यमंत्री महोदय ने सभी अधिकारियों को सख्त लहजे में कहा कि वे विधायकों व मंत्रियों को पूरा मन-सम्मान दें । उन्होंने शिक्षा निदेशक को कहा कि विद्यालयों का बढाया समय वापस ले लिया जाए। यदि जरूरी हो तो समय आधा घंटे से ज्यादा न बढ़ाया जाए। तब जाकर मंत्री महोदया को सुकून मिला और वे बैठक में पूरे मन से भाग लेती नजर आई।

गुरुवार, 5 मई 2011

कन्या भ्रूण हत्या के पैरोकारो ,जागो

अभीहाल में हरियाणा के भिवानी जिले में दो लड़कियों ने इतिहास रचते हुए कन्या भ्रूण हत्या करने वालों के मुंह पर तमाचा मारते हुए यह दिखा दिया है कि जरुरत पड़ने पर लड़कियां किसी भी तरह से लड़कों से कम नहीं होती। जो लोग उन्हें जन्म लेने से पहले ही पेट में ही मार देते हैं, उनको अपने इस तरह के कुकृत्यों पर पुनर्विचार करना चाहिए । किस्सा जिले के खपडवास गाँव का है जहाँ एक युवती ने अपने भावी दुल्हे व परिवार के सदस्यों की सहमति व सहयोग से घुडचढ़ी की और दुल्हे द्वारा किए जाने वाली सभी रस्में भी अदा की।वह मोनिका! तेरा जज्बा सलाम का हकदार है।


इसी प्रकार एक अन्य युवती ने अपने बीमार पिता को अपनी किडनी दान कर उसे डायलिसिस से छुटकारा दिलाकर सामान्य जीवन जीने का रास्ता दिया। इसा वीर वंदना की वंदना न सही मुक्त कंठ से प्रशंसा जितनी की जाए उतनी कम है। हर क्षेत्र में लड़कों के साथ आगे बढ़ने वाली ऐसी बहादुर लड़कियों को देखकर मन में अनायास ही प्रश्न उठता है कि भ्रूण हत्या करने वाले न जाने ऐसी कितनी बहादुर बेटियों को गर्भ से बाहर ही नहीं आने देते । ऐसे लोगों को अपने इस तरह के विचारों पर गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए।


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सोमवार, 2 मई 2011

अकेलेपन के शाप को बदलें वरदान में

जिन्दगी में अकेलापन हमेशा दुखदायी होता है, इसमें कतई कोई संकोच नहीं। लेकिन अपने अकेलेपन को वरदान का रूप देने वाले हमेशा ही अन्यों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं और उन्होंने अपने साथ-साथ और भी लोगों का जीवन सुखमय बनाया। हमारा इतिहास इस तरह के किस्से कहानियों से भरा पड़ा है। अकेलेपन में व्यक्ति स्वावलंबी व स्वस्थ बना रहता है। दुनिया भर के लोग उससे सीखने की कोशिश करते हैं। अकेलेपन की पीड़ा को ही हम अकेलेपन रूपी मर्ज़ की दवा बनाने की कोशिश करें तो जिन्दगी की अधिकतर परेशानियों का अंत अपने आप हो जाएगा। अकेलेपन को कोसने से काम चलेगा नहीं और अकेलेपन के शाप को वरदान का रूप देने की हम कोशिश करेंगे नहीं तो इससे बढ़कर पीड़ा और क्या हो सकती है?