बुधवार, 14 दिसंबर 2011

jindagee jeekar dekhen

जीवन में अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब व्यक्ति को अपने जीवन के आचार  व्यवहार को नजदीक से देखने का अवसर मिलता है और वह कईबार विचलित होकर तथा अनेक बार घबराकर अपने को असहाय व निरीह सा अनुभव  करने लगता है. यह सही नहीं है.  इस बात से कतई इंकार नहीं  किया जा सकता कि जिन्दगी में समरूपता किसी को भी नहीं मिली है और न ही मिलने की कोई उम्मीद ही रखनी चाहिए . जिन्दगी फूलों की नहीं काँटों की सेज मानकर चलने से हम आने वाली चुनौतियों के लिए स्वयं को तैयार कर लेते हैं और उनपर प्राय: विजय पा लेते हैं. जिन्दगी से हमें ढेरों शिकायतें हो सकती हैं लेकिन जिन्दगी से ही हमें हर खुशी भी मिलती हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हम माँ- बाप से ढेर सारा प्यार पाते हैं और साथ ही डांट डपट भी खाते हैं. फिर भी हम उनसे सारी जिन्दगी जुड़े रहते हैं. हाँ ,  यहाँ कुछेक अपवादों की बात नहीं कह रहा . जिन्दगी को जीना सीख गए तो जिन्दगी स्वर्ग से भी बढ़कर हो जाती है. क्यों न हम इस और ध्यान दें और अच्छी सोच  के साथ जिन्दगी को भरपूर जीयें. मैं शब्द से निकलकर हम में मिल जाएँ तो जिन्दगी जीने का मज़ा सहज ही आ जाएगा. जरूर आजमाइए इसे.
*ईश्वर चन्द्र भारद्वाज