बुधवार, 14 दिसंबर 2011

jindagee jeekar dekhen

जीवन में अनेक अवसर ऐसे आते हैं जब व्यक्ति को अपने जीवन के आचार  व्यवहार को नजदीक से देखने का अवसर मिलता है और वह कईबार विचलित होकर तथा अनेक बार घबराकर अपने को असहाय व निरीह सा अनुभव  करने लगता है. यह सही नहीं है.  इस बात से कतई इंकार नहीं  किया जा सकता कि जिन्दगी में समरूपता किसी को भी नहीं मिली है और न ही मिलने की कोई उम्मीद ही रखनी चाहिए . जिन्दगी फूलों की नहीं काँटों की सेज मानकर चलने से हम आने वाली चुनौतियों के लिए स्वयं को तैयार कर लेते हैं और उनपर प्राय: विजय पा लेते हैं. जिन्दगी से हमें ढेरों शिकायतें हो सकती हैं लेकिन जिन्दगी से ही हमें हर खुशी भी मिलती हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हम माँ- बाप से ढेर सारा प्यार पाते हैं और साथ ही डांट डपट भी खाते हैं. फिर भी हम उनसे सारी जिन्दगी जुड़े रहते हैं. हाँ ,  यहाँ कुछेक अपवादों की बात नहीं कह रहा . जिन्दगी को जीना सीख गए तो जिन्दगी स्वर्ग से भी बढ़कर हो जाती है. क्यों न हम इस और ध्यान दें और अच्छी सोच  के साथ जिन्दगी को भरपूर जीयें. मैं शब्द से निकलकर हम में मिल जाएँ तो जिन्दगी जीने का मज़ा सहज ही आ जाएगा. जरूर आजमाइए इसे.
*ईश्वर चन्द्र भारद्वाज  

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

doharaa charitra

यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि मनुष्य अपने लबादे में अनेक कुकृत्य करता है और उनका भंडाफोड़ होने से डरता है. इसके साथ-साथ वह दूसरों की बेइज्जति  करने का कोइ मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहता है. यह भरी विरोधाभास सभी जगह सभी जाति व समुदायों में सामान रूप से पाया जाता है. सब इस बात को बुरा बताते भी हैं और ऐसा करने वालों को अच्छा नहीं मानते हैं. फिर भी यह बदस्तूर जारी है. इसे दोहरे चरित्र का सबूत नहीं तो फिर क्या कहा जाएगा? 

रविवार, 18 सितंबर 2011

enjoy what u feel enjoying

हम न तो किसी को अपने से ज्यादा समझदार समझते हैं और न ही किसी को अपनी समझदारी में साझा करने देते हैं. किन्तु दूसरे समझदारों को हेय दृष्टि से देखन और उनकी समझदारी में हर वक्त साझेदारी करने तथा उस साझेदारी के बहाने उसे अपनी ही समझदारी मान लेने की एवं तदनुसार प्रचार व् प्रसार करने की अपनी कीय्त के कारन हम अनेक बार असमंजस की स्थिति में फंस जाते हैं. इस तरह हम न तो अपनी ही समझदारी को पूरी तरह विकसित होने देते हैं और न ही इसमें सुधार करने का ही प्रयास करते हैं.राजनीती में तो यह वायुरोग कुछ ज्यादा ही फैला हुआ है. एक से बढाकर एक धुरंधर भरे पड़े हैं और हर धुरंधर दूसरे को दिमागी रूप से दिवालिया घोषित करने में कोइ कसर नहीं छोड़ता है. कुल मिलकर इस हमाम में सभी नंगे हैं और दूसरे को शेम शेम कहे जा रहे हैं.मैं इस दौड़ में कई बार शामिल हुआ हूँ और अक्सर पिछड़  कर खड़ा देखता रहा हूँ. सच पूछो तो यों खड़ा होकर देखने में ज्यादा मजा आता है . इसीलिए अब तमाशा बनने की बजाय तमाशा देखने में ही जी लग गया है. - ईश्वर चन्द्र भारद्वाज    

शनिवार, 20 अगस्त 2011

they are what they don't seem

it has become a fashion among the politicians to give statements and comments on every issue whether they are concerned with it or not. they issue statements even if they have no knowledge of it or vice verse. it seems they have some kind of unknown fear from all and sundry. even they are afraid of their close ones. they are suspicious, they have fear. due to their dubious character and uncertain future, they are always suspicious and afraid.

बुधवार, 17 अगस्त 2011

the govt.,the congress versus anna hajare

i have come across many a news in which govt. of india as well as ruling congress party's spoke persons speaking in front of media keeping all the etiquetts away. even in the parliament the minister for parliamentary affairs tried his worst to block the smooth working of the parliament. the minister of hrd is badly known for his unwanted wording. a general secretary of the party is already known for his disputed language and issues where he has crossed all the boundaries of a democratic system. all htese are well versed in the field of law. many other spokepesons of this ruling party are foolowing the same path.anna hazare is working in the right direction foolowing the path adopted by gandhiji. one mr. tushar gandhi, a grandson of mahatma gandhi has also raised his word of disagreement with anna hajare, whom some persons has called as today's gandhi. everyone knows about the zigzag political career of him. he has nothing to do with gandhism. for some time he remains in the news only due to his comments on the things happening , out of which he choose only what he finds suitable. after this he again goes to a hide for a long period.

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

commenting people

now a days it has become a fashion to shot comments on various issues. this does not matter whether their statement was required or not. there are persons in every field of life. they have their comments on every issue are always ready. people may or may not like their comments,but they are always in a mood to be involved in every field . they may or may not have any knowledge of the issue but their comment is always there.

शुक्रवार, 10 जून 2011

भ्रष्टाचार व गुंडागर्दी का खौफनाक चेहरा कितना बेखौफ हो गया.

भ्रष्टाचार में लिप्त होने व पैसे लेकर नौकरी दिलवाने का झांसा देकर लोगों को ठगने का काम हरियाणा में किस स्तर तक जा पहुंचा है यह करनाल जिले के कम्बोपुरा गाँव के पूर्व सरपंच कर्मसिंह की ह्त्या में हरियाणा के दो बड़े नेताओं के कथित रूप से शामिल होने से और पुख्ता हो गया है। मुख्यमंत्री के लाख दावों के बावजूद यह भ्रष्ट आचरण धड़ल्ले से चल रहा है। इसी सन्दर्भ में अपना नाम आने के परिणाम स्वरूप दबाव बढ़ने से हरियाणा के परिवहन मंत्री ओमप्रकाश जैन व मुख्य संसदीय सचिव जिलेराम शर्मा ने आखिरकार अपने इस्तीफे देने ही पड़े क्योंकि मुख्य मंत्री भूपेन्द्र सिंह हूड्डा ने अकेले में उनकी बात सुनने के अनुरोध को ठुकराकर सबके सामने ही अपनी बात रखने को कहा। उनकी इस सख्ती को भांपते हुए दोनों ने वहीं पर अपने अपने त्यागपत्र मुख्यमंत्री को सौंप दिए।जिलेराम का त्यागपत्र मुख्यमंत्री ने तुरंत स्वीकार कर लिया जबकि ओमप्रकाश जैन के त्यागपत्र को राज्यपाल के पास स्वीकृति हेतु भेज दिया। ओमप्रकाश जैन पानीपत देहात से निर्दलीय विधायक के रूप में चुने गए थे व हुड्डा सरकार में मंत्री का दर्जा पाने में कामयाब रहे जबकि जिले राम शर्मा हजकां के टिकट पर असंध से चुनाव जीते व बाद में पाला बदलकर हुड्डा के साथ जा मिले और मुख्य संसदीय सचिव के पद पर आसीन हो गए। मृतक के पुत्र राजिन्द्र के अनुसार जिले राम शर्मा ने उसे पुलिस में भर्ती कराने के लिए उसके पिता से 4.95 लाख रूपए लिए थे। इसी प्रकार ओमप्रकाश जैन पर उसने आरोप लगाया कि उनके एक रिश्तेदार से परिवहन विभाग में नौकरी लगवाने के लिए साढ़े चार लाख रूपए लिए तथा स्वयं उसे कंडक्टर की नौकरी दिलवाने के लिए साढ़े तीन लाख रूपए लिए थे। राजिन्द्र के अनुसार दोनों ने ही न तो नौकरी दिलवाई और न ही पैसे वापस किए। यदि यह सही है तो राजनीति में भ्रष्टाचार का ग्राफ इस स्तर पर पहुंचना भयंकर खतरे का संकेत है। अब किस पर विश्वास करेंगे लोग और किससे फरियाद करेंगे?अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आन्दोलन को कुचलने के पीछे की मनसा का इस प्रकार की घटनाओं से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है ।

गुरुवार, 26 मई 2011

स्वामी अग्निवेश का बडबोलापन

सन्यासी से आर्य समाज के प्रधान बनकर राजनीति में पैर रखने की कोशिश में स्वामी इन्द्रवेश व अग्निवेश हरियाणा में ऐसे युवा सन्यासियों के रूप में उभरे जो समाज को कुछ देने की आकांक्षा रखते थे। समय के साथ-साथ उनके सफर ने कई मोड़ लिए और स्वामी अग्निवेश बंधुआ मुक्ति आन्दोलन के अगुआ बनकर देश में कार्य करने लगे। कई बार नक्सलियों से सहानुभूति रखने के कारण उनको आलोचना झेलनी पडी। इसी तरह कई बार विवादित रहते हुए उनकी ताजा विवादित जबान तब हुई जब उन्होंने कश्मीर के नरमपंथी अलगाववादी नेता के साथ मुलाकात में अमरनाथ यात्रा को ढकोसला और धोखा आदि शब्दों का प्रयोग करके करोड़ों की आस्था को ठेस पहुंचाई। बेशक वे एक अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता हैं और इस नाते उनका सम्मान भी किया जाता है। लेकिन इस कारण उन्हें किसी की भी भावना से खिलवाड़ करने का अधिकार तो कदापि नहीं मिल जाता है। उन जैसी शख्सियत को यह शोभा भी नहीं देता है। उनकी तीखी आलोचना बेवजह नहीं है। उन्हें बोलने से पहले अपनी बात को तोल लेना चाहिए।

मंगलवार, 24 मई 2011

अधिग्रहण उपजाऊ जमीन का नहीं बेकार की जमीन का हो

हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हूडा ने उत्तर प्रदेश के किसानों को उनकी अधिग्रहीत भूमि का उचित मुआवजा न देने के कारण पिछले दिनों वहां की सरकार को काफी खरी खोटी सुनाई थी। अब उसी तरह के आन्दोलन पर चल रहे हरियाणा के अम्बाला व सोनीपत तथा सिरसा जिलों के लोगों ने संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। सरकार की ओर से उनसे किस तरह से निपटा जाता है यह तो वक्त ही बता पाएगा, लेकिन औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत की कहावत को चरितार्थ करते हुए इस किसान पुत्र ने क्या अबतक यह भी नहीं तय किया था कि अधिग्रहीत उपजाऊ जमीन का मुआवजा भी तो भरपूर दिया जाना चाहिए था। उद्योगों के लिए जमीन के अधिग्रहण को सही बताने वाले मुख्यमंत्री को यह तो पता होगा ही कि उपजाऊ जमीन पर उद्योग स्थापित करके वे राज्य को दोहरा नुकसान पहुँचाने पर क्यों तुले हैं। यह सही है कि उद्योग देश की अर्थव्यवस्था की जान होते हैं; लेकिन इनके लिए बंजर पडी जमीन की ओर भी तो ध्यान दिया जा सकता है।। इससे बेकार पडी जमीन का उपयोग भी हो जाएगा और उपजाऊ जमीन पर पेट भरने के लिए अन्न भी मिलता रहेगा। उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण करके क्या सरकार अंडे खाने को बढ़ावा देना चाहती है? अथवा बढ़ती जनसंख्या के उदर को भरने का कुछ और विकल्प ढूंढ लिया है तो उसे स्पष्ट करे।

सोमवार, 23 मई 2011

गिरता भूजल स्तर और सम्बंधित समस्याएँ

आजकल पानी की कमी चाहे उतनी गंभीर नहीं है जितनी कि भयावह यह हो सकती है, लेकिन उस ओर हम तेजी से बढते जा रहे हैं। यदि समय रहते हम नहीं संभले तो उस भयावह स्थिति के आने में देर नहीं। धरती के अन्दर के पानी के अनाप-शनाप दोहन के कारण भूजल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है और कई नलकूप व हाथ के नलके सूख गए हैं। आजकल सबमर्सीबल पम्पों के प्रचलन ने पानी के व्यर्थ बहने की मात्रा कई गुना बढ़ा दी है। विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन व पानी के अंधाधुंध दोहन के चलते अगले दशक में भारत के ६०% ब्लाक सूखे की चपेट में होंगे और तब फसलों की सिंचाई की बात तो भूल जाईए पीने के लिए भी पानी की मारामारी शुरू हो जाएगी। इस समय भी देश के ५७२३ ब्लोकों में से १८२० ब्लोकों में जलस्तर खतरनाक हदें पर कर चुका है। इस समस्या पर तुरंत ध्यान देकर इसके निराकरण की जरुरत है।

सोमवार, 16 मई 2011

जनता से नाईंसाफी और सरकारी मनमानी

कल से पट्रोल के दामों में की गयी पाँच रूपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी से जनता में आक्रोश फैलना स्वाभाविक था और उसकी प्रतिक्रिया में प्रदर्शन आदि होने ही थे। यह बात केंद्र सरकार भी अच्छी तरह जानती थी। लेकिन पाँच राज्यों की विधान सभाओं के चुनावों के परिणाम आते ही की गयी यह वृद्धि काफी समय से लटका कर रखी गयी थी। विधान सभा चुनावों में अपनी लाज बचाकर रखने की चिंता के कारण कांग्रेस नीत केंद्र की गठबंधन सरकार ने इसे इस समय तक लटकाए रखने में ही भलाई समझी। ये जनता से नाइंसाफी है। पहले लटकाए रखकर अब एकदम भरी बोझ जनता की जेब पर डालना एकदम तर्करहित और मनमाना है। अब रसोई गैस व डीजल के दामों में भी बढ़ोतरी का मसौदा तैयार है और उच्चाधिकार प्राप्त मंत्री समूह के समक्ष अनुमोदन के लिए भेजा जाने वाला है, जहाँ इसे स्वीकृति मिलने की सम्भावना भी है । यदि ऐसा हुआ तो जनता की जेब पर यह तिहरा डाका होगा। अब यदि लोग सड़कों पर आकर रोष प्रकट न करें तो भला क्या करें। फिर इसी पर राजनीति होगी और धीरे-धीरे असली मुद्दे से लोगों का ध्यान हट जाएगा और इसी तरह सरकारी स्तर पर मूल्यवृद्धि होती रहेगी। परिणामस्वरूप महंगाई बढ़ती ही जाएगी और आम आदमी पिसता ही रहेगा , बार-बार लगातार।

रविवार, 15 मई 2011

पुराने व बेकार हो चुके रिवाजों को बदलें.

क्या हम अभी भी आने सड़े गले रीति-रिवाजों को पकडे रहेंगे और कभी भी उन्हें बदलें की दिशा में नहीं सोचेंगे? कई बार तो ऐसा ही प्रतीत होने लगता है। इसका कारण भी है। जब कभी भी जिस किसी ने किसी भी बेकार की बेड़ियों को तोड़ने की कोशिश की उसे अथवा उन्हें ही तथाकथित परम्परावादियों की मनमानी का शिकार होना पड़ा। यातनाएं झेलनी पडी। इस बात से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं उठता कि परम्पराएं किसी भी समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक हैं। किन्तु जिन परम्परों का अब औचित्य ही नजर नहीं आता, उन्हें ढोते रहने का कारण भी तो सही नहीं लगता है। अपनी झूठी शान के लिए इस तरह की परम्पराओं की आड़ में किसी भी तरह का शोषण, दोषण अथवा/और उत्पीडन भी तो समझ से परे है। समय के अनुसार परम्पराओं में परिवर्तन होते रहने से समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। बाबा अदम के ज़माने के रूढ़िवादी व अंधविश्वास से भरे रिवाजों को बदलने में ही सबका हित है।

शनिवार, 14 मई 2011

जनता की शक्ति लो सलाम

अभीहाल में संपन्न विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आने के बाद यह बात तो स्पष्ट हो गयी है कि जनता अब अधिक देर तक चुनावी झुनझुने को सुनकर ही वोट नहीं देती है बल्कि अब वह मुद्दों के आधार पर पार्टियों को चुनाव में सत्तासीन भी कर देती है और अपनी अपेक्षा के अनुसार न चलने वाले राजनेताओं व उनकी पार्टी को सत्ता से बेदखल भी कर देती है। सत्ता में बैठे नेता इस भ्रम में अब न रहें कि एक बार उन्हें सत्ता में आने के मौका मिल गया तो उन्हें हटाने का काम असं नहीं है,क्योंकि अब जनमानस पहले जैसा भोला व किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं रह गया है। जनता को चुनावी भाषण के रूप में गोली देकर पूरे पञ्च साल अपनी मर्जी चलने वाले राजनेताओं को अब चेत जाना चाहिए, वरना वे अपने राजनैतिक कैरियर दांव पर लगाने के लिए तैयार रहें। बिहार में लालू यादव से शुरू करके तमिलनाडू में करूणानिधि एंड कंपनी तथा पश्चिम बंगाल में और केरल में वाम मोर्चे तक चली जा रही यह परंपरा कांग्रेस को तो बहुत पहले से जला रही है। यही कारन है कि केंद्र में छोटे-छोटे राजनैतिक दलों की बैसाखियों के सहारे सरकार चलाने को मजबूर यह पार्टी राज्यों में उनकी पिछलग्गू बन कर रह गयी है। रामविलास जैसे अपने अहं के कारण जनता द्वारा नकारे जा चुके हैं। अब वे अपने राजनैतिक पुनर्वास की बात जोह रहे हैं।


(मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat )

सोमवार, 9 मई 2011

कानून सब के लिए बराबर लागू हो.

हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कलानौर (रोहतक ) में ग्रामीणों की शिकायतों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि किसी को भी कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। अच्छी बात है, एसा ही होना भी चाहिए। आजकल कानून का डर असर व रसूख वाले लोगों के मन से निकल सा गया लगता है। कलानौर कांड में भी ऐसा ही कुछ हुआ है। इसी तरह के अनेक वाकये होते जा रहे हैं। वारदात करने वाले आसानी से बच निकलते हैं, शायद यही वजह है कि अपराधों और अपराधियों पर लगाम नहीं लग पा रही है। मामला चाहे कानून तोड़ने का हो या किसी की जान लेने का। अपराधी बेखौफ नजर आते हैं। लेकिन हुड्डा जी का ध्यान इस बात की ओर भी दिलाना जरूरी है कि झूठे दहेज़ मामले में फंसाए जाने से आहत पानीपत के भाई-बहन ने आत्महत्या कर ली और पुलिस कार्रवाई से क्षुब्ध परिजनों ने अस्पताल के सामने कुछ देर के लिए रोड जाम कर दिया तो उनपर केस दर्ज करने की बात कही गयी,किन्तु कई दिन तक आरक्षण की मांग को लेकर प्रदेश के अधिकतर रोड जाम करने वालों पर उससे भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए थी जो नहीं हुई।

रविवार, 8 मई 2011

अनुपालन सभी नियमों का कराया जाना चाहिए

एक अजीब सी स्थिति है हमारे देश में पुलिस की। उससे भी अजीबोगरीब हैं अपनी कार्रवाई के औचित्य के पक्ष में दी गए उनके कुतर्क, जो केवल पुलिसिया धौंस के आधार पर वे देकर अपने टार्गेट को पूरा करने के नाम पर बेरोकटोक मनमानी करते हैं और फिर भी उच्चाधिकारी एक ही बात कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं उन्हें इस बात या घटना की जानकारी नहीं है।वे यह कहना भी नहीं भूलते कि जल्दी ही पूरी जानकारी लेकर मामले के दोषी को सख्त सजा दी जाएगी। पर उसके बाद क्या होता है, अल्प स्मरण शक्ति के कारन जनता को न तो इसके सुध ही रहती है और न ही जनता की इस कमजोरी का लाभ लेकर मामले को अपने पक्ष में मोड़ लेने की महारत रखने वाले हमारे पुलिस,प्रशासनिक अथवा राजनीतिक सरगनाओं के पास ही मामले की तह तक जाकर दोषी को दण्डित करने की फुरसत होती है। आजकल भी समय-समय पर अपनी फुर्ती ट्रेफिक के चुनिन्दा नियमों का उल्लंघन करने वाले दुपहिया चालकों के चालान काटकर अपने कोटा पूरा करने के लिए पुलिस सक्रिय दिख रही है। मेन रोड की बात तो छोडिए.सेक्टरों के अन्दर या गलियों में भी पुलिस का यातायात विभाग अपनी पूरी चुस्ती फुर्ती के साथ चालान कटाने में लगा हुआ है। इसी तरह कभी कभी कर अदि के चालान अपनी पसंद के छोटे से छोटे नियम के उल्लंघन के नाम पर चालान काटे जाते हैं और साथ मेन यह भी दर्शाने की कोशिश की जाती है कि यह चालान तो कम पैसे वाला काटा गया है। वैसे कागजों मेन मीनमेख निकालकर किसी न किसी बात के लिए चालान काटते हमारे ये कानून के रखवाले रेलेव फाटकों पर धड़ल्ले से नियमों का उल्लंघन नहीं देख पाते।

शनिवार, 7 मई 2011

रेल सड़क व वायु दुर्घटनाएँ

सड़क हादसों में रोजाना न जाने कितनी जानें जा रही हैं। रेल व सड़क दोनों के साथ-साथ वायु दुर्घटनाएँ भी मौत के दूत बनाकर उभर रहे हैं। यह चिंता के साथ-साथ चिंतन का विषय है। इसे सहज रूप में न लेकर इसके कारणों और निवारणों पर मंथन किया जाना अपेक्षित है। तत्पश्चात कोई ऐसी ठोस व कारगर नीति बनाई जानी जरूरी है जिसमें खामियों को जगह न मिल पे। यह बात अलग है कि कोई भी योजना अथवा नीति पूरी तरह त्रुटि रहित नहीं होती। उसमें हमेशा सुधर की गुंजायश बनी रहती है। इसलिए वर्तमान नीति की कमियों पर गौर करते हुए उन्हें दूर करने के लिए और हादसों की इंतज़ार न कर तुरंत कारगर कदम उठाए जाने चाहिएं। लालफीताशाही में न उलझ कर नीतियों को कार्यरूप देने में ढील कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। एक-एक आदमी की जन कितनी कीअती है यह तो वही जन सकते हैं जिनके घर से व्यक्ति इस तरह की दुर्घटनाओं में काल का ग्रास बन गया हो। देश के दूरदराज के क्षेत्रों में जन गंवाने वाले भी इन्सान ही होते हैं। उनके भी परिवार हैं, रिश्तेदार हैं। उनकी भी घर पर प्रतीक्षा होती है। उनको भी प्यार करने वाले व चाहने वाले होते हैं।

शुक्रवार, 6 मई 2011

राजनेता बनाम अधिकारी

राजनेताओं तथा अधिकारियों के बीच गोटी फिट न बैठे तो दोनों के बीच टकराव निश्चित है। यह टकराव किसी भी रूप में हो सकता है। शीतयुद्ध की भांति भी और खुले रूप में भी। बेशक ऐसी कोई भी स्थिति दोनों अपने अहंभाव के कारण पैदा कर लेते हैं। कहीं नेता पर अधिकारी हावी है तो अन्य स्थान पर नेता अपनी बाजी मार ही जाता है। अभीहाल में भी ऐसा ही वाकया देखने का अवसर मिला जब हरियाणा के शिक्षा निदेशक ने आनन-फानन में निर्णय ले लिया कि स्कूल समय में प्रतिदिन डेढ़ घंटे की बढ़ोतरी की जाए और इसके लिए उनकी ओर से परिपत्र भी जारी कर दिया गया। यहाँ तक कि स्कूलों के स्तर पर इस पर अमल भी शुरू हो गया लिस पूरी प्रक्रिया से सम्बंधित मंत्री को पहले विश्वास में ही नहींलिया गया। इस कारण मंत्री महोदया को गिला था और वे परचेज कमेटी की बैठक से अनुपस्थित रही। बाद में मुख्य मंत्री की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में मंत्री महोदया का गिला सामने आया और मामले की जानकारी होते ही मुख्यमंत्री महोदय ने सभी अधिकारियों को सख्त लहजे में कहा कि वे विधायकों व मंत्रियों को पूरा मन-सम्मान दें । उन्होंने शिक्षा निदेशक को कहा कि विद्यालयों का बढाया समय वापस ले लिया जाए। यदि जरूरी हो तो समय आधा घंटे से ज्यादा न बढ़ाया जाए। तब जाकर मंत्री महोदया को सुकून मिला और वे बैठक में पूरे मन से भाग लेती नजर आई।

गुरुवार, 5 मई 2011

कन्या भ्रूण हत्या के पैरोकारो ,जागो

अभीहाल में हरियाणा के भिवानी जिले में दो लड़कियों ने इतिहास रचते हुए कन्या भ्रूण हत्या करने वालों के मुंह पर तमाचा मारते हुए यह दिखा दिया है कि जरुरत पड़ने पर लड़कियां किसी भी तरह से लड़कों से कम नहीं होती। जो लोग उन्हें जन्म लेने से पहले ही पेट में ही मार देते हैं, उनको अपने इस तरह के कुकृत्यों पर पुनर्विचार करना चाहिए । किस्सा जिले के खपडवास गाँव का है जहाँ एक युवती ने अपने भावी दुल्हे व परिवार के सदस्यों की सहमति व सहयोग से घुडचढ़ी की और दुल्हे द्वारा किए जाने वाली सभी रस्में भी अदा की।वह मोनिका! तेरा जज्बा सलाम का हकदार है।


इसी प्रकार एक अन्य युवती ने अपने बीमार पिता को अपनी किडनी दान कर उसे डायलिसिस से छुटकारा दिलाकर सामान्य जीवन जीने का रास्ता दिया। इसा वीर वंदना की वंदना न सही मुक्त कंठ से प्रशंसा जितनी की जाए उतनी कम है। हर क्षेत्र में लड़कों के साथ आगे बढ़ने वाली ऐसी बहादुर लड़कियों को देखकर मन में अनायास ही प्रश्न उठता है कि भ्रूण हत्या करने वाले न जाने ऐसी कितनी बहादुर बेटियों को गर्भ से बाहर ही नहीं आने देते । ऐसे लोगों को अपने इस तरह के विचारों पर गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए।


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सोमवार, 2 मई 2011

अकेलेपन के शाप को बदलें वरदान में

जिन्दगी में अकेलापन हमेशा दुखदायी होता है, इसमें कतई कोई संकोच नहीं। लेकिन अपने अकेलेपन को वरदान का रूप देने वाले हमेशा ही अन्यों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं और उन्होंने अपने साथ-साथ और भी लोगों का जीवन सुखमय बनाया। हमारा इतिहास इस तरह के किस्से कहानियों से भरा पड़ा है। अकेलेपन में व्यक्ति स्वावलंबी व स्वस्थ बना रहता है। दुनिया भर के लोग उससे सीखने की कोशिश करते हैं। अकेलेपन की पीड़ा को ही हम अकेलेपन रूपी मर्ज़ की दवा बनाने की कोशिश करें तो जिन्दगी की अधिकतर परेशानियों का अंत अपने आप हो जाएगा। अकेलेपन को कोसने से काम चलेगा नहीं और अकेलेपन के शाप को वरदान का रूप देने की हम कोशिश करेंगे नहीं तो इससे बढ़कर पीड़ा और क्या हो सकती है?

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार और नैतिकता

देश में तरह तरह के भ्रष्टाचार के मामले सामने आते देखकर ऐसा लगता है कि हमारा पूरा का पूरा तंत्र ही चरमरा गया है। नैतिकता जैसी बातें केवल आदर्शों के साथ दम तोड़ चुकी हैं। स्वार्थ पिपासा इतनी बढ़ गयी है कि पैसा सबसे बड़ा हो गया है। न तो किसी के लिए किसी के पास समय है और न ही अपने और पराए का भेद ही नजर अत है। बस पैसे के साथ ही अपनापन है और पैसे के बिना सब परायापन नजर आता है। मन अपने दूध की कीमत मांग लेती है और बेटा अपने द्वारा माँ के लिए किए काम की मजदूरी अथवा फीस मांग रहा है।कैसा कलियुग अ गया है। अब आगे क्या होगा, कौन जाने । लेकिन इसी दिशा में हुआ तो निश्चित रूप से अनिष्टकारक और कष्टदायक तो होना तय है।

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

प्रकृति के साथ मिलकर चलने में ही स्वास्थ्य है.

स्वास्थ्य के प्रति लोगों का नजरिया निरंतर बदलता रहता है। पहले लोग स्वास्थ्य के रक्षण के लिए प्रकृति के ज्यादा से ज्यादा करीब रहने की कोशिश किया करते थे। आज प्रकृति से दूर होते जा रहे मानव ने अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के भ्रम को दवाइयों व शल्य चिकित्सा में ढूंढना शुरू किया हुआ है। प्रकृति के अनुकूल अपनी प्रवृति को ढलने की खिल्ली उड़ाने वाले यह भूल जाते हैं कि यह प्रकृति ही है, जिसको लाख जतनों के बावजूद किसी भी तरह की सीमा में बांधना असंभव है। जितनी इलाज बढे उससे अधिक रोग बढे। यह सिलसिला अब भी निर्बाध जरी है। और यों ही चलता रहेगा।

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

जनता को सही अगुआ मिले तो..

अभीहाल में तेजी से बदल रहे घटनाक्रम में कुछ ऐसे तथ्य उजागर हुए हैं जिन्होंने पूरे देश को आंदोलित कर दिया है। बाबा रामदेव की स्वाभिमान यात्रा से लेकर अन्ना हजारे के धरने तक और उनके बाद भी इस तरह का सिलसिला जारी है। जनमानस के लिए ये बातें बहुत मायने रखती हैं। राजसत्ता से लेकर भ्रष्ट तंत्र सत्ता तक न जाने कितने रोग हैं जो देश को नासूर की तरह कमजोर किए जा रहे हैं। सत्ता में बैठे लोग और कुर्सी पर काबिज बाबू इस नासूर को पाटने के रास्ते में स्वार्थवश तरह तरह के रोड़े अटका रहे हैं। जनता अपने सामने हो रहे इस खेल को मूकदर्शक बन देख रही है। यह उनकी विवशता भी हो सकती है और किंकर्तव्य विमूढ़ता भी। लेकिन जब भी जनता को जगाने वाला कोई अगुआ सही दिशा में कदम मजबूती के साथ बढ़ाएगा जन-जन उसके साथ जुड़कर क्रांति ला देगा इसमें कतई शक नहीं है। अन्ना हजारे ने ऐसे ही एक प्रयास से केंद्र सरकार की नींद हरम कर दी और नया लोकपाल बिल बनाने के लिए समिति गठित कर दी गयी। अब देखना यह है कि यह समिति सभी तरह के दबावों तथा अवरोधों के साथ किस दिशा में और कितना सरता कार्य कर पाएगी।

रविवार, 24 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे हों या बाबा रामदेव। दोनों ही हमारे भ्रष्ट राजनेताओं व रिश्वतखोर अधिकारियों के लिए खतरे की घंटी हैं। यही कर्ण है कि सरकारी व सत्तासीन पार्टी की ओर से इनके खिलाफ हर ऐसा बयान देने वालों की कमी नहीं है जिन्हें इनके जबरदस्त जनांदोलन से खतरा महसूस हो रहा है। आए दिन कोई न कोई नया बयान गड़े मुर्दे उखाड़ने की हर मुमकिन कोशिश करता हुआ इन जन आन्दोलन के नायकों को किसी न किसी तरह भ्रष्टाचार से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में जोड़ने की जुगत भिड़ाता है। पर इनमें किसी तरह का दम न होने ऐसे बयान स्वयं ही अपनी मृत्यु का ग्रास बन रहे हैं। सो ऐसे अवसर का उपयोग ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करके किया जाना चाहिए, न कि ऊर्जा के अपव्यय का रास्ता चुनना चाहिए।

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

नारी और समाज

अब वह समय हवा हो गया जब नारी और चारदीवारी का साथ निरंतर बन रहता था। घर की चारदीवारी के बाहर की दुनिया से उनका नाता न के बराबर न होने की बातें कल्पना की चीज बन कर रह गयी हैं। नारी की स्वतंत्रता की बातें बड़े जोर शोर से उठ रही हैं। इनका असर भी चहुँ ओर दृष्टिगोचर हो रहा है। अपने हकों की लड़ाई लड़ने में नारियां पुरुषों को पछाड़ रही हैं। नारी रक्षा व नारी हितों की पैरवी करने वालों की बाढ़ सी आई हुई है। सरकारी स्तर पर भी महिला आयोग जैसी शक्तिसंपन्न संस्थाएं कार्यरत हैं। कई बार तो नारी की सहायता के नाम पर कुछ इस तरह की घटनाएं हो जाती हैं कि पुरुषों पर दया आने लगती है। नारी सम्मान के नाम पर कई बार बेगुनाह भी फंसा दी जाते हैं। ऐसे मामलों में व्यक्तिगत खुन्नस ज्यादा प्रभावी देखी जाती है। महिला उत्पीडन रोकने के लिए बनाए गए क़ानून अपने दुरुपयोग के कारण आलोचना का कारण बन रहे हैं। कानूनविदों को व सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना होगा।

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

दिग्भ्रमित होती किशोरावस्था

आज बच्चे किशोरावस्था में पहुँचते पहुँचते काफी अडवांस हो रहे हैं। वे उन सभी अनुभवों को कर लेना चाहते हैं जो उन्हें युवावस्था में भी धीरे धीरे व संभालकर करने चाहिएं। इतना ही नहीं, इस अवस्था में वे कुछ तो ऐसी बातें भी स्वत: सीख रहे हैं जो कि युवावस्था में भी एक निश्चित अवस्था के बाद किए जाने का प्रावधान है। सैक्स के मामले में तो सारी हदें पर होती लग रही हैं। मन-मर्यादा को तक पर रखा कर नैतिकता को ठेंगा दिखाते हुए जो कुछ होरहा है उससे यह स्पष्ट लगाने लगा है कि इस अवस्था में किसी की परवाह करना उन्हें गवारा नहीं। इस कारन समाज में स्वेच्छाचार बढ़ रहा है। युवा पीढी दिग्भ्रमित हो रही है। वह दिशाहीन व दशाहीन होती जा रही है। परिवार बिखर रहे हैं। परम्पराएं दम तोड़ रही हैं। मर्यादाएं तहस नहस हो रही हैं। चरित्र के नाम को भुला देने जैसी स्थिति आती जा रही है। समाज में व्यभिचार तथा स्वेच्छाचार बढ़ रहा है। एन्जॉय करने के नाम पर सब तरह की वर्जनाएं टूट रही हैं।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

हर घर की बीमारी

आज के ज़माने में कोई भी घर ऐसा नहीं है जिसमें कभी भी कोई कहा सूनी न हुई हो। यह स्वाभाविक भी है और जरूरी भी। ऐसा होने के कारण ही हम एक दूसरे के साथ जिन्दगी की असलियत को निभाना सीखते हैं। इसीसे हम जीवन के मूल्यों को समझते हैं। विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति व ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में आने वाली हर कठिनाई से पर पाना सरल हो जाता है। लेकिन यह यहीं तक सीमित रहे तो ठीक है । इससे आगे बढ़ जाना शुभ संकेत नहीं होता क्योंकि इससे मनमुटाव बढ़ जाता है और सदा के लिए अलगाव आ जाता है। ऐसा होना नहीं चाहिए क्योंकि इससे सामाजिक ताना बाना तहस नहस होने लगता है और पारस्परिक सदभाव संशय में बदलकर समाज के लिए घटक बन जाता है ।

मंगलवार, 8 मार्च 2011

बातों बातों में मतलब हल

आजकल लोग अपने मतलब को हल करने के लिए ज्यादा समय बर्बाद करने में विश्वास नहीं रखते हैं वे बस अपने मतलब की बात करते हैं और मतलब निकलते ही अपनी रह पकड़ लेते हैं किसी के पास इतना वक्त नहीं होता है कि वे दूसरे की बात भी सुन सकें और कोई उचित सलाह अथवा उत्तर दे दें लेकिन जब अपनी बारी आती है तो उन्हें दुनिया जहान से इस बात की शिकायत रहती है कि कोई उनकी मुश्किल को नहीं समझता , इसी तनाव में वे अपने आप में दुखी रहते हैं तथा दूसरों को कोसते रहते हैं वे नैतिकता का पाठ पूरी दुनिया को पढ़ाने लग जाते हैं और कदम कदम पर इसके झंडाबरदार होने का ढिंढोरा पीटने में अपनी शान समझते हैं वे यह भूल जाते हैं कि दूसरों की मुश्किल में वे स्वयं क्या करते रहे हैं
ईश्वर भारद्वाज (मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)

मंगलवार, 1 मार्च 2011

मार्गदर्शक - लक्ष्य जो मैंने तय किए हैं

प्रतिभा विकास अभियान

शैक्षणिक , सांस्कृतिक , खेल , साहित्यिक , सामाजिक , राजनैतिक , कैरियर , व्यवसायिक व कला आदि क्षेत्रों में सर्वांगीण विकास के दृष्टिगत प्रतिभा का समग्र विकास

इसके लिए सभी साथ मिलकर अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार योगदान करें

योगदान शारीरिक , मानसिक व आर्थिक हो सकता है

जो अनुभव हमने प्राप्त किया है , उसे नई पीढी के साथ बांटा जाए

इसके लिए

जहां भी जब भी अवसर मिले , इस बारे में विचार किया जाए

हम सब क्या कर सकते हैं , इस बारे में आपस में चर्चा की जाए

सुझावों पर विचार विमर्श करते हुए उन्हें लागू करने हेतु कदम उठाए जेम

बाल प्रतिभोम व युवाओं को नक़ल जैसी कुप्रवृति की हानियां समझाई जाएं

धन का लालच देकर नहीं , अपनी प्रतिभा के बल पर जीवन में प्रगति करने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाए

आवश्यक सलाह व मार्गदर्शन दिया जाए

जहां हम पहुंचना चाहते थे पर किसी कारणवश नहीं पहुंच पाए, अपने अनुभवों के आधार पर नई पीढी को उनसे अवगत कराया जाए ताकि वे इसके प्रति सतर्क रहें और उन्हें लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिल सके

महिलओं को शिक्षित करने पर विशेष बल दिया जाए

प्रौढ़ शिक्षा में बढ़चढ़ कर योगदान किया जाए

स्वयं को दीनहीन समझाने की प्रवृति को दूर किया जाए

खेल प्रतिभोम का मार्गदर्शन किया जाए व यथासंभव सहायता की जाए खेल स्पर्द्धाएं आयोजित कराई जाएं

संस्कृतिक व साहित्यिक परिवेश में प्रतिभोम को प्रदर्शन का अवसर मिलाना चाहिए ; इसके लिए समग्र प्रयास किए जाएं

सामाजिक व राजनैतिक जागरूकता के लिए प्रतिभाओं को इस तरह जागरुक किया जाए कि सामाजिक व राजनैतिक प्रदूषण दूर किया जा सके


आर्थिक रूप से सुदृढ़ समाज प्रगति का सूचक मन जाता है ; इसके लिए कैरियर व व्यवसाय की दिशा में प्रतिभाओं का मार्गदर्शन किया जाए

किसी भी तरह की कला को प्रोत्साहित करने के लिए यथासंभव सहायता उपलब्ध करने हेतु योगदान किया जाए

संपर्क - सूत्र : ईश्वर भारद्वाज मो: 9355719445 ( हरियाणा ) , Email: bhardwajishwar001@gmail.com

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

we r legging behind

i was busy as my computer was facing technical problems and a new connection by bsnl is not cooperating. rather some problems have been added by the virus caused by the connection. i was also in fix as sometimes devnagri script enabled whereas on some occasions it is not available. i m also busy with my new born grandson "jayendu" at ahmedbad born on 2.2.11. also my daughter and her 3 yrs lod daughter "priyanshi" is here 4 some days. im returning 2 my hometown the day after tomorrow.then, i hope, i shall be able 2 write the blog rergularly.
ishwar bhardwaj (my other blog is "parat-dar-parat")