गुरुवार, 5 नवंबर 2009

एक अंग्रेज-भगत की चाशनी

आज के टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सम्पादकीय पृष्ठ पर मिस्टर (उन्हें हिन्दी में उपाधि शायद अच्छी न लगे ) सी वी सुकुमारन का लिखा लेख पढ़ने का मौका मिला। जनाबने अपने आपको अंग्रेजी और अंग्रेजों का भगत दिखाने में कोई कसर नहीं छोडी। हिन्दी अथवा भारतीय भाषाओं को हीनता का प्रतीक दिखाने की पुरजोर कोशिश करते हुए उन्होंने अपने अंग्रेजी ज्ञान दिखाने की चाह में बहुत से असामान्य शब्दों का प्रयोग करते हुए सिद्ध करने की कोशिश की कि उनका अंग्रेजी ज्ञान किसी अंग्रेज से किसी भी तरह कम नहीं है। इसके समर्थन में उन्होंने अंग्रेजी में लिखने वाले कुछ चुनिन्दा विदेशी लेखकों के नाम भी दिए हैं जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी से इतर भाषा थी। अपने लेख में उन्होंने भारत में अंग्रेजी का विरोध व अन्य अंग्रेजी बातों व वस्तुओं का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने के लिए राजनेताओं पर अपना नजला गिराने में पूरा जोर लगाया है। इस सन्दर्भ में उन्होंने केरल में संस्कृत विरोधी आंदोलन व इसके औंधे मुंह गिरने का भी उदाहरण दिया। वे मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर देने वालों पर भी बरसे और उनके बच्चों के अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने पर कटाक्ष भी किया। शायद वे अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त करने और अंग्रेजी को ही राजकाज के कामकाज की भाषा बनाए जाने में अन्तर नहीं कर पा रहे थे। अब अंग्रेजी अखबार ने तो इसके प्रकाशन से अपने कर्त्तव्य का निर्वाह ही किया है क्योंकि अंग्रेजी के पक्ष और अन्य भारतीय भाषाओं के विपक्ष में प्राप्त सामग्री को छापना तो उनकी जीवनरेखा है.
(also read my blog "parat dar parat")

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें