बुधवार, 14 नवंबर 2012

फिर आ रहा है प्रेस दिवस 


16 नवम्बर को प्रति वर्ष देश भर में प्रैस दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन 1966 में प्रथम प्रेस आयोग की सिफारिश पर भारतीय प्रैस परिषद की स्थापना की गयी थी। इसके प्रमुख उद्देश्य के रूप में प्रैस के उच्च मानदंडों  के अनुसार प्रेस व मीडिया द्वारा जिम्मेवारी के साथ अपने क्र्त्ताव्योम का निर्वाहना किया जाना और उसके इस कत्तव्य पालना में उसे हर तरह के दबाव आदि से मुक्त रखना था। हर वर्ष इस दिन जगह जगह सेमिनार व संगोष्ठी आयोजित की जाती हैं। मीडिया व सर्कार दोनों की ही भूमिका की समीक्षा होती है और कुछ्नाए सुझाव व् संकल्प लिए जाते हैं। शायद कहीं कभी किसी और कुछ असर होता भी हो। लेकिन न तो उल्लंघन करने वाले उधर से आते हैं और न ही इधर से कोइ गंभीरता दिखाए देती है। फिर भी परम्परा निभाए जा रही है साल दर साल, बेशक अनेक पत्रकार बंधू इस को कोए खास महत्त्व न देते हों । 
ईश्वर चन्द्र भारद्वाज 

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बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

tu meri chhupa main teri dhak doon

तू मेरी छुपा मैं तेरी ढक दूँ 

राजनीति बड़ी विशिष्ट चीज है। यहाँ के भ्रष्टाचार रुपी हमाम में सभी तो नंगे हैं। फिर भला कोई किस पर ऊँगली उठाए और कौन किस पर क्या आरोप लगाए। जब कोइ एक भ्रष्टाचार के गर्त में डूबता दीखता है तो भाई लोग पहले तो कुछ समझ नहीं पाते और जब समझने लगते हैं तो पासा पलटकर विरोधी दल पर गाज गिराने लगता है। फिर तो चोर चोर मौसेरे भाई की तरह वे मिलकर आरोप लगाने वाले को घेरने को एकजुट हो जाते हैं। फिर आरोप बाबा रामदेव ने लगे हों या एना हरे ने अथवा केजरीवाल ने। इनकी एकजुट देखते ही बनती है।   कांग्रेस पर लगे आरोपों पर मजे लेने के बाद बीजेपी जब खुद इन आरोपों की शिकार हुई तो कई कांग्रेसी भाई भी बचाव में आ खड़े हुए और आरोप लगाने वालों को ही कटघरे में खड़ा करने लगे। बेशक कुछ विरोधी व हमपार्टी सदस्य अंदर ही इस बात को लेकर खुश थे की उनके हमाम में वे अकेले नहीं हैं। विरोधी धुरंधर भी आन फंसे हैं। फिर शुरू होता है उनका सुर में सुर मिलाने का सिद्धान्तहीन आलाप। फिर भला भ्रष्टाचार मिटने का सपना साकार होना तो दूर,ऐसा सपना आना भी शुरू नहीं होने वाला नहीं , ऐसा लगता है। 


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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

यहाँ किसी को किसी पर विश्वास नहीं 

सब डरे डरे से हैं कि  कहीं सामने वाला कोई चालाकी तो नहीं खेल रहा है। बाबा रामदेव को डर  है कि अन्ना की टीम के सदस्य न जाने कौनसा दांव खेल कर उनकी छवि को ग्रहण लगा दें। यहाँ तक कि अन्ना जी को भी अपने सहयोगियों में काली भेड़ें होने की आशंका बनी रहती है। इसी कारण वे अपनी टीम को कई बार भंग कर चुके हैं। ममता दीदी को कांग्रेस पर विश्वास न रहा और उन्होंने अलग राह पकड ली। मुलायम जी को बेशक माया मैडम पर भरोसा नहीं है। इसीके दृष्टिगत मन मारकर वो उनके साथ ही कांग्रेस की ताकत बढा  रहे है। साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश व् मूल्यों में बढ़ोतरी के खिलाफ विपक्षी दलों के बंद में भी शामिल हो रहे हैं। जयललिता को करूणानिधि पर कैसे विश्वास हो सकता है? इधर रविशंकर से खार खाए बैठे येदुरप्पा  बार बार कर्नाटक में भाजपा आलाकमान के सामने ऑंखें तरेर रहे हैं। अब आप ही सोचिए की नीतीश  कुमार नरेन्द्र मोदी के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं जबकि लोग मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की बातें करते हैं। इसी कारण  नीतीश ने शरद भाई को सलाह दे डाली कि गुजरात में राजग के साथ नहीं उसके विरुद्ध चुनाव लड़ा जाए। उपर से एक लगने वाले भाजपा व् हजकां भी खुलकर अपने पत्ते नहीं खोल रही हैं। प्रदेश की पार्टियों पर विश्वास न होने कारण चौटाला जी पंजाब में अकाली दल से प्रेम निरंतर बनाए हुए हैं।यही घालमेल और गोलमाल देश हित में कैसे हो सकता है यह अंदाजा आप  खुद ही लगा सकते हैं।   

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बुधवार, 26 सितंबर 2012

 वही पुराना खेल पैसे सिफारिश की रेलमपेल 

मैंने जब से होश संभाला है दो राजनैतिक कलाबाजियों को देखा भी है और भोगा भी है।  पहली तो यह कि नौजवानों को नौकरी के लिए पढाई की नहीं सिफारिश और धन की जरूरत है। इसी कारण युवाओं का पढाई में रुझान दिन प्रतिदिन घटता जा रहा है और युवा मजबूर हैं नकल के सहारे केवल परीक्षाओं को पास करने को। इससे भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता जा रहा है। पूरा देश त्रस्त  है इस महाराक्षस से। दूसरी बात जो मुझे नागवार गुजरी वह है थोक में दल बदल। इससे वैसे तो पूरा देश ही ग्रस्त है, पर हरियाणा के आयाराम गयाराम तो देश भर में कुख्यात हैं। इसने ही राजनीति  में भ्रष्ट आचरण को सातवें असमान पर पहुंचा दिया है। पहले यह सत्ता सुख पाने के लिए शुरू हुआ और फिर करोड़ों लेकर सत्ता सुख भी लिया जाने लगा। इसी कर्ण चुनावों में येनकेन प्रकारेण अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मतदाताओं को भी धनादि का लालच दिया जाने लगा और भ्रष्टाचार ने निचे से उपर तक अपनी पैठ बना ली। आज तो राजनीति  में भ्रष्टाचरण द्वारा मिलबांट कर कमाई करने की सूची में पैसे लेकर नौकरी देना भी शामिल हो चुका है। इसीलिए सत्ताधारी दल के विधायक अधिक फायदे  में हैं।

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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

कई दिन बाद ब्लॉग लिखने का मौका मिला। पहले तो फोन खराब, फिर इन्टरनेट और कम्प्यूटर में समस्या। बस इसी तरह दिन बीतते बिताते महीने से भी ज्यादा समय लग गया और मैं ब्लॉग पर आ ही नहीं पाया। इस दौरान अनेक परिवर्तन हुए अनेक साथी छूटे  और अनेक जुड़े। अभी भी यह सिलसिला चल ही रहा है।हर और नयापन, हर दिशा में परिवर्तन की लहर। अब जल्दी ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आने  के लिए रास्ता साफ करने की सरकार  की कवायद और विपक्ष की
हायतौबा दर्शा रही है की जनता तो इस खेल में पीछे छूट  गयी है।

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रविवार, 5 अगस्त 2012

जीवन में  लोगों  को अनेक तरह के उतार चढ़ाव देखने को मिलते हैं कभी कभी तो वह इनसे घबराकर जीवन को ही अलविदा कहने का मन बना लेता है और वह करने को तत्पर हो जाता है जिसकी कल्पना  नहीं की जा सकती यह भी एक बड़ी विडम्बना है।

सोमवार, 23 जुलाई 2012

attack on baba ramdev

ये खबर हमारे कुछ राजनेताओं को बेशक खुश करे कि मध्यप्रदेश में कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने बाबा  रामदेव के काफिले पर हमला किया व स्वयं बाबा की गाडी पर भी लाठियों से वार किए जिससे गाडी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी। इस घटना में कुछ पुलिस अधिकारी व कर्मचारी तथा अन्य कई लोग घायल हो गए थे। इस के बाद एक कांग्रेसी नेता का बयान आया था कि  हमारे कार्यकर्ताओं ने रामदेव को सभास्थल से खदेड़ दिया और सभा नहीं करने  दी। अपनी पीठ थपथपाने वाले इस बयां से वे नेता शायद  अपने आकाओं को खुश करने की कोशिश करने की नीयत से बोले हों, लेकिन ऐसी मोर्ख्तापूर्ण बयानबाजी का  लोकतंत्र  में कोई   स्थान नहीं है।

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शनिवार, 7 जुलाई 2012

phir wahi ....

इस बार फिर दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे को जंतर मंतर पर अनशन करने की अनुमति न देकर अपनी राजनैतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है। इतने बडे  जन आन्दोलन को दबाने के ऐसे ओछे हथियार को अपनाने की उम्मीद तो इस सरकार से थी ही। लेकिन बेतुके तर्क देकर उसने अपनी फजीहत ही कराई है। सांसदों को तो यह सब देखना ही चाहिए था कि देश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता किस प्रकार एकजुट होकर आंदोलित है और सांसदों को उनकी मांग पर ध्यान देना ही चाहिए क्योंकि जनता ने ही सांसदों को चुनकर भेजा है ताकि वे स्वच्छ व पारदर्शी प्रशासन दें और देश की प्रगति में बाधक  भ्रष्टाचार व इसके पोषकों पर नकेल कसने के लिए सशक्त जन लोकपाल की पैरवी करें।| बल्कि वे मिलकर जनता को लूटने की इस व्यवस्था को समूल नष्ट करने के लिए संसद में पुरजोर वकालत करें।|

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सोमवार, 18 जून 2012

rashttraptibhavan- a political field

राष्ट्रपति भवन में अपने चहेते व्यक्ति को भेजने के लिए सभी राजनैतिक दल अपनी राजनीति व रणनीति रच रहे हैं। लोकतन्त्र में यह स्वाभाविक भी है। लेकिन इसके लिए एक स्वच्छ छवि व बेदाग़ दामन वाले व्यक्ति को सर्वसम्मति से चुनने के प्रयास किए जाएं तो देश व समाज के हित में होगा। किन्तु दुर्भाग्यवश राजनैतिक हितों के टकराव के कारण ऐसा नहीं होता है और राष्ट्रपति भवन में अपने पक्ष में फैसले कराने की गरज से अपने अपने उम्मीदवार खड़े किए जाते हैं और इस कारण अकारण ही राष्ट्रपति भवन को राजनीती का अखाडा बना दिया जाता है।

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बुधवार, 13 जून 2012

summer vacation camp in schools

आजकल स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियाँ हैं। इस कारण कई स्कूलों में   सम्मर कैम्प का आयोजन किया जा रहा है। इन कैम्पों के माध्यम से बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार विभिन्न गतिविधियों  में अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर देने की बात कही जाती है। इनमें विभिन्न विषयों के  जानकारों   को बुलाकर बच्चों को  विभिन्न प्रकार की जानकारी दी जाती है। ये अच्छे  और  शुभ   संकेत हैं। यह बात दीगर है कि हर बात में  हमेशा ही सुधार  की गुंजायश बनी रहती है। अत: इस कार्य में सुधार की ओर हम विभाग का ध्यान दिलाना चाहते हैं। आशा है इन कैम्पों के द्वारा नैतिक  शिक्षा  व्  व्यक्तित्व विकास पर ध्यान देते हुए कुछ विषयों को अवश्य ही शामिल किया जाएगा।

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शनिवार, 9 जून 2012

भाजपा की अंतर्कलह
इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस जैसी अंतर्कलह चल रही है। कर्णाटक में पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा अपने बागी तेवरों से जहाँ हाईकमान को परेशान  किए हुए हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी हैसियत के बलबूते संजय जोशी जैसे स्तम्भ को पार्टी से निकलवाने में सफल रहे। राजस्थान में वसुंधरा राजे के बागी तेवरों पर भले ही काबू पलिया गया है, किन्तु आग  अभी भी सुलग रही है। इससे पहले महाराष्ट्र में गोपीनाथ मुंडे अपनी अलग डफली बजाते बजाते रह गए। एक अनुशासित पार्टी मानी जाने वाली पारी में आजकल उच्च स्तर पर चल रहे मतभेद भी किसी से छुपे नहीं हैं। राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका में नजर आने वाली इस पार्टी से जनता को बहुत उम्मीदें हैं। कांग्रेस नीत  संप्रग के विकल्प के रूप में जनता को भाजपा नीत  राजग अपनी आशाओं पर खरा उतरने वाला लगता है। लेकिन इसमें चल रही उठापटक व उच्च स्तर पर आई दरारें उनके मन में संशय पैदा कर रही हैं।
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गुरुवार, 31 मई 2012

what cannot be cured must be endured

it has been since long that i feel the heat of my friends' foolishness and cowardice work in the past. for that i have to face a lot of harassment. he had no intention to do anything to let me face such awkwardness, but unfortunately it is true. later he felt it and sent me a sorry throug a common friend. that was a good gesture. bu i had to loose a very rare opportunity due to that. but it is also true that it is useless crying over spilt milk.
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मंगलवार, 22 मई 2012

phir vahee dhak ke teen paat.

aaj phir ek train looti gaee aur vo bhi dilli men. itana hee naheen, august kranti ke pahale dare ke yatriyon ko loota gaya desh kee rajdhani men, sarkar men baithe neta apne upar koee bhee jimmevaree lene ko taiyar naheen, bas bahas karate hain annahajare aur ramdev ko dabaane ke aochhe hathkandon ko sahee batane ke lie. bechare aur kar bhee kya sakte hain. mafiyaon ke hathon men desh aur ye phir bhee safedposh.hairanee hai,dhikkar hai aisee akrmanyata par use bachane ke lie apnae ja rahe aochhe hathakndon par.

सोमवार, 21 मई 2012

आई पी एल फिर विवादों में

आई.पी.एल फिर विवादों में है इस बार इसके खिलाडियों व इसके पैरोकारों की कारगुजारियों को लेकर है और वो भी होटल में आयोजित रेव पार्टी और उसमें की गयी छेड़छाड़ को लेकर अधिक चर्चा में है रेव पार्टी के आयोजन में किनका हाथ है, यह भी रहस्य बना हुआ है और वे इसका आयोजन किस लिए कर रहे है, यह अधिक चिंता का विषय है ज्ञातव्य है कि इस तरह की पार्टियों में नशा और दारू बेतहाशा प्रयोग होता है और उसका खर्चा भी उसमें भाग लेने वालों से नहीं लिया जाता है यही चिंता की जड़ है इसके पीछे मादक पदार्थों के तस्करों का हाथ माना जा रहा है इसकी गहराई से जाँच की जानी अनिवार्य है
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गुरुवार, 17 मई 2012

..... नहीं तो मरियो नाई बाह्मण

हम भारत में एक चलन देखते आ रहे हैं कि अपने ऊपर किसी भी तरह की जिम्मेदारी न आने दो और किसी भी गलती के लिए सारा दोष दूसरों पर डालते हुए मजे से अपने कार्य को किए बिना ही उसके होने का श्रेय लिए जाओ इस बारे में एक हरियाणवी कहावत यहाँ बिलकुल सटीक बैठती है कि आच्छी हो ज्या तो म्हारी के भाग नहीं तो मरियो नाई बाह्मण

शुक्रवार, 4 मई 2012

Tackling children in their early youth

It has become a fashion among the children these days to disobey and replying rudely to the advices of their elders. They take it granted that their elders are bound to tolerate anything they do. It is a dangerous thing and needs to be curbed. It does not necessarily to be done with an iron hand but it should be amicable.    

रविवार, 29 अप्रैल 2012

वाह  मदर इण्डिया !

अभी हाल में बिहार के दरभंगा में एक माँ ने अपने खूनी बेटे के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराकर न केवल उसे कानून के हवाले किया, अपितु अपनी पोती की गवाही के साथ अपनी पत्नी के हत्यारे उस बेटे को सलाखों के पीछे पहुंचवा दिया। रिपोर्ट के अनुसार सरस्वती देवी नामक  इस महिला  के  बेटे ने मामूली कहासुनी के बाद  अपनी पत्नी ई हत्या कर दी तो उसकी नाबालिग  बेटी ने शोर मचाया  जिसे सुनकर लड़के माँ सरस्वती देवी व् अन्य पडौसी वहां इकट्ठे हो गए। उस समय सरस्वती देवी की पुत्रवधू अपनी अंतिम सांसें ले रही थी। लोगों की भीड़ देखकर  हत्यारा वहां से भाग निकला।  तत्पश्चात सरस्वती देवी ने अपनी पोती को साथ लेकार अपने ही बेटे के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई और न्याय का साथ देते हुए पोती की गवाही के आधार पर अपने ही कलेजे के टुकड़े को सजा दिलाई। यह वाक्य सुनकर मदर इण्डिया फ़िल्म  की याद बरबस ही आ जाती है जिसमें माँ ने गलत राह पर चल रहे अपने ही कलेजे के टुकड़े को गोली मार दी थी।  इन दोनों मामलों में से किसी में भी माँ का दिल न रोया हो ऐसा नहीं है , दोनों में ही ममता ने न्याय का भी साथ दिया और माँ की आत्मा को भी नहीं मरने दिया। ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं। 
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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

haryanvi dialect and eighth schedule

हरियाणवी बोली और आठवीं  अनुसूची

अब इसे विडम्बना  कहें या नेताओं की अपनी भाषा के प्रति उदासीनता कि अभी तक हरियाणवी बोली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए कोई विशेष सार्थक प्रयास नहीं किए गए हैं। कभी कभार इक्का दुक्का नेताओं ने इस बारे में आवाज उठाई तो, लेकिन बीच में ही उसे छोड़ दिया गया या इसे छुडवा दिया गया। आज फिर कुरुक्षेत्र के सांसद नवीन जिंदल ने इस बारे में आंकड़े देते  हुए अपनी आवाज बुलंद की है। लोकसभा में इस बारे में बोलते हुए नवीन ने तथ्यात्मक जानकारी दी कि हरियाणा के साथ साथ हरियाणा से सटे उत्तर प्रदेश के जिलों, पंजाब व् राजस्थान के चार करोड़ से अधिक लोगों द्वारा यह भाषा बोली व् समझी जाती है। इस बारे में काफी महत्व का साहित्य भी प्राचीन कल सी रचा जा रहा  है।उनकी इस मांग के बारे में सरकार की ओर से कहा गया कि यदि हरियाणा सरकार इस बारे में संस्तुति भेजती है तो उस पर विचार किया जाएगा। तो अभीतक राज्य सरकार इस बारे में सो रही थी अथवा उसे इस महत्ता के बारे में उसे जानकरी नहीं थी या फिर आधिकारियों की मर्जी के अनुसार नेतागण भी इस तरह के  किसी भी प्रस्ताव से बचते रहे और संस्तुति नहीं कि गयी| अधिकारियों की उदासीनता तो समझ में कुछ हद तक इस कारण आ सकती है कि अभीतक हिन्दी के नाम पर नाक  भौं सिकोड़ने वाले ये लोग एक नया पंगा क्यों लेते? लेकिन राजनेताओं की उदासीनता कतई समझ से परे है। अब भी नवीन जिंदल के साथ मिलकर इस बारे में आगे कदम बढाया जाए तो  देर आये  दुरुस्त आये  के अनुसार आगे पहल की जा सकती है ।
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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

no ameriki vija 4 modi

मोदी को वीजा दे भी तो कैसे?

एक अमेरिकी सांसद द्वारा लिखे पत्र के जवाब में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान कोइ हैरान या परेशान करने वाला नहीं है  कि उनके देश में आने के लिए मोदी को वीजा  देने के बारे में उनकी सरकार की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। सीधा सा अर्थ है कि मोदी को अमेरिका जाने के लिए वीजा नहीं देने के अपने पूर्व के फैसले पर अमेरिका अडिग है। बात बिलकुल ही सीधी है कि भारत में सियासी हालत ऐसे हैं कि गुजरात  में मोदी के प्रगति के आयामों का मुकाबला करने में केंद्र सरकार तक असमर्थ हैं और अन्य किसी राज्य के मुकाबले गुजरात की प्रगति की गति सर्वाधिक है। इससे अनेक ईर्ष्यालु राजनेता हैं जो कि अपना प्रभाव अमेरिका तक रखते हैं और वे मोदी को मुसलमानों का हत्यारा बताने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं। उधर हमारे पडौसी मुल्क पाकिस्तान को भला कैसे नाराज करे अमेरिका क्योंकि पाकिस्तान से बढ़िया पिछलग्गू और जी हुजूरी वाले साथी को ढूँढना, और वो भी चीन जैसे पारम्परिक दुश्मन के पास, कोई आसन काम नहीं है। अमेरिका के इस दोस्त को मोदी तो फूटी आँख नहीं सुहाता है क्योंकि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों ने मिलकर मोदी की तस्वीर कुछ इस तरह की बना दी है कि वे मोदी को मुसलमानों का हत्यारा मानते हैं।अब अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है कि अमेरिका मोदी को वीजा न देने की अपनी नीति पर क्यों कायम है? 
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गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

a good start,let us hope to continue

यह सिलसिला चलते रहना चाहिए आज एक सुखद एहसास हुआ इस बात को लेकर कि पानीपत   जिला प्रशासन के आला अधिकारियों की टीम जिले के सुदूरवर्ती गाँव उरलाना कलां, जोकि मेरा जन्मस्थान है और वर्तमान में कार्यस्थल भी, में पधारी । इस अवसर पर गाँव के लोगों को अपने जिले के उच्चतम पदों  पर आसीन अधिकारियों  से  आमने सामने बात करने का मौका मिला तो वे गदगद हो गए।ग्राम पंचायत सहित अनेक लोगों ने मांग-पत्र  व अपने आवेदन-पत्र इस आस में दिए कि अब उनकी जरूर सुनी जाएगी। माहौल काफी सुकून भरा  था।  सभी अपनी अपनी शिकायतें-फरियादें लेकर एक दूसरे से आगे बढ़कर इस तरह प्रस्तुत करने की होड़ में थे मानो आज ही उनकी समस्याओं का हल उन्हें मिल  जाएगा।कई तो वहीं पर खड़े किसी न किसी को पकड़कर अपनी समस्या से सम्बन्धित  चिट्ठी लिखवाकर दे रहे थे। अधिकारियों ने भी बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनी और उनपर गौर करने का आश्वासन दिया। बेशक इन सभी समस्याओं का हल एक साथ निकल पाना मुश्किल है, फिर भी लोगों को इस बात का इत्मीनान था कि उनकी सुनने के लिए खुद जिले के आला अधिकारी आए हैं उनके अपने गाँव में, उनके बीच में। काश!  यह  सिलसिला  पहले से ही चला होता और लोगों से सीधे तौर पर फीडबैक लेकर अधिकारी अपने जिले की कार्य योजना  तैयार करते तो लोगों की अधिकतर समस्याएँ अपने आप ही सुलझ गयी होती। उम्मीद है कि भविष्य में यह सिलसिला जारी रहेगा और लोगों को अपनी बात कह भर लेने का ही सही, सुकून तो मिलता रहेगा। ---ईश्वर चन्द्र भारद्वाज----              

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

wel done vijay

शाबाश विजय
गुजरात कैडर  के  एक नव नियुक्त आई ए एस अधिकारी विजय खराड़ी  ने सामूहिक विवाह में शरीक होने का निमंत्रण  पाकर  उसी  अवसर पर अपना भी विवाह करा  एक इतिहास तो रचा ही, एक बहुत  सटीक और सार्थक  सन्देश  भी समाज को दिया है कि आज के इस तड़क भड़क वाले युग में भी सही दिशा प्रदान  करने के  लिए  स्वयं उदाहरणप्रस्तुत कर अधिक प्रभावशाली ढंग से समाज सुधार की दिशा में सार्थक पहल  की जा  सकती है। काश, आज हम ऐसे नवयुवकों से कुछ सबक लेते और झूठी आन-बान के लिए फिजूलखर्ची से  परहेज करते  और समाज को एक नई दिशा देते ।    

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

bhrasht ko bhrasht kaha to....

भ्रष्ट शासन व्यवस्था में रहते हुए भ्रष्टाचार के  खिलाफ  आन्दोलन  चलाने का परिणाम बाबा रामदेव  और अन्ना हजारे से बेहतर कौन जान सकता है। बाबा के संगठन में फूट डालने के सभी प्रयास विफल होते देख आधी रात को दिल्ली पुलिस की मदद से बाबा को ही उठवा लिया गया। बुजुर्गों एवं महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया। उन्हें बड़ी बेरहमी के साथ धरना स्थल से खदेड़ा गया। इधर अन्ना की गांधीगिरी के सामने अपने आपको बेबस महसूस करते हुए सरकार ने नया दांव खेला और अग्निवेश जैसे अवसरवादी को उनसे अलग कर दिया तथा उससे अन्ना के बारे में अनाप शनाप कहलवाया गया। फिर उनके एक सहायक को को अलग किया गया। बाद में अन्ना टीम के सदस्यों के बीच मनमुटाव को तूल देने की भरपूर कोशिश की गयी। कई सदस्यों को उसी तरह घेरने की चालें चली गयी. ऐसी ही चाल बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के विरुद्ध भी रची गयी थी। अब टीम अन्ना के ही सदस्य मौलाना काज़मी को पाला बदल कराकर अपने सुरों में बोलने के लिए तैयार कर लिया गया । टीम अन्ना हो या बाबा रामदेव का संगठन आपसी विचार कहीं न कहीं मेल न खाना स्वाभाविक है। क्या सरकार में बैठे सभी लोगों के बीच मतभेद नहीं हैं। होते हैं। स्वाभाविक है यह। फिर टीम अन्ना के लोगों के बीच के मतभेद ही क्यों उछाले जाते हैं। साफ बात है भ्रष्ट शासन में सत्ता में बैठे लोग अपने बचाव के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। साम दाम दंड भेद में से कीई भी साधन अपना सकते हैं। वही हो रहा है।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

jivn ke lakshy ko pane ke lie sadhan ko parakho

हम जीवन में अपने  लक्ष्य को पाने के लिए, अपने  निश्चय को मूर्तरूप देने के लिए सदा लालायित रहते हैं। यह अलग बात है कि लक्ष्य तक पहुँचते पहुँचते अनेक रुकावटें अनेक अडचनें आती हैं। लक्ष्य प्राप्ति के प्रति दृढ निश्चय की स्थिति में ये सब बौनी  साबित होती हैं और इन्सान अपने लक्ष्य को पाने तक अविरल प्रयास करते हुए सफलता की सभी सीढियाँ चढ़ लेता है। बेशक यह सब इतना आसान नहीं होता। परन्तु धैर्य खोए बिना निरंतर लक्ष्यपथ पर अग्रसर होते हुए हम सभी तरह की विघ्न बाधाओं को पार कर लेंगे यह सोचकर अपना कार्य सही दिशा में करते रहने से हिम्मत के साथ साथ लक्ष्य से नजदीकियां भी बढ़ती जाती हैं। शुरुआत में कुछ विचलित करने वाली अडचनें ऐसी आती हैं जो इन्सान को बहुत दुखी  कर देती हैं और उसे अपने आप पर विश्वास में कमी सी महसूस होने लगती है। ऐसी स्थिति में अपने साधनों पर पुनर्विचार की जरुरत होती है और तदनुसार आवश्यक सुधार कर लेने से राह कुछ सरल हो ही जाती है।चलना भी सहज हो जाता है।  इसे अजमाया जाना चाहिए। 
मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

jindagi jo de vahee sahee hai, maan lo...

जिन्दगी जो दे वही सही है

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दे भी क्या खाक जिया करते हैं ।यह बात हम बहुत पहले से सुनते आ रहे हैं। न जाने किसी ने क्या सोचकर कही थी यह बात जो आज जिन्दगी से हारने की दहलीज पर आ चुके अनेक लोगों के लिए संजीवनी से कम नहीं। हम हर तरह से संभलकर चलने की भरपूर कोशिश करते हुए भी कभी कभी जिन्दगी के ऐसे दलदल में फंस जाते हैं जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती।  प्राय: उस कसूर की सजा भी हमें भुगतनी पड़ जाती है जो हमने किया ही नहीं होता । यह विडम्बना सभी को कभी न कभी किसी न किसी  रूप  में भोगनी पड़ती  है ;  चाहे  मानें या न मानें। जिन्दगी के कड़वे घूँट न चाहते हुए भी पीने पड़ते हैं- चुपचाप। न गिला  न शिकवा ।  इसके लिए कोई गुंजायश ही न छोडी जाती। फांसी पर चढ़ने  वाले से भी  बुरा हाल हो जाता है  इंसान  का। कोई सुनवाई नहीं; यदि है तो बेमतलब, बेनतीजा। ऐसी स्थिति में इन्सान निराश और उदास हो जाता है, अवसाद से भर जाता है। कई बार हालत के वशीभूत होकर बहुत भयानक कदम उठा लेता है जिससे उसकी जिन्दगी तो बर्बाद हो ही जाती है, कई औरों को भी लपेट लेता है। किन्तु यह सही नहीं है। ऐसे समय पर ही जिन्दगी की जिन्दादिली काम आती है। इस स्थिति में सामान्य व  सहज तथा  शांत  रहना  निहायत जरुरी है। बस यह मानकर अच्छे वक्त के आने का इंतज़ार करे कि जिन्दगी जो दे वही सही है।  
मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat 

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

jalta diya lalta rahe

जलता दीया जलता  रहे

हम सभी एक आदत से लाचार हैं कि सामने वाले को अपने से कम समझदार व अकलमंद मानकर चलते हैं और अपने विचारों को ही सर्वोत्तम व सर्वोपरि मानते हैं। इस धुन में हम अपने अवगुणों को भी अपनी विशेषता कहकर दूसरों का मुंह बंद करने की कोशिश  करते हैं जिसकारण प्राय: मुंह की खानी  पड़ती है और शर्मसार भी होना पड़ता है। ऐसा बार बार होता है और इस तरह यह आदत में शुमार हो जाता है। फिर हम इसे स्वाभाविक मानकर चलते हैं और अंतत: अकेले पड़ जाते हैं. इसके लिए भी हम दुनिया को ही दोषी ठहराते हैं और अपने आप  को बेकसूर ।

रविवार, 18 मार्च 2012

मानव तेरी दुनिया में
मानव तेरी दुनिया में
यह क्या हो रहा है ;
एक ओर जलते भवन
बिकते जिस्म
दूसरी ओर राजनीति
जले घरों की राख पर
मरे जनों की लाश पर
एक तरफ भूख गरीबी
बहुमत  में बदनसीबी
दूसरी तरफ विकास का ढिंढोरा
लगता है दिखावा कोरा
यहाँ भूख मिटाने को रोटी नहीं
नंगा तन ढकने को धोती नहीं
वहां खाने बहुत पर भूख नहीं
कपडे बहुत पर उनमें सलूक नहीं
कहीं प्रतिभा  दम तोड़ रही

जवानियाँ बम फोड़ रहीं
कहीं खरीदी जा रही डिग्री
धन के आगे मानवता हिली
दंगे कहीं हो रहे धर्म के नाम पर
कर्णभेदी शोर है कर्म के नाम पर
कहीं धर्म की मर्यादा तोड़ते धर्मी
मिलें कुकर्मों में लिप्त शोरकर्मी
काम क्रोध लोभ मोह
त्यागने का उपदेश दे जो
इन्हीं विकारों में लिप्त वो
करें व्यर्थ उसी उपदेश को
मानवता की बात वो कर रहे
धर्मनिरपेक्षता  का दम भर रहे
बाँट इंसानों को आज वो डटे हैं
दंगाइयों के सरताज जो बने हैं
किस किस को क्या क्या कहें
बेहतर है इतने में ही चुप रहें
हो चुकी जहाँ लाइलाज बीमारी है
वहां चुप रहना मजबूरी हमारी है
लेकिन मानव तेरी दुनिया की
ये हालत देखकर हताश हूँ
फिर भी तेरी असीम शक्ति को
जानते हुए मैं नहीं निराश हूँ. 

-ईश्वर   भरद्वाज



बुधवार, 11 जनवरी 2012