शनिवार, 21 नवंबर 2009

इक इक नु की रोइए ऊत गिया इ आवा

पंजाबी की इस कहावत को यहां लिखने का मंतव्य इतना ही है कि महाराष्ट्र में जो ड्रामा चाचा-भतीजा ब्रिगेड के गुंडों ने किया और चाचा व भतीजे ने अपने अपने गुंडों को जो खुला समर्थन दिया वह बेशर्मी और मनमानी का जीता जागता सबूत है।इसके लिए उन्हें नियमों के अनुसार दण्डित किया जाना जरूरी है। वरना मनमानी करने वालों का दु:साहस इतना बढ़ जाएगा कि दादागिरी व उदंडता का ही बोलबाला रह जाएगा। लेकिन यह उम्मीद किससे की जाए क्योंकि महाराष्ट्र की राज्य सरकार के मुख्यमंत्री व उप मुख्य मंत्री ने अपने अपने हिसाब से वोटों का गणित लगाया और तदनुसार वोट बैंक को ध्यान में रखकर अपनी-अपनी पार्टी लाइन के अनुसार मांग रख दी ताकि चाचा की शिव सेना व भतीजे की मनसे के मुकाबले उनकी पार्टियां क्रमश: कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वोट बैंक बनाने में कहीं पिछड़ न जाएं। मुख्य मंत्री अशोक चव्हान ने कहा है कि रेलवे में भर्ती में स्थानीय लोगों को वरीयता दी जाए, जबकि उप मुख्य मंत्री छगन भुजबल ने मुम्बई पुणे दुरंतो एक्सप्रेस गाडी का नाम सचिन के नाम पर रखने का सुझाव दे डाला। इससेपहले राज ठाकरे ने बम्बई स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाईट एक सप्ताह में मराठी में भी शुरू करने की चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसा न करने की स्थिति में अंजाम भुगतना होगा। उन्होंने बंबई स्टॉक एक्सचेंज का नाम बदलकर मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज करने को भी कहा है। कैसा लोकतंत्र चल रहा है यह। क्या महाराष्ट्र पर भारत का संविधान लागू नहीं होता है? यही बात हुई न कि एक एक को क्या रोएं यहां तो पूरा आवा ही ख़राब है। लगता है कि सभी उक्त पार्टियां जो भी कर रही हैं सिर्फ वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही कर रही हैं,देश हित को नहीं।
अlso read my blog : parat dar parat)

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