सोमवार, 30 नवंबर 2009

चंडीगढ़ का प्रशासन और पंजाब-हरियाणा

पिछले दिनों चंडीगढ़ फिर हरियाणा एवं पंजाब की राजनीति में गरमी लेकर आया। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के अनुसार चंडीगढ़ में फिर से मुख्य आयुक्त प्रणाली लागू की जाए , जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि यदि केन्द्र सरकार ने चंडीगढ़ में फिर से चीफ कमिश्नर प्रणाली को लागू करने का फैसला किया तो उसका डटकर विरोध किया जाएगा। हुड्डा ने फिर कहा कि यदि राज्यपाल को ही चंडीगढ़ का प्रशासक बनाए रखना है तो पंजाब और हरियाणा के राज्यपालों को बारी-बारी से यह कार्य सौंपा जाए। इसके साथ ही सतलुज-यमुना संपर्क नहर का मुद्दा भी उठने लगा है। राजनीति गरमाने के साथ-साथ आपसी कटुता भी सर उठाने लगी है और इसके बाद जो होने की आशंका है उसे सोचकर ही दिल बैठने लगता है। अभीतक देश के इस धान्य देने वाले इलाके के इन राज्यों के साथ-साथ आसपास के इलाकों में भी समाज व देश विरोधी ताकतें अपना सर नहीं उठा पाईं थी,किंतु अब उनको मौक़ा मिल जाने का डर है। अत: दोनों राज्यों के साथ-साथ केन्द्र सरकार को भी इस मामले में त्वरित व सशक्त कदम उठाने चाहिएँ।
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शनिवार, 28 नवंबर 2009

हरियाणा में कांग्रेसियोँ को नसीहत

गत विधानसभा चुनावों में अपेक्षा से काफी कम सफलता मिलाने से तिलमिलाए हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के कार्यालय की ओर से अपने कई दिग्गज नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। ज्ञातव्य है की ये नोटिस प्रदेश चुनाव हारे नेताओं की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए भेजे गए हैं। इन नेताओं पर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के विरुद्ध कार्य कराने का आरोप है। इनमें बाहर से घुसे रणजीत सिंह व कुछ अन्य नेता भी शामिल हैं। इनपर भीतरघात के आरोप हैं। नोटिस पाने वालों मेंकिरण चौधरी, नवीन जिंदल, श्रुति चौधरी,डा के.वी.सिंह, जगदीश नेहरा,भगत सिंह छोक्कर,जाकिर हुसैन, मनीराम केहरवाल,होशियारीलाल शर्मा सहित बीसियों कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ ये नोटिस जारी किए गए हैं। कांग्रेस के लिए यह अच्छी बात है की उन्होंने ऐसा साहसिक कदम उठाकर अपनी राजनैतिक सूझबूझ व परिपक्वता का परिचय दिया है। काश अन्य पार्टियों में भी इनके इस कदम का स्वागत व अनुसरण किया जाए। (मेरा अन्य ब्लॉग : parat dar parat)

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

वाह ओबामा, शेम चिदंबरम

अमेरिका की यात्रा पर गए भारतीय प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह को दिए रात्रिभोज के अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने स्वागत भाषण की शुरुआत हिन्दी में करके भारतीयों का दिल जीतने का सुनहरा मौक़ा झपट लिया। यह उनकी कूटनीतिक व राजनैतिक सूझबूझ का परिचायक था। इसके लिए वे सराहना के पात्र हैं।
इधर हमारे देश के प्रधानमंत्री अपनी राष्ट्रभाषा का नाम तक लेना ही भूल गए। विदेश में जाकर देश की भाषा बोलने में शर्म महसूस करने वाले वे कोई पहले पहले भारतीय शासनाध्यक्ष नहीं हैं। उनसे पहले भी कुछेक को छोड़कर सभी ने अपनी भाषाई गुलामी का परिचय देने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा। वैसे भी स्वदेश में वे कौनसे अपनी राजभाषा का उपयोग करते हैं। कुछेक अवसरों को छोड़ दें तो वे अपने देश की भाषा को हीन दृष्टि से देखते हैं। यहां तो देश के गृहमंत्री तक हिन्दी दिवस का संदेश भी केवल अंग्रेजी में पढ़कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। गत १४ सितम्बर को देश के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने यही तो किया हिन्दी में सराहनीय कार्य करने के उपलक्ष्य में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में। क्या राजभाषा विभाग लागू करवा पाएगा ऐसे ऊलजलूल गृहमंत्री के नेतृत्व में राजभाषा, जो ख़ुद हिन्दी दिवस के अवसर पर दिए जाने वाले अपने भाषण का केवल अंग्रेजी रूप पढ़कर चलते बने। इससे तो मुझे पंजाबी में ट्रकों के पीछे लिखी ये उक्ति याद आती है: चल नी राणिये,तेरा रब राखा।
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मंगलवार, 24 नवंबर 2009

सच कह ही दिया ओबामा ने

भारतीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह आज अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के ख़ास मेहमान के रूपमें व्हाईट हाऊस में रात्रि भोज पर गए हैं, जहां उनके स्वागत में ओबामा ने अन्य बातों के साथ-साथ जो विशेष बात कही वो यह कि अमेरिका ने भारत को परमाणु शक्ति मान लिया है। अपने स्वागत भाषण में ओबामा ने यह बात कहते हुए कहा कि अमेरिका और भारत को मिलकर विश्व को परमाणु रहित बनाने की दिशा में प्रयास करने चाहियें। तरह-तरह के दबाव व हथकंडे अपनाने के बावजूद जब भारत ने घुटने नहीं टेकने और पूरे विश्व में मंदी के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था इससे अछूती रह जाने से प्रभावित विश्व को यह संदेश गया कि निरंतर प्रगति-पथ पर अग्रसर देश के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को नजरंदाज करना किसी के भी लाभ की बात नहीं है,अमेरिका के भी नहीं।। यही कारण है कि अमेरिका में भारतीय प्रधानमंत्री को इतना सम्मान व भारत को इतनी अहमियत यों ही नहीं दी जा रही। इसके पीछे अमेरिका के अपने आर्थिक व राजनैतिक हित काम कर रहे हैं।अभीतक भारत को अमेरिका ने पाकिस्तान के मुकाबले में खडा दिखाया व पाकिस्तान के बराबर ही मानते हुए अपने हित साधे। फिर उसने चीन को अपने पाले में लाने की गरज से उसकी शान में कशीदे पढ़े। अभीहल में अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी चीन यात्रा के दौरान कुछ विवादास्पद बातें कहकर भारत को नाराज कर दिया था। इसके प्रतिक्रया भी काफी कड़ी हुई थी और अमेरिका को सरकारी स्तर पर भी यह संदेश दे दिया गया था कि कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भारत को किसी भी तरह का दखल बर्दाश्त नहीं है। इसी झेंप को मिटाने के लिए अमेरिका ने अपनी नीति को बदलाव के रास्ते पर ले जाते हुए भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत में आयोजित समारोह में उक्त बात कही और उनके सम्मान में दी जा रहे रात्रि भोज में स्वयं ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा विशेष रूचि ले रही है। अब देखना यह है कि अमेरिका अपनी इस दोगली नीति को किस तरह संतुलित रख पाता है। आख़िर उस व्यापारी के लिए अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए भारत जैसे बड़े बाजार को नजरंदाज करना कोई आसान काम नहीं है।
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सोमवार, 23 नवंबर 2009

बाबरी मस्जिद का भूत

सत्रह बरस पहले भावावेश में जनसैलाब ने राममंदिर के ऊपर बनी बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था और तब से अपने राजनैतिक लाभ के लिए विभिन्न सत्तासीन व विपक्ष में बैठी पार्टियों ने इस मुद्दे को गाहे-बगाहे उठाने के भरपूर प्रयास किए । केन्द्र में उस समय बैठी कांग्रेस पार्टी ने इसके लिए अपनी पूरी राजनीतिक चाल चली और किसी न तरह ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए अथवा विरोधी पार्टी भाजपा के नेताओं को इसमें शामिल दिखाने के लिए लिब्राहन आयोग रूपी तुरुप के इक्के की चाल चली। एनी प्पर्तियोम ने भी इसे अपने अपने तौर पर भुनाए में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। यह रिपोर्ट व इसके अध्यक्ष पहले भी कई अनेक बार चर्चित रहे हैं। अब संसद के सत्र के चलते हुए भी यह रिपोर्ट संसद के पटल पर रखे जाने से पहले ही एक समाचार-पत्र में प्रकाशित हो गयी। अब वहां तक कैसे पहुंची,इस बारे में तो जांच से ही पता चलेगा, लेकिन इससे सरकार की मंशा पर प्रश्न-चिह्न तो लग ही गया है। (मेरा ब्लॉग parat dar parat भी देखें )

शनिवार, 21 नवंबर 2009

इक इक नु की रोइए ऊत गिया इ आवा

पंजाबी की इस कहावत को यहां लिखने का मंतव्य इतना ही है कि महाराष्ट्र में जो ड्रामा चाचा-भतीजा ब्रिगेड के गुंडों ने किया और चाचा व भतीजे ने अपने अपने गुंडों को जो खुला समर्थन दिया वह बेशर्मी और मनमानी का जीता जागता सबूत है।इसके लिए उन्हें नियमों के अनुसार दण्डित किया जाना जरूरी है। वरना मनमानी करने वालों का दु:साहस इतना बढ़ जाएगा कि दादागिरी व उदंडता का ही बोलबाला रह जाएगा। लेकिन यह उम्मीद किससे की जाए क्योंकि महाराष्ट्र की राज्य सरकार के मुख्यमंत्री व उप मुख्य मंत्री ने अपने अपने हिसाब से वोटों का गणित लगाया और तदनुसार वोट बैंक को ध्यान में रखकर अपनी-अपनी पार्टी लाइन के अनुसार मांग रख दी ताकि चाचा की शिव सेना व भतीजे की मनसे के मुकाबले उनकी पार्टियां क्रमश: कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वोट बैंक बनाने में कहीं पिछड़ न जाएं। मुख्य मंत्री अशोक चव्हान ने कहा है कि रेलवे में भर्ती में स्थानीय लोगों को वरीयता दी जाए, जबकि उप मुख्य मंत्री छगन भुजबल ने मुम्बई पुणे दुरंतो एक्सप्रेस गाडी का नाम सचिन के नाम पर रखने का सुझाव दे डाला। इससेपहले राज ठाकरे ने बम्बई स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाईट एक सप्ताह में मराठी में भी शुरू करने की चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसा न करने की स्थिति में अंजाम भुगतना होगा। उन्होंने बंबई स्टॉक एक्सचेंज का नाम बदलकर मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज करने को भी कहा है। कैसा लोकतंत्र चल रहा है यह। क्या महाराष्ट्र पर भारत का संविधान लागू नहीं होता है? यही बात हुई न कि एक एक को क्या रोएं यहां तो पूरा आवा ही ख़राब है। लगता है कि सभी उक्त पार्टियां जो भी कर रही हैं सिर्फ वोट बैंक को ध्यान में रखकर ही कर रही हैं,देश हित को नहीं।
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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

पत्रकारिता का तमगा लगाकर

महाराष्ट्र में दो गुंडों ने पूरी व्यवस्था को हाइजैक करनेकी कोशिश में एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ सी लगाई हुई है। तभी तो स्वयं पत्रकार का तमगा लगाकर अपने पात्र "सामना" में सबपर आग उगलने वाले बाल ठाकरे को अपने सिवा कोई पत्रकार प्रैस की आजादी के लायक नजर नहीं आता है। इसीलिए आज मुम्बई व पुणे में शिवसेना के गुंडों ने उत्पात मचाने में कोई कसर नहीं छोडी। एक न्यूज चैनल के दफ्तर में तोड़फोड़ करने व वहां कार्यरत कर्मचारियों के साथ मारपीट करने वाले इन गुंडों के होश तब ठिकाने आए जब कर्मचारियों ने भी इनका मुकाबला इन्हीं की स्टाइल में करने का फैसला लिया व इनमें से कईयों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। नहले पे दहले के लिए शिवसैनिक भी तैयार नहीं थे। इसी कारण उनमें से कुछ वहां से भागने में सफल हुए और अपनी जान बचाई । शिव सैनिकों की कार्रवाई का बेशर्मी के साथ समर्थन करते हुए संजय राउत नामक एक शिव सेना नेता ने कहा कि बाला साहेब ठाकरे के खिलाफ लिखने वाले किसी भी चेनल के साथ इसी तरह से पेश आया जाएगा। क्या दलील है अपने आपको पत्रकार कहकर उसका भरपूर दुरूपयोग करने की कोशिश में किसी दूसरे पत्रकार पर हमला बोलकर स्वयं लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर प्रहार करके क्या संदेश देना चाहते हैं ये बाल ठाकरे। इस प्रकरण में एक सकारात्म बात यह आई कि राज ठाकरे ने अपने चाचा की इस हरकत की भर्त्सना की है।(also read my blog: parat dar parat)

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

शशि थरूर बड़बोले न बनें

हमारे देश के विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर अपने आपको जरूरत से ज्यादा समझदार व होशियार समझनेके चक्कर में अक्सर विवादों में घिरे रहते हैं। ऐसा लगता है की उनको अपनी विवादित छवि बनाए रखने का चस्का सा पड़ा गया है। अब वे एक नए विवाद को यह कहकर जन्म दे चुके हैं कि वन्देमातरम का गायन करना किसी के लिए जरूरी नहीं है। इसे गाना या न गाना अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। इसे गाने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। नौकरशाहों की तरह बात करने की अपनी आदत को न छोड़ पाने के कारण वे एक अच्छे राजनेता तो क्या ठीक से नेता कहलाए जाने लायक भी नहीं हैं।अब उन्हें कौन समझाए कि वंदे मातरम देश की आजादी के संघर्ष से जुड़ा देशवासियों का भावनात्मक प्रवाह है जो अपनी मातृभूमि की प्रशंसा व उसके प्रति अपना आदरभाव प्रकट करने के लिए समस्त देशवासियों का नारा बना हुआ था। तब न तो उलेमाओं के फतवे थे और न ही शशि थरूर जैसे नौसीखिए नेता के स्वयंभू विचारक वाले विचारों का बेमतलब व असामयिक प्रकटीकरण। हम एक कहावत सुनते आ रहे हैं बचपन से ही कि आवश्यकता से अधिक व बेमतलब बोलने वाले की मूर्खता छिपी नहीं रह सकती। बेहतर हो यदि शशि थरूर चुप रहते हुए राजनीति सीखें और फिर समय आने पर मतलब की बात कहने की आदत डालें।(also read my blog: parat dar parat)

बुधवार, 18 नवंबर 2009

अब फिर खिसियाए ठाकरे

यह विवाद थम तो जाए लेकिन इस तरह के विवादों के सहारे अपनी राजनैतिक रोटियां सकने के आदी बालठाकरे को नींद कैसे आती। इसी लिए उन्होंने अपने समाचार-पत्र सामना में मुम्बई को सभी भारतीयों की बताने व राष्ट्रवाद के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने के कारण महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर पर ही निशाना साध दिया। अब बेचारे सचिन तेंदुलकर ने तो महाराष्ट्रियन होने के नाते राज ठाकरे की गुंडागर्दी के विरोध में यह बयान दिया होगा ताकि महाराष्ट्र की छवि पूरे देह व् दुनिया में बची रह सके किंतु बाल ठाकरे को यह इसलिए नागवार गुजरा होगा की पहले तो राज ठाकरे ने उसके हाथ से मराठी का मुद्दा छीन लिया और अब सचिन तेंदुलकर ने राज ठाकरे का विरोध करके एक और मौक़ा हथिया लिया। वैसे भी बाल ठाकरे अपनी मूल विचारधारा को छोड़कर सचिन की तरह के बयान देते यह तो सोचना ही बेमानी है। फिर भी उनकी ऊहापोह की स्थिति में रहते हुए सचिन का मराठी या मराठियों के बारेमें बोलना इन्हें कैसे सहन होता क्योंकि मराठी व मराठियों का ठेका तो ठाकरे एंड कंपनी के पास है। लोकसभा के बाद विधानसभा चुनावों में भी करारी शिकस्त से आहत ठाकरे के मन में सत्ता के लिए अपने व् अपने बेटे की राह में आई रुकावट पच नहीं रही है और इसी लिए उनकी छटपटाहट में स्पष्ट झलकता है कि अब उनकी हालत यह है कि खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। (also read my blog "parat dar parat)

सोमवार, 16 नवंबर 2009

चाचा नेहरू व बाल दिवस

अभीहालमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिवस १४ नवम्बर को फिर से हर साल की तरह बाल-दिवस के रूप में मनाकर देशभर की सरकारों व अनेक गैर सरकारी संगठनो ने बच्चो के प्रति अनेक तरह से सुधार के उपायों पर विचार-विमर्श किया, जो अभी भी चल ही रहा है। लेकिन बच्चों की झोली अभी भी खाली ही है। हां, बच्चों के नाम पर कुछ लोग सम्मानित हुए,कुछ को पुरस्कृत किया गया और कुछ नए संगठन व संकल्प भी उत्पन्न हो गए। दूसरी और उसी दिन छोटू अपने मालिक के ढाबे पर काम पर गया; रजिया को माम के साथ घरों की सफाई के लिए जाना पडा : राजू को मां के काम पर चले जाने के बाद आज भी छोटी बहन को खिलाना पडा। फिर यह तो उनकी रोज की जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा बन चुकी है। बालदिवस के मायने उनके लिए रोजाना की जिंदगी जैसे ही हैं।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विवादों में पड़ने का स्वभाव ही है। वरना उन्हें क्या जरुरत पडी थी आसपास के राज्यों को सफाई न रख पाने की बात सुनाने की और बेवजह विवादों में पड़ने के लिए आ बैल मुझे मार जैसी स्थिति पैदा करने की? और अभी इस बात को ठीक से समझा भी नहीं गया था कि मैडम का एक और शोला आ गया। जेसिका नामक मोडल की ह्त्या के अपराध में आजीवन जेल काट रहे मनु शर्मा को पैरोल दिलवा बैठी। उसने फिर एक होटल में जाकर हुड़दंग मचा दिया और दिल्ली के टॉप कॉप के पुत्र से भिड बैठा। अब मीडिया तो मीडिया है। उसने इसी को ख़बर बन दिया और मनु की जमानत अर्जी की स्वीकृति पर ही सवाल खड़े कर दिए। अब शीला तो शीला है, सो लगे हाथों एक और विवादास्पद बयान दे डाला कि आसपास के राज्यों से आने वाले निजी वाहनों पर प्रवेश के स्थान पर प्रवेश शुल्क लगा देने की बात कर दी। अब बात महंगाई को काबू में लाने की करनी थी, किंतु कुछ उल्टा सीधा बोलकर इस ओर ध्यान देने की बजाय इस ओर से ध्यान ही हटा देने की कोशिश कर ली। अब इस बारे में बहस किस ओर जाएगी , यह तो भविष्य ही बता पाएगा।

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

निर्दलियों,दलबदलुओं रूपी बैसाखियों के सहारे

हरियाणा में स्पष्ट जनादेश के अभाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी कांग्रेस का सत्तामोह उसे नैतिक अनैतिक की लक्ष्मणरेखा को लांघने के लिए उकसा कर छह निर्दलियों व एकमात्र बसपा विधायक के समर्थन से सत्तासीन कराने में सफल रहा। इतने से ही उसे चैन नहीं मिला और नैतिकता पर चलने का ढोल पीटने वाली इस पार्टी के कर्ताधर्ताओं ने हजकां के पांच नवनिर्वाचित विधायकों को भी किस लालच से अपनी पार्टी में शामिल कर लिया इसे तो वे ही जानें, पर यह तो एक करेला और दूसरा नीमा चढ़ा वाली कहावत को ही चरितार्थ करता नजर आया। इसके समर्थन में सम्मिलित कराने वाले व सम्मिलित होने वाले अपने तर्क दे रहे हैं। पर ये किसी के गले उतरने वाले नहीं लगते। कांग्रेस ने इस कुकृत्य से एक तीर से दो शिकार करने का काम किया है। एक तो इससे सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलियों पर नकेल कसी जाएगी तथा दूसरे कुलदीप बिशनोई व भजन लाल को यह भी संदेश दे दिया की उनकी पीएचडी की डिग्री को मात देने के लिए वे किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।इससे एक निशाना और भी साधा गया लगता है कि निर्दलियों व हजकांईयों की सत्ता लालसा को शमित करने के लिए उन्हें मंत्री या संसदीय सचिव आदि काम-बेकाम के पदों से नवाजने से खफा अपने विधायकों की भलाई भी अब चुप रहने में ही है।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

महाराष्ट्र विधानसभा में संविधान का मखौल

गत कई दिनों से संचार माध्यम इस समाचार व उसपर विभिन्न राजनैतिक दलों व प्रबुद्धजनों की तीखी प्रतिक्रियाओं से अंटे पड़े हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा में एक विधायक द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर एक क्षेत्रीय दल के विधायकों ने उसके साथ बदतमीजी व मारपीट की । बात बहुत दुर्भाग्य पूर्ण भी है और निराशाजनक भी ,क्योंकि संविधान की रखवाली के लिए चुने गए लोगों ने ही संविधान के प्रति शपथ लेकर यह कुकृत्य किया है। कुछ निहित राजनीतिक विवशताओं व स्वार्थों के चलते ऐसे हुडदंगियोंको उकसाने की बात कही है जो की गले नहीं उतरती, क्योंकि विधानसभा की गरिमा के अनुकूल व्यवहार करते हुए ही उकसाहट वाली हरकत का विरोध किया जाता तो बात कुछ और होती। यहां तो देश की भाषा में ही शपथ लेने से रोकने के पूर्वाग्रह से ग्रस्त मनसे नेताओं ने अपने सिरफिरे अगुआ के नेतृत्वमें पहले ही इस बारे में अपना मंतव्य बता दिया था कि उन्हें संविधान में उल्लिखित सभी भाषाओं में से सिर्फ मराठी ही स्वीकार्य है , अन्य कोई नहीं। उन्हें अपने लिए सिर्फ इस तरह कहने की छूट हो सकती है कि वे मराठी में ही शपथ लेंगे, लेकिन यदि कोई राष्ट्रीय कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकृत व देश की राष्ट्रीय भाषा में शपथ ले तो इन्हें उसे रोकने का कोई संवैधानिक व नैतिक अधिकार नहीं। वे यह भूल जाते हैं कि भारत देश किसी एक प्रांत के लोगों का नहीं है। अकेले मराठियों के लिए या अकेले मराठियों द्वारा मुम्बई या महाराष्ट्र के अन्य शहरों का विकास नहीं किया। देश के सभी भागों से आए गैर मराठियों का योगदान भी उतना ही है। अत: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना महाराष्ट्र को केवल अपना व मराठी को अपनी ही बपौती समझने की भूल न करे तो अच्छा है।फिर भी यदि आप चाहते हैं कि दूसरे आपकी माँ का सम्मान करें तो अपनी माँ की बड़ी बहन हिन्दी व उसकी सहोदरा अन्य भाषाओं का सम्मान करना सीखें।

सोमवार, 9 नवंबर 2009

if i could do somewhat better

today i met some old companion in the matter of THE GUIDE. i disscussed the problems faced by the youth, particularly the school dropouts. some youths also met me to have a awareness about something good for them. it was heartening for me as some young females of the village also came to discuss the police vacancies in DELHI POLICE. of course, i guided them accordingly. it was also nice to visit some persons in the village. they discussed with me on various matters and exchanged their views. i shall collect more matter on health and then a health awareness program shall be started in around the village.
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रविवार, 8 नवंबर 2009

my experience with the youngesters' counselling

i have tried my best to set things as per the need to run a free counselling and guidance to the youth in the past too. my experience in the matter is mixed one. i have started it again after seeking voluntary retirement from my job as official language officer of a nationalized bank after completing thirty years and nine months service. now i have come to realize that the children of my cousins in the village need more guidance in order to either continue or/and improve in their studies. i have started guiding and coaching them of course, free of any charges. after a hitch in the begining,they are taking interest in it and i receive response too. perhaps this might have been the reason that people invented a pharase that" charity begins at home." i am trying to follow that. i will keep it up as these were the words i listened from my interviewers for my promotion which i could not get due to myself being a non caiib, a professional qualification required in the mainstream of the bank which later on made compulsory in specialist category promotions,particularly in rajbhasha deptt as in the total of 100 marks of interview 15 marks were kept for the persons with caiib qualification.
now my students are my pleasure because they feel pleasure in their studies which takes smooth path and they feel a little tension free too. they are gaining confidence slowly. that is why i shall keep it up.
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शनिवार, 7 नवंबर 2009

प्रभाष जोशी का जाना

पत्रकारिता जगत के स्तम्भ प्रभाष जोशी का देहावसान एक बड़ा शून्य छोड़ गया है। यह संयोग ही था कि क्रिकेट के प्रति अथाह प्रेम और क्रिकेट जगत के धुरंधर कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के प्रशंसक इस हस्ती का देहावसान क्रिकेट के एक दिवसीय मैचों में सचिन द्वारा सत्रह हजार रन पूरे करने वाले मैच की समाप्ति के बाद हुआ। प्रभाष अपने आप में एक पूर्ण पत्रकार थे और लेखक के रूप में भी उनके कार्य प्रशंसनीय रहे । उनकी पुस्तक कागद मसीह काफी प्रसिद्द हुई। मध्यप्रदेश के एक गांव में जन्मे प्रभाष ने पत्रकारिता के असली मायने अपने आचरण से सामने रखे। वे पत्रकारिता को धन कमाने का जरिया नहीं मानते थे और युवाओं को भी यही प्रेरणा देते थे। उनका कहना था कि धन कमाने के लिए पत्रकारिता को चुनना पत्रकारिता को कलुषित करना है। पत्रकार को सत्ता से निर्देशित नहीं होना चाहिए,बल्कि सत्ता को उसे निर्देशित करना चाहिए। ऐसे निर्भीक और सच्चे पत्रकार को मैं नतमस्तक होकर श्रद्घा सुमन अर्पित करता हूं। (also read my blog: "parat dar parat")

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

एक अंग्रेज-भगत की चाशनी

आज के टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सम्पादकीय पृष्ठ पर मिस्टर (उन्हें हिन्दी में उपाधि शायद अच्छी न लगे ) सी वी सुकुमारन का लिखा लेख पढ़ने का मौका मिला। जनाबने अपने आपको अंग्रेजी और अंग्रेजों का भगत दिखाने में कोई कसर नहीं छोडी। हिन्दी अथवा भारतीय भाषाओं को हीनता का प्रतीक दिखाने की पुरजोर कोशिश करते हुए उन्होंने अपने अंग्रेजी ज्ञान दिखाने की चाह में बहुत से असामान्य शब्दों का प्रयोग करते हुए सिद्ध करने की कोशिश की कि उनका अंग्रेजी ज्ञान किसी अंग्रेज से किसी भी तरह कम नहीं है। इसके समर्थन में उन्होंने अंग्रेजी में लिखने वाले कुछ चुनिन्दा विदेशी लेखकों के नाम भी दिए हैं जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी से इतर भाषा थी। अपने लेख में उन्होंने भारत में अंग्रेजी का विरोध व अन्य अंग्रेजी बातों व वस्तुओं का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने के लिए राजनेताओं पर अपना नजला गिराने में पूरा जोर लगाया है। इस सन्दर्भ में उन्होंने केरल में संस्कृत विरोधी आंदोलन व इसके औंधे मुंह गिरने का भी उदाहरण दिया। वे मातृभाषा में शिक्षा देने पर जोर देने वालों पर भी बरसे और उनके बच्चों के अंग्रेजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने पर कटाक्ष भी किया। शायद वे अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त करने और अंग्रेजी को ही राजकाज के कामकाज की भाषा बनाए जाने में अन्तर नहीं कर पा रहे थे। अब अंग्रेजी अखबार ने तो इसके प्रकाशन से अपने कर्त्तव्य का निर्वाह ही किया है क्योंकि अंग्रेजी के पक्ष और अन्य भारतीय भाषाओं के विपक्ष में प्राप्त सामग्री को छापना तो उनकी जीवनरेखा है.
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बुधवार, 4 नवंबर 2009

सुमित की जान गयी तो क्या

गत दिवस चंडीगढ़ के पीजी आई अस्पताल में समय पर न पहंच पाने के कारण अम्बाला के सुमित प्रकाश की जान चली गयी। कारण था पीजीआई में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का आना और इस कारण गुर्दे के मरीज सुमित को लेकर जा रहे वाहन को सुरक्षा कर्मियों द्वारा आपातकालीन चिकित्सा कक्ष तक नहीं जाने दिया गया । एक गेट से दूसरे गेट तक चक्कर काटते परिजनों को रास्ता नहीं मिला और सुमित ने चिकित्सा के अभाव में दम तोड़ दिया।एक इंसान की शान में बनावटी कसीदे पढ़ने का काम बदस्तूर जारी रहा और दूसरी ओर जिंदगी और मौत के बीच जूझते हुए इन्सान ने चिकित्सा सहायता के अभाव में दम तोड़ दिया। इस घटना पर यह प्रश्न सहज ही उठता है कि मरीजों की जान बचाने की अपेक्षा क्या चापलूसी की यह झूठी शान अधिक महत्वपूर्ण थी। आपने दीक्षांत समारोह करना है तो मरीजों की जान पर खेलकर करने का क्या अधिकार है? जिस प्रधानमंत्री को बुलाया गया वह और जिसने बुलाया दोनों का ही जनता और विशेषकर मरीजों के प्रति प्रथम दायित्व बनता है, फिर इस तरह के परिहार्य तामझाम में मरीज का जान लेने या आमा जनता को घंटों परेशान रखने का किसी को अधिकार नहीं है। लेकिन इससे किसी को क्या लेना देना? प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर यह सब तो चलता है। एक सुमित की इस दौरान जान चली गयी तो क्या? प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर इस तरह की घटना तो मामूली मानते हैं सुरक्षा ड्यूटी में लगे अधिकारी । शायद उनके अनुसार यही है जनता द्वारा जनता केलिए जनता की सरकार ।

नमस्कार

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

वंदे मातरम

I have come accross a news item regarding a function attended by central home minister Mr. P. Chidambram in which first resolution was passed not to sing VANDE MATRAM BY THE COMMUNITY THE ORGANISERS BELONG TO. BJP has strongly condemned the same and it was not b'caus the organisers passed such a resolution. Their contention is that by attending the function the home minister has officially given govt.'s support in a way. This is not expected in a country with secular status. He should have not gone their INSTEAD. Though some have given it their support by saying that there are many other issues which require the attention on top priority than singing or not singing VANDE MATRAM.BUT HAS THE MINISTER NO MORE IMPORTANT ISSUE TO SOLVE THAN TO ATTEND SUCH A FUNCTION? iT SHOULD ALSO BE TAKEN INTO CONSIDERATION.

सोमवार, 2 नवंबर 2009

अच्छा है या बुरा है, अब तो है

It was very funny to guess who will get absolute majority in the assembly elections of 2009 in Haryana. Surprisingly Mr. Hooda was not in a position to have a simple majority in the house and he had to be content with 40 M.L.As of his party. Speculations were aired by different corners about the formation of the new governmenat in the state. Mr. Chautala with his 31 INLD mla's tried to be called by the governor to form the new government, but of no use. In the meanwhile,Mr. Hooda was able to arrange majority with the help of 7 independents and the lone member of Mayawati's BSP in a 90 members assembly. Mr. Kuldeep Bishnoi's HJC with 6 MLA's walked out at the time of proving majority by Mr. Hooda. Speculations were aired that Mr. Hooda has managed to bring this Bhajanlal's patronised party to his side with support and cooperation from Congress high command in Delhi.
Now the game has started and Hoodaji is planning the formation of his cabinet in such a way that his party's MLA's as well as the independents are accomodated. But it is not so easy. Now he will have to be more carefull and wise to show his political maturity. His acid test is nearer.On the other hand, Mr. Chautala has to keep a constant vigil on the actions of Mr. Hooda.BJP is the worst hit party in the state assembly elections. It needs an honest retospection.