बुधवार, 4 नवंबर 2009

सुमित की जान गयी तो क्या

गत दिवस चंडीगढ़ के पीजी आई अस्पताल में समय पर न पहंच पाने के कारण अम्बाला के सुमित प्रकाश की जान चली गयी। कारण था पीजीआई में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का आना और इस कारण गुर्दे के मरीज सुमित को लेकर जा रहे वाहन को सुरक्षा कर्मियों द्वारा आपातकालीन चिकित्सा कक्ष तक नहीं जाने दिया गया । एक गेट से दूसरे गेट तक चक्कर काटते परिजनों को रास्ता नहीं मिला और सुमित ने चिकित्सा के अभाव में दम तोड़ दिया।एक इंसान की शान में बनावटी कसीदे पढ़ने का काम बदस्तूर जारी रहा और दूसरी ओर जिंदगी और मौत के बीच जूझते हुए इन्सान ने चिकित्सा सहायता के अभाव में दम तोड़ दिया। इस घटना पर यह प्रश्न सहज ही उठता है कि मरीजों की जान बचाने की अपेक्षा क्या चापलूसी की यह झूठी शान अधिक महत्वपूर्ण थी। आपने दीक्षांत समारोह करना है तो मरीजों की जान पर खेलकर करने का क्या अधिकार है? जिस प्रधानमंत्री को बुलाया गया वह और जिसने बुलाया दोनों का ही जनता और विशेषकर मरीजों के प्रति प्रथम दायित्व बनता है, फिर इस तरह के परिहार्य तामझाम में मरीज का जान लेने या आमा जनता को घंटों परेशान रखने का किसी को अधिकार नहीं है। लेकिन इससे किसी को क्या लेना देना? प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर यह सब तो चलता है। एक सुमित की इस दौरान जान चली गयी तो क्या? प्रधानमंत्री की सुरक्षा के नाम पर इस तरह की घटना तो मामूली मानते हैं सुरक्षा ड्यूटी में लगे अधिकारी । शायद उनके अनुसार यही है जनता द्वारा जनता केलिए जनता की सरकार ।

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