रविवार, 29 अप्रैल 2012

वाह  मदर इण्डिया !

अभी हाल में बिहार के दरभंगा में एक माँ ने अपने खूनी बेटे के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराकर न केवल उसे कानून के हवाले किया, अपितु अपनी पोती की गवाही के साथ अपनी पत्नी के हत्यारे उस बेटे को सलाखों के पीछे पहुंचवा दिया। रिपोर्ट के अनुसार सरस्वती देवी नामक  इस महिला  के  बेटे ने मामूली कहासुनी के बाद  अपनी पत्नी ई हत्या कर दी तो उसकी नाबालिग  बेटी ने शोर मचाया  जिसे सुनकर लड़के माँ सरस्वती देवी व् अन्य पडौसी वहां इकट्ठे हो गए। उस समय सरस्वती देवी की पुत्रवधू अपनी अंतिम सांसें ले रही थी। लोगों की भीड़ देखकर  हत्यारा वहां से भाग निकला।  तत्पश्चात सरस्वती देवी ने अपनी पोती को साथ लेकार अपने ही बेटे के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई और न्याय का साथ देते हुए पोती की गवाही के आधार पर अपने ही कलेजे के टुकड़े को सजा दिलाई। यह वाक्य सुनकर मदर इण्डिया फ़िल्म  की याद बरबस ही आ जाती है जिसमें माँ ने गलत राह पर चल रहे अपने ही कलेजे के टुकड़े को गोली मार दी थी।  इन दोनों मामलों में से किसी में भी माँ का दिल न रोया हो ऐसा नहीं है , दोनों में ही ममता ने न्याय का भी साथ दिया और माँ की आत्मा को भी नहीं मरने दिया। ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं। 
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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

haryanvi dialect and eighth schedule

हरियाणवी बोली और आठवीं  अनुसूची

अब इसे विडम्बना  कहें या नेताओं की अपनी भाषा के प्रति उदासीनता कि अभी तक हरियाणवी बोली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए कोई विशेष सार्थक प्रयास नहीं किए गए हैं। कभी कभार इक्का दुक्का नेताओं ने इस बारे में आवाज उठाई तो, लेकिन बीच में ही उसे छोड़ दिया गया या इसे छुडवा दिया गया। आज फिर कुरुक्षेत्र के सांसद नवीन जिंदल ने इस बारे में आंकड़े देते  हुए अपनी आवाज बुलंद की है। लोकसभा में इस बारे में बोलते हुए नवीन ने तथ्यात्मक जानकारी दी कि हरियाणा के साथ साथ हरियाणा से सटे उत्तर प्रदेश के जिलों, पंजाब व् राजस्थान के चार करोड़ से अधिक लोगों द्वारा यह भाषा बोली व् समझी जाती है। इस बारे में काफी महत्व का साहित्य भी प्राचीन कल सी रचा जा रहा  है।उनकी इस मांग के बारे में सरकार की ओर से कहा गया कि यदि हरियाणा सरकार इस बारे में संस्तुति भेजती है तो उस पर विचार किया जाएगा। तो अभीतक राज्य सरकार इस बारे में सो रही थी अथवा उसे इस महत्ता के बारे में उसे जानकरी नहीं थी या फिर आधिकारियों की मर्जी के अनुसार नेतागण भी इस तरह के  किसी भी प्रस्ताव से बचते रहे और संस्तुति नहीं कि गयी| अधिकारियों की उदासीनता तो समझ में कुछ हद तक इस कारण आ सकती है कि अभीतक हिन्दी के नाम पर नाक  भौं सिकोड़ने वाले ये लोग एक नया पंगा क्यों लेते? लेकिन राजनेताओं की उदासीनता कतई समझ से परे है। अब भी नवीन जिंदल के साथ मिलकर इस बारे में आगे कदम बढाया जाए तो  देर आये  दुरुस्त आये  के अनुसार आगे पहल की जा सकती है ।
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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

no ameriki vija 4 modi

मोदी को वीजा दे भी तो कैसे?

एक अमेरिकी सांसद द्वारा लिखे पत्र के जवाब में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का यह बयान कोइ हैरान या परेशान करने वाला नहीं है  कि उनके देश में आने के लिए मोदी को वीजा  देने के बारे में उनकी सरकार की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। सीधा सा अर्थ है कि मोदी को अमेरिका जाने के लिए वीजा नहीं देने के अपने पूर्व के फैसले पर अमेरिका अडिग है। बात बिलकुल ही सीधी है कि भारत में सियासी हालत ऐसे हैं कि गुजरात  में मोदी के प्रगति के आयामों का मुकाबला करने में केंद्र सरकार तक असमर्थ हैं और अन्य किसी राज्य के मुकाबले गुजरात की प्रगति की गति सर्वाधिक है। इससे अनेक ईर्ष्यालु राजनेता हैं जो कि अपना प्रभाव अमेरिका तक रखते हैं और वे मोदी को मुसलमानों का हत्यारा बताने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं। उधर हमारे पडौसी मुल्क पाकिस्तान को भला कैसे नाराज करे अमेरिका क्योंकि पाकिस्तान से बढ़िया पिछलग्गू और जी हुजूरी वाले साथी को ढूँढना, और वो भी चीन जैसे पारम्परिक दुश्मन के पास, कोई आसन काम नहीं है। अमेरिका के इस दोस्त को मोदी तो फूटी आँख नहीं सुहाता है क्योंकि पाकिस्तान में कट्टरपंथियों ने मिलकर मोदी की तस्वीर कुछ इस तरह की बना दी है कि वे मोदी को मुसलमानों का हत्यारा मानते हैं।अब अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है कि अमेरिका मोदी को वीजा न देने की अपनी नीति पर क्यों कायम है? 
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गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

a good start,let us hope to continue

यह सिलसिला चलते रहना चाहिए आज एक सुखद एहसास हुआ इस बात को लेकर कि पानीपत   जिला प्रशासन के आला अधिकारियों की टीम जिले के सुदूरवर्ती गाँव उरलाना कलां, जोकि मेरा जन्मस्थान है और वर्तमान में कार्यस्थल भी, में पधारी । इस अवसर पर गाँव के लोगों को अपने जिले के उच्चतम पदों  पर आसीन अधिकारियों  से  आमने सामने बात करने का मौका मिला तो वे गदगद हो गए।ग्राम पंचायत सहित अनेक लोगों ने मांग-पत्र  व अपने आवेदन-पत्र इस आस में दिए कि अब उनकी जरूर सुनी जाएगी। माहौल काफी सुकून भरा  था।  सभी अपनी अपनी शिकायतें-फरियादें लेकर एक दूसरे से आगे बढ़कर इस तरह प्रस्तुत करने की होड़ में थे मानो आज ही उनकी समस्याओं का हल उन्हें मिल  जाएगा।कई तो वहीं पर खड़े किसी न किसी को पकड़कर अपनी समस्या से सम्बन्धित  चिट्ठी लिखवाकर दे रहे थे। अधिकारियों ने भी बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनी और उनपर गौर करने का आश्वासन दिया। बेशक इन सभी समस्याओं का हल एक साथ निकल पाना मुश्किल है, फिर भी लोगों को इस बात का इत्मीनान था कि उनकी सुनने के लिए खुद जिले के आला अधिकारी आए हैं उनके अपने गाँव में, उनके बीच में। काश!  यह  सिलसिला  पहले से ही चला होता और लोगों से सीधे तौर पर फीडबैक लेकर अधिकारी अपने जिले की कार्य योजना  तैयार करते तो लोगों की अधिकतर समस्याएँ अपने आप ही सुलझ गयी होती। उम्मीद है कि भविष्य में यह सिलसिला जारी रहेगा और लोगों को अपनी बात कह भर लेने का ही सही, सुकून तो मिलता रहेगा। ---ईश्वर चन्द्र भारद्वाज----              

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

wel done vijay

शाबाश विजय
गुजरात कैडर  के  एक नव नियुक्त आई ए एस अधिकारी विजय खराड़ी  ने सामूहिक विवाह में शरीक होने का निमंत्रण  पाकर  उसी  अवसर पर अपना भी विवाह करा  एक इतिहास तो रचा ही, एक बहुत  सटीक और सार्थक  सन्देश  भी समाज को दिया है कि आज के इस तड़क भड़क वाले युग में भी सही दिशा प्रदान  करने के  लिए  स्वयं उदाहरणप्रस्तुत कर अधिक प्रभावशाली ढंग से समाज सुधार की दिशा में सार्थक पहल  की जा  सकती है। काश, आज हम ऐसे नवयुवकों से कुछ सबक लेते और झूठी आन-बान के लिए फिजूलखर्ची से  परहेज करते  और समाज को एक नई दिशा देते ।    

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

bhrasht ko bhrasht kaha to....

भ्रष्ट शासन व्यवस्था में रहते हुए भ्रष्टाचार के  खिलाफ  आन्दोलन  चलाने का परिणाम बाबा रामदेव  और अन्ना हजारे से बेहतर कौन जान सकता है। बाबा के संगठन में फूट डालने के सभी प्रयास विफल होते देख आधी रात को दिल्ली पुलिस की मदद से बाबा को ही उठवा लिया गया। बुजुर्गों एवं महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया। उन्हें बड़ी बेरहमी के साथ धरना स्थल से खदेड़ा गया। इधर अन्ना की गांधीगिरी के सामने अपने आपको बेबस महसूस करते हुए सरकार ने नया दांव खेला और अग्निवेश जैसे अवसरवादी को उनसे अलग कर दिया तथा उससे अन्ना के बारे में अनाप शनाप कहलवाया गया। फिर उनके एक सहायक को को अलग किया गया। बाद में अन्ना टीम के सदस्यों के बीच मनमुटाव को तूल देने की भरपूर कोशिश की गयी। कई सदस्यों को उसी तरह घेरने की चालें चली गयी. ऐसी ही चाल बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के विरुद्ध भी रची गयी थी। अब टीम अन्ना के ही सदस्य मौलाना काज़मी को पाला बदल कराकर अपने सुरों में बोलने के लिए तैयार कर लिया गया । टीम अन्ना हो या बाबा रामदेव का संगठन आपसी विचार कहीं न कहीं मेल न खाना स्वाभाविक है। क्या सरकार में बैठे सभी लोगों के बीच मतभेद नहीं हैं। होते हैं। स्वाभाविक है यह। फिर टीम अन्ना के लोगों के बीच के मतभेद ही क्यों उछाले जाते हैं। साफ बात है भ्रष्ट शासन में सत्ता में बैठे लोग अपने बचाव के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। साम दाम दंड भेद में से कीई भी साधन अपना सकते हैं। वही हो रहा है।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

jivn ke lakshy ko pane ke lie sadhan ko parakho

हम जीवन में अपने  लक्ष्य को पाने के लिए, अपने  निश्चय को मूर्तरूप देने के लिए सदा लालायित रहते हैं। यह अलग बात है कि लक्ष्य तक पहुँचते पहुँचते अनेक रुकावटें अनेक अडचनें आती हैं। लक्ष्य प्राप्ति के प्रति दृढ निश्चय की स्थिति में ये सब बौनी  साबित होती हैं और इन्सान अपने लक्ष्य को पाने तक अविरल प्रयास करते हुए सफलता की सभी सीढियाँ चढ़ लेता है। बेशक यह सब इतना आसान नहीं होता। परन्तु धैर्य खोए बिना निरंतर लक्ष्यपथ पर अग्रसर होते हुए हम सभी तरह की विघ्न बाधाओं को पार कर लेंगे यह सोचकर अपना कार्य सही दिशा में करते रहने से हिम्मत के साथ साथ लक्ष्य से नजदीकियां भी बढ़ती जाती हैं। शुरुआत में कुछ विचलित करने वाली अडचनें ऐसी आती हैं जो इन्सान को बहुत दुखी  कर देती हैं और उसे अपने आप पर विश्वास में कमी सी महसूस होने लगती है। ऐसी स्थिति में अपने साधनों पर पुनर्विचार की जरुरत होती है और तदनुसार आवश्यक सुधार कर लेने से राह कुछ सरल हो ही जाती है।चलना भी सहज हो जाता है।  इसे अजमाया जाना चाहिए। 
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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

jindagi jo de vahee sahee hai, maan lo...

जिन्दगी जो दे वही सही है

जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दे भी क्या खाक जिया करते हैं ।यह बात हम बहुत पहले से सुनते आ रहे हैं। न जाने किसी ने क्या सोचकर कही थी यह बात जो आज जिन्दगी से हारने की दहलीज पर आ चुके अनेक लोगों के लिए संजीवनी से कम नहीं। हम हर तरह से संभलकर चलने की भरपूर कोशिश करते हुए भी कभी कभी जिन्दगी के ऐसे दलदल में फंस जाते हैं जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती।  प्राय: उस कसूर की सजा भी हमें भुगतनी पड़ जाती है जो हमने किया ही नहीं होता । यह विडम्बना सभी को कभी न कभी किसी न किसी  रूप  में भोगनी पड़ती  है ;  चाहे  मानें या न मानें। जिन्दगी के कड़वे घूँट न चाहते हुए भी पीने पड़ते हैं- चुपचाप। न गिला  न शिकवा ।  इसके लिए कोई गुंजायश ही न छोडी जाती। फांसी पर चढ़ने  वाले से भी  बुरा हाल हो जाता है  इंसान  का। कोई सुनवाई नहीं; यदि है तो बेमतलब, बेनतीजा। ऐसी स्थिति में इन्सान निराश और उदास हो जाता है, अवसाद से भर जाता है। कई बार हालत के वशीभूत होकर बहुत भयानक कदम उठा लेता है जिससे उसकी जिन्दगी तो बर्बाद हो ही जाती है, कई औरों को भी लपेट लेता है। किन्तु यह सही नहीं है। ऐसे समय पर ही जिन्दगी की जिन्दादिली काम आती है। इस स्थिति में सामान्य व  सहज तथा  शांत  रहना  निहायत जरुरी है। बस यह मानकर अच्छे वक्त के आने का इंतज़ार करे कि जिन्दगी जो दे वही सही है।  
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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

jalta diya lalta rahe

जलता दीया जलता  रहे

हम सभी एक आदत से लाचार हैं कि सामने वाले को अपने से कम समझदार व अकलमंद मानकर चलते हैं और अपने विचारों को ही सर्वोत्तम व सर्वोपरि मानते हैं। इस धुन में हम अपने अवगुणों को भी अपनी विशेषता कहकर दूसरों का मुंह बंद करने की कोशिश  करते हैं जिसकारण प्राय: मुंह की खानी  पड़ती है और शर्मसार भी होना पड़ता है। ऐसा बार बार होता है और इस तरह यह आदत में शुमार हो जाता है। फिर हम इसे स्वाभाविक मानकर चलते हैं और अंतत: अकेले पड़ जाते हैं. इसके लिए भी हम दुनिया को ही दोषी ठहराते हैं और अपने आप  को बेकसूर ।