बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

tu meri chhupa main teri dhak doon

तू मेरी छुपा मैं तेरी ढक दूँ 

राजनीति बड़ी विशिष्ट चीज है। यहाँ के भ्रष्टाचार रुपी हमाम में सभी तो नंगे हैं। फिर भला कोई किस पर ऊँगली उठाए और कौन किस पर क्या आरोप लगाए। जब कोइ एक भ्रष्टाचार के गर्त में डूबता दीखता है तो भाई लोग पहले तो कुछ समझ नहीं पाते और जब समझने लगते हैं तो पासा पलटकर विरोधी दल पर गाज गिराने लगता है। फिर तो चोर चोर मौसेरे भाई की तरह वे मिलकर आरोप लगाने वाले को घेरने को एकजुट हो जाते हैं। फिर आरोप बाबा रामदेव ने लगे हों या एना हरे ने अथवा केजरीवाल ने। इनकी एकजुट देखते ही बनती है।   कांग्रेस पर लगे आरोपों पर मजे लेने के बाद बीजेपी जब खुद इन आरोपों की शिकार हुई तो कई कांग्रेसी भाई भी बचाव में आ खड़े हुए और आरोप लगाने वालों को ही कटघरे में खड़ा करने लगे। बेशक कुछ विरोधी व हमपार्टी सदस्य अंदर ही इस बात को लेकर खुश थे की उनके हमाम में वे अकेले नहीं हैं। विरोधी धुरंधर भी आन फंसे हैं। फिर शुरू होता है उनका सुर में सुर मिलाने का सिद्धान्तहीन आलाप। फिर भला भ्रष्टाचार मिटने का सपना साकार होना तो दूर,ऐसा सपना आना भी शुरू नहीं होने वाला नहीं , ऐसा लगता है। 


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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

यहाँ किसी को किसी पर विश्वास नहीं 

सब डरे डरे से हैं कि  कहीं सामने वाला कोई चालाकी तो नहीं खेल रहा है। बाबा रामदेव को डर  है कि अन्ना की टीम के सदस्य न जाने कौनसा दांव खेल कर उनकी छवि को ग्रहण लगा दें। यहाँ तक कि अन्ना जी को भी अपने सहयोगियों में काली भेड़ें होने की आशंका बनी रहती है। इसी कारण वे अपनी टीम को कई बार भंग कर चुके हैं। ममता दीदी को कांग्रेस पर विश्वास न रहा और उन्होंने अलग राह पकड ली। मुलायम जी को बेशक माया मैडम पर भरोसा नहीं है। इसीके दृष्टिगत मन मारकर वो उनके साथ ही कांग्रेस की ताकत बढा  रहे है। साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश व् मूल्यों में बढ़ोतरी के खिलाफ विपक्षी दलों के बंद में भी शामिल हो रहे हैं। जयललिता को करूणानिधि पर कैसे विश्वास हो सकता है? इधर रविशंकर से खार खाए बैठे येदुरप्पा  बार बार कर्नाटक में भाजपा आलाकमान के सामने ऑंखें तरेर रहे हैं। अब आप ही सोचिए की नीतीश  कुमार नरेन्द्र मोदी के साथ कैसे खड़े हो सकते हैं जबकि लोग मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की बातें करते हैं। इसी कारण  नीतीश ने शरद भाई को सलाह दे डाली कि गुजरात में राजग के साथ नहीं उसके विरुद्ध चुनाव लड़ा जाए। उपर से एक लगने वाले भाजपा व् हजकां भी खुलकर अपने पत्ते नहीं खोल रही हैं। प्रदेश की पार्टियों पर विश्वास न होने कारण चौटाला जी पंजाब में अकाली दल से प्रेम निरंतर बनाए हुए हैं।यही घालमेल और गोलमाल देश हित में कैसे हो सकता है यह अंदाजा आप  खुद ही लगा सकते हैं।   

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