शुक्रवार, 14 मई 2010

शराब को महफिल की रानी समझने वालों की आजकल पौबारह हैं। वे दिन निकलते ही इस अंगूर की बेटी की शरण में पहुंच जाते हैं। वे कहते हैं कि चुनाव बार-बार हों तथा एक समय पर एक ही चुनाव होने चाहिएं। वे ये भी कहते हैं कि इन चुनावों को लड़ने के लिए हर पैसे वाले जन को अपना भाग्य आजमाना चाहिए। आखिर उनका पैसा फिर कब काम आएगा? ये भी तो दान पुन ही मानते हैं ये पियक्कड़ वोटर । चुनाव बार-बार हों और हर चुनाव में पैसे वाले जन ज्यादा से ज्यादा संख्या में खड़े हों, यही तो सपना है इन सुरा सुन्दरी के कद्रदानों को। इनको अपने ग्राम, अपने इलाके या अपने राज्य अथवा देश से कुछ लेना देना नहीं रहता। विकास के नाम पर ये बस सुरा की किस्म व मात्रा में सुधार पर ध्यान देते हैं। इनपर ये कहावत बिलकुल फिट बैठती है कि कोई मरे कोई जीए, सुथरा घोल बताशा पिए।
(मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

स्वास्थ्य का क्या होगा?

भारतीय चिकित्सा परिषद् के अध्यक्ष के रिश्वत काण्ड में पकडे जाने से साफ हो गया है कि इस संस्था को ही चिकित्सा की आवश्यकता इतनी अधिक है कि इसके न होने से आने वाले दिनों में न जाने कितने डॉक्टर ऐसे हो जाएंगे जो बिना चिकित्सा की पढाई किए ही पैसे देकर चिकित्सक होने की डिग्री प्राप्त कर लेंगे। फिर मरीजों का क्या होगा, यह तो परमात्मा ही जाने। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी जांच के लिए समिति तो गठित कर दी है, लेकिन परिणाम क्या होगा; अभी समय से पहले की बात है। सी.बी.आई की टीम के छापे के दौरान जो सनसनीखेज तथ्य सामने आए हैं, वो सबको चौंकाने वाले हैं। शाही ठाट बाठ की जीती जागती तस्वीर देखने को मिली केतन देसाई के आलीशान बंगले में। एक तरफ गरीब व होनहार छात्र अपने सीमित साधनों के कारण पढाई पूरी करने से भी रह जाते हैं वहीं दूसरी तरफ अरबों में खेलने वाले केतन देसाई सरीखे जन भी हैं जो देश के स्वास्थ्य से ही खिलवाड़ भी कर रहे हैं तथा अकूत धन भी कमा रहे हैं।
-ईश्वर भरद्वाज

रविवार, 25 अप्रैल 2010

सबसे बड़ा रुपैया

पैसा एक ऐसी चीज है जो मनुष्य को इंसान से हैवान तक बन देता है। यह मनुष्य को अहंकारी एवं बुद्धिहीन करने में देर नहीं लगाता है। यह अपनों को ही अपनों के विरुद्ध खड़ा कर देता है तथा सभी रिश्तों को तार-तार कर देता है। सभी प्रकार की मर्यादा को ताक पर रखवा देता है और आदमी को अपने तक ही सीमित बना देता है। अब भारतीय क्रिकेट बोर्ड को ही लीजिए। आज इसमें जो जूतामपजार चला आ रहा है उसके पीछे पैसा ही तो है। कलतक जो साथ-साथ अकूत धन कमा रहे थे आज वही एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं क्योंकि कहीं न कहीं मिल-बाँट करने में चूक रह गयी होगी। पुराने हिसाब बराबर करने वाले भी आ डटे हैं मैदान में। इसका अंत क्या होगा कुछ निश्चित रूप से कह पाना मुश्किल है, किन्तु यह अंत भी पैसा ही करेगा.
-ईश्वर भरद्वाज

मंगलवार, 9 मार्च 2010

महिला आरक्षण बिल पास होने के रोड़े

आज राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पास हो गया है। बसपा, राजद, सपा आदि दलों के साथ ही ममता का हठीलापना फिर सामने आया और इन्होंने पहले की ही तरह बिल का विरोध किया । उनके अनुसार यह बिल सभी दलों के साथ अच्छी तरह सलाह-मशविरा किए बिना व मुस्लिम महिलओं की आरक्षण की स्थिति स्पष्ट किए बिना ही पेश किया गया है। लालू व सपा ने तो केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की भी बात कह दी है। इस तर्कहीन राजनीति के पीछे महिला विरोधी लोबी का हाथ होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। महिला की बढ़ती शक्ति को अपने लिए चुनौती व खतरा मानकर ये राजनेता ऐसी नौटंकी करते ही रहते हैं। कबतक ये महिला विरोधी मानसिकता के सहारे अपनी दुकानदारी चलातेरहेंगे,कहा नहीं जा सकता।
(मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)

गुरुवार, 4 मार्च 2010

हर जगह जरूरत है सुधार की

मैं एक ग्रामीण क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हूं जहां अधिकतर वयस्क अशिक्षित अथवा अल्प शिक्षित हैं। यह बात अलग है कि नव युवा पढाई के प्रति सजग हो रहे हैं और इस हेतु प्रयास भी कर रहे हैं। किन्तु उनमें ग्रामीण अल्हड़पन भरा पड़ा है। वे अपनी बोलचाल व आचार व्यवहार में परिष्कृत होने के कम ही प्रयास करते हैं। यदि उनको परिष्कृत करने के लिए कोई पहल होती है तो आसानी से उसके लिए कई ज्ञात-अज्ञात कारणों से तैयार नहीं होते। इनमें अपने अल्प ज्ञान को सम्पूर्ण व सही मानने की मानसिकता भी शामिल है। विशेषकर जब उनका कोई अपना यह शुरुआत करे। मैं कुछ ऐसा ही अनुभव कर रहा हूं क्योंकि मैंने अपने क्षेत्र में युवा वर्ग के लिए कुछ नवप्रयास करने की शुरुआत की है। कुछ को यह समझ नहीं आ रहा है और कुछ अपने ज्ञान के सामने इस प्रयास को कुछ खास नहीं मानने की मानसिकता से ग्रस्त हैं।यह उनके लिए अच्छा नहीं है। कई बार मैं अपने प्रयासों को गलत जगह की गयी शुरुआत भी सोचने को विवश होने लगता हूं लेकिन अगले ही पल मुझे अपनी इस कमजोरी पर तरस आने लगता है क्योंकि मैं औरों को जिस सबल मानसिकता सिखाने चला हूं वैसी मेरी अपनी तो पहले बने। यही विचार मुझे अपने प्रयास सतत रूप में जारी रखने को प्रेरित करता है।
(मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

lack of political will creat national problems

our leadership in politics sometime take such decisions which go wrong in the future and become national problems which cannot be handled easily and accurately by the leaders to come. problems like national language are the examples. even after that decisions like reservation on the basis of caste and now sect are such mistakes that cannot be solved otherwise now because it has taken a political turn by this time. no political party can now dare to amend it like giving reservation on economic basis, if must. now any party coming to power will not experiment on some new and practical solution for the fear of losing its vote bank. it is creating more problems and the govt. from time to time try to give solutions of the things from their own point of view which make them more complexed. take the decision of national importance in a well discussed and practical manner keeping aside the self political interests. but unfotunatly it does not happen. that is why things are going to be more and more complicated. it is due to lack of a strong political willpower.
(my other blog is : parat dar parat)

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

क्रिकेट की वर्त्तमान दुर्दशा के कारण

क्रिकेट में नागपुर टेस्ट २०१० वास्तव में भारतीय टीम के लिए नश्तर बनाकर चुभता रहेगा। दक्षिण अफ्रीका की टीम के सामने पारी और छः रनों से शर्मनाक हार का सामना जो करना पड़ा। हमारे धुरंधरों की भी सिट्टी पिट्टी गुमसी हो गयी लगी और नंबर एक का ताज भी खतरे में पड़ता नजर अ रहाहै। दरअसल टीम में गलत समय पर किया गया अव्यवहारिक सा लग रहा फेरबदल भी इस हार का एक कारण था। इसके लिए चयन करने वालों की अदूरदर्शिता की बड़ी भूमोका रही है। इस ओर गौर किया जाना अपेक्षित है तथा सुधारात्मक कदम उठाए जाने की बहुत जरुरत है। इसके लिए नए खिलाड़ियों को मौका देने के नाम पर अपने चहेतों को चुनने का लोभ भी घटक साबित हुआ है। अब इसा तरह के लोभ का संवरण करते हुए देश हित व खेल की भावना के अनुरूप ही कदम उठाए जाने चाहिएं।
(my other blog is: parat dar parat)

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

ठाकरे की धमकी के जवाब में राहुल गांधी की मुम्बई यात्रा

संविधान का घोर उल्लंघन व मनमानी के सभी रिकार्ड तोड़ते हुए ठाकरे परिवार ने मुम्बई व महाराष्ट्र को अपनी बपौती समझने की गलतफहमी को वहां की सरकार ने भी काफी हद तक हवा दी है। तभी तो एक के बाद एक गलतियां करने वाले राज ठाकरे व मराठी व मराठियों के लिए उसके मगरमच्छी आंसुओं का असर देखते हुए शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे व उनके कार्यवाहक अध्यक्ष उद्धव ठाकरे भी कुछ इसी तरह की अटपटी व बेहूदगी से भरी वाणी बोलने लगा गए और बेरोकटोक बोलते ही जा रहे थे कि राहुल गांधी भी परदे पर आ ही गए। इसे भला चचा भतीजा ब्रिगेड कैसे सहन कर लेते । सो उलट पुलट बोलते हुए राहुल को चुनौती दे डाली मुम्बई में आने की। अब राहुल भाई भी कोई ऐरे गिरे नत्थू खैरे तो हैं नहीं जो उअनकी धमकी का जवाब न देते। उन्होंनेचुनौती स्वीकार करते हुए मुम्बई में आकर लोकल ट्रेन में यात्रा की, एटीम से पैसे निकलवाए और गरीब बस्ती में भी गए। शिव सैनिक और मनसे के जांबाज़(?) सारा दिन दुबके बैठे रहे। भला क्यों? क्योंकि स्थानीय सरकार ने व केंद्र सरकार ने राहुल की सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम किए हुए थे। काश, यही कदम महाराष्ट्र सरकार पहले भी उठा लेती और अनेक उत्तर भारतीयों(जिनमें ज्यादातर बिहार व यूं.पी से हैं ।)अपनी रोजी रोटी छोड़कर मुम्बई व महाराष्ट्र से पलायन न करते।
(my other blog is : parat dar parat)

रविवार, 24 जनवरी 2010

सच्चाई स्वीकार करे कांग्रेस

गत बीस जनवरी को संपन्न ऐलनाबाद चुनाव में इनेलो प्रत्याशी अभय चौटाला ने कांग्रेस के भरत बेनीवाल को हराकर इस सीट पर लोकदल का कब्जा बरकरार रखा है। दोनों तरफ से प्रतिष्ठा के दांव पर लगे होने के कारण इस सीट को अपनी झोली में डालने में किसी भी दल ने कोई कसर नहीं छोडी थी।स्वयं मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडा सहित केंद्र के नेता व हरियाणा के संतरी से लेकर मंत्री तक यहाँ जी-जान से जुटे थे। ऐसा लगता था कि ऐलनाबाद के लिए ही पूरा तंत्र कार्यरत था। बेशक ओम प्रकाश चौटाला के लिए भी यह जीवन मरण का सवाल था क्योंकि इस सीट को खाली करके ही उन्होँनेयहाँ उपचुनाव का मार्ग प्रशस्त किया था। अत: उनकी पार्टी के भी तमाम छोटे बड़े नेता व कार्यकर्ता यहाँ जी-जान से जुटे हुए थे। दोनों तरफ से धन बाल आदि के प्रयोग के आरोप पूर्ववत लगे व अब भी लग रहे हैं। मुख्यमंत्री हुडा व उनके सिपहसालार इस बात से अपने आप को सांत्वना देते लग रहे हैं कि हार-जीत का अंतर कम हुआ । चौटाला यहाँ से सोलह हजार से अधिक मतों से जीते थे जबकि इस बार उनके सुपुत्र अभय केवल छः हजार से कुछ ही अधिक मतों से जीते हैं। हुडा जी पूरी सरकारी मशीनरी को यहाँ लगाकर भी अपने बड़े बड़े वादों व दावों के बावजूद इसे जीत नहीं पाए, यह उनकी नैतिक जीत नहीं कही जा सकती। वैसे दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है। पर सच्चाई यही है कि कांग्रेस का चौटाला के गढ़ में सेंध लगाने का सपना चकनाचूर हुआ है। इस पर मंथन किया जाना चाहिए। कांग्रेस को यह सच्चाई स्वीकार करके जनता के प्रति अपनी जवाबदेही और बढानी चाहिए तथा जनहित कार्यों का विस्तार पूरे हरियाणा में करना चाहिए।
(मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

पवारजी संभल के बोला करो जी

हमारे देश के कृषि मंत्री शरद पवार भी अपने आप को खबरों में बनाए रखने के लिए कईं ऐसे ब्यान दे डालते हैं जो बाद में उनके लिए सिरदर्द बन जाते हैं और उन्हें अपनी ही कही बातों पर स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कभी वो चीनी के दाम और बढ़ने की भविष्यवाणी करके आ बैल मुझे मार वाली कहावत को चरितार्थ करते हैं तो कभी वो महंगाई और बढ़ने की आशंका जताकर अखबारों में सुर्खियाँ बटोर तो लेते हैं पर जल्दी ही इस कारण आलोचनाओं को झेल न पाने के कारण अपने ब्यान को बदलते हुए उसमें कुछ कुछ नया जोड़ देते हैं जो आमतौर पर गले से नीचे उतरने वाले नहीं होते। अभीहाल में दूध के दाम बढ़ने अपने दी ब्यान पर तीव्र प्रतिक्रया को देखते हुए पवार जी अपने ब्यान से मुकरने जैसी मुद्रा में आए और एक नया विवादास्पद ब्यान दे डाला कि महंगाई का कृषि मंत्रालय से कुछ लेनादेना नहीं। जोश में वे यह भी कह गए कि कल को देश में सूखा पड़ जाए तो इसके लिए भी क्या कृषि मंत्रालय ही जिम्मेदार होगा। पवार जी आप इस देश के कृषि मंत्री हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए ज़रा संभलके बोला करो जी।
(मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

बड़बोलेपन की बजाय खेल पर ध्यान दें क्रिकेटर

अभी हाल में बंगलादेश के साथ मैच शुरू होने से पहले अस्थाई कप्तान वीरेंदर सहवाग ने काफी हलके शब्दों में बंगालदेश की टीम को बेहद कमजोर टीम करार दिया और मैच के पहले ही दिन बंगलादेश के खिलाड़ियों नेआठ दिग्गज भारतीय बल्लेबाजों को पैविलियन में वापस भेजकर बता दिया कि समय के साथ हमने भी सीख लिया है। इन पैविलियन लौटने वालों में स्वयं सहवाग भी थे। यह तो भला हो सचिन तेंदुलकर का जिसने अपने बल्ले से टीम की लाज रखा ली और टीम के बेहद लचर प्रदर्शन को कुछ हद तक सुधारा वरना तो जगहंसाई के साथ-साथ क्रिकेट जगत में कमाया नाम भी कलुषित हो जाने वाला था। अत: नजफगढ़ के नवाब सहित सभी क्रिकेटरों को जबान से कम बल्ले व गेंद से ज्यादा जौहर दिखाने चाहिएं । ठीक है न।
(मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

वादों-दावों के जंगल में मतदाता

बात राजनीति की लीजिए तो पता चलता है कि देश में चुनावी बिगुल कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में बजता ही रहता है और अनेक नए-पुराने नेता विभिन्न दलों के सहारे या निर्दलीय के रूप में बरसाती मेंढक की तरह टर्राने लगते हैं। वे अपने साठ अनेक दावे और वाडे भी लेकर आते हैं क्योंकि चुनाव जीतने के लिए ये ही तो अचूक हथियार बनते हैं यदि नेताजी को इनका सूझबूझ के साथ प्रयोग करना आ जाए तथा मतदाता रूपी इष्ट देव को वह भा जाए। तीर तरकश से निकलकर सीधा निशाने पर जा लगे तो नेताजी के वारे न्यारे और मतदाता बेचारा फिर से भगवान के सहारे। आगामी चुनाव तक मतदाता भी भूल जाता है पहले चुनावपूर्व दावे और वादे। यही क्रम चलता आ रहा है। कबतक चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। इसीलिए अब मतदाताओं को जागरूक करने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास शरू हो रहे हैं। लेकिन ये कबतक चलेंगे या कुछ समय बाद दम तोड़ देंगे,कुछ कह पाना समय से पहले की बात है। (मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

सुरक्षा को राजनीति से ऊपर रखा जाए

श्रीनगर के लालचौक में फिर आतंकवादियों ने हमला करके जतला दिया है कि वे जब चाहें,जहां चाहें हमला कर सकते हैं।उनके हौंसले पहले की ही तरह बुलंद हैं। ये आतंकवादी केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की टुकड़ी पर हमला करके एक होटल में जा घुसे और लगभग बाईस घंटे चली मुठभेड़ के बाद इन दोनों आतंकवादियों को मार गिराया गया किन्तु इस मुठभेड़ में सी.आर.पी.एफ के दो जवानों सहित तीन भारतीयों की मौत भी हो गयी। दर असल जम्मू-कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के दबाव में आकर केंद्र सरकार ने सी.आर.पी.एफ.को राज्य से हटाना शुरू कर दिया क्योंकि उमर अब्दुल्ला के अनुसास राज्य में अब आतंकवादी घटनाओं में काफी कमी आ गयी है। कांग्रेस ने राज्य में उनके साथ मिलकर सरकार चला रहे उमर की अत्यंत जोश में भरी इस मांग को भाव देते हुए ही उक्त कदम उठाया था। पर अब्दुल्ला ने राज्य में चल रही पाकिस्तानी घुसपैठ को नजरंदाज करते हुए और इस संवेदनशील राज्य के भौगोलिक स्थिति की और ध्यान न देते हुए सिर्फ आर्थिक विकास के नाम पर राज्य से सभी केन्द्रीय बलों को हटाने पर जोर दिया। उनकी इस बचकानी मानी जा रही मांग को केंद्र सरकार ने भी राजनैतिक कारणों से मान लिया। अब उसके परिणाम सामने आने लगे हैं। हैरानी तो इस बात की है कि बड़े आतंकवादी हमले की खुफिया सूचना दी जाने के बावजूद यह घटना हो जाने से साफ संकेत मिलते हैं कि उच्च स्तर पर सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता का अभाव है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस ओर गंभीर प्रयास किए जाने की नितांत व तुरंत आवश्यक हैं। ( मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat )

बुधवार, 6 जनवरी 2010

शिक्षा के अधिकार की अनदेखी

अनेकों रास्तों से होकर संसद की मंजूरी लेने वाले शिक्षा के अधिकार से सम्बंधित बिल की अधिसूचना अभीतक जारी न होने से सरकार की मंशा पर सवालिया निशाँ लगना स्वाभाविक है। आज देश में अनगिनत बच्चे पढाई की उम्र में अपने माँ-बाप के साठ काम में हाथ बंटाने को विवश हैं अथवा परिवार की आमदनी बढाने के लिए बेगार या कम पगार पर काम करने को मजबूर हैं। ऐसे में अधिसूचना के अभाव में इस बिल के प्रभावी होने की तिथि को निश्चित नहीं किया जा सकता और इस कारण नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा की बात ही बेमानी हो जाती है। इस संबंधी अधिसूचना जारी न किए जाने का कारण यह दिया जा रहा है कि मौलिक अधिकारों को लागू करने का नियम नहीं है। इसके लागत को लेकर चर्चा आदि में ही ७ साल का वक़्त लागा देने के बाद भी अधिसूचना की दिशा में कोई कदम उठाने के प्रति कोई सुगबुगाहट दिख नहीं रही है। हमारे मानव संसाधन मंत्री कपिल सब्बल यह तो कहते रहे हैं कि इस शिक्षा के अधिकार से सम्बंधित aधिनियम से शिक्षा का चेहरा पूर्णतबदल जाएगा क्योंकि कानूनी रूप के अभाव में यह अधिनियम ही लागू नहीं हो पाएगा।
(मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

शुभ नववर्ष

नित नई खुशियां नित नए आयाम , लेकर आए नववर्ष नए तमाम ।
नित पुलकित हो जीवन फुलवारी, ये कामना है अनवरत सदा हमारी।
नवचेतन मन हो सब ओर सुरभित, सदा मिले प्रियजन मन कुसुमित।
हर पग चले प्रगतिपथ पर सँभल, प्रगति के संग चले सौहार्द अविरल।
भर खुशियाँ आँगन सदा इतराए, आने वाला हर कोई निहाल हो जाए।
पलपल खुशियाँ बदलें सालों में, ये पल बने रहें सदा वर्ष आने वालों में।
(मेरा ब्लॉग parat dar parat भी देखें )