गुरुवार, 19 नवंबर 2009
शशि थरूर बड़बोले न बनें
हमारे देश के विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर अपने आपको जरूरत से ज्यादा समझदार व होशियार समझनेके चक्कर में अक्सर विवादों में घिरे रहते हैं। ऐसा लगता है की उनको अपनी विवादित छवि बनाए रखने का चस्का सा पड़ा गया है। अब वे एक नए विवाद को यह कहकर जन्म दे चुके हैं कि वन्देमातरम का गायन करना किसी के लिए जरूरी नहीं है। इसे गाना या न गाना अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। इसे गाने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। नौकरशाहों की तरह बात करने की अपनी आदत को न छोड़ पाने के कारण वे एक अच्छे राजनेता तो क्या ठीक से नेता कहलाए जाने लायक भी नहीं हैं।अब उन्हें कौन समझाए कि वंदे मातरम देश की आजादी के संघर्ष से जुड़ा देशवासियों का भावनात्मक प्रवाह है जो अपनी मातृभूमि की प्रशंसा व उसके प्रति अपना आदरभाव प्रकट करने के लिए समस्त देशवासियों का नारा बना हुआ था। तब न तो उलेमाओं के फतवे थे और न ही शशि थरूर जैसे नौसीखिए नेता के स्वयंभू विचारक वाले विचारों का बेमतलब व असामयिक प्रकटीकरण। हम एक कहावत सुनते आ रहे हैं बचपन से ही कि आवश्यकता से अधिक व बेमतलब बोलने वाले की मूर्खता छिपी नहीं रह सकती। बेहतर हो यदि शशि थरूर चुप रहते हुए राजनीति सीखें और फिर समय आने पर मतलब की बात कहने की आदत डालें।(also read my blog: parat dar parat)
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shahsi tharoor is not able to get rid of his image of a bureaucrat,so there is nothing new in his words abot vande matram
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