मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

झारखंड का सच

चंडीगढ़ से प्रकाशित आज के दैनिक ट्रिब्यून में झारखंड में सरकार बनाने के लिए खंडित जनादेश में से ही कोई रास्ता निकाले जाने पर भाजपा व झारखंड मुक्ति मोर्चा के नए गठबंधन पर अवसरवाद की मुहर लगाने की कोशिश करते हुए भूतकाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने पर बीजेपी द्वारा संसद में मचाए गए हो हल्ले का जिक्र किया गया है। जबकि टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर अपने दृष्टिकोण में इसे स्थायी सरकार देने के लिए प्राथमिकता बताया है। यदि देखा जाए तो अब तक का इतिहास बताता है कि राजनीति में न कोई किसी का स्थायी शत्रु होता है और न ही स्थायी मित्र। अभी हाल में हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए इसी तरह का फार्मूला अपनाया गया। यहाँ तो अपनी एक विरोधी पार्टी के छः में से पांच विधायकों से ही पाला बदल करवा लिया गया। इसके पीछे उस पार्टी के संरक्षक द्वारा बहुत पहले की गयी इसी तरह की कार्रवाई को ढाल बनाया गया । चाहे जो हो, खंडित जनादेश मिलने की अवस्था में राजनैतिक दलों को कुछ न कुछ तो रास्ता निकालना ही पड़ता है, सरकार बनाने व इसे चलाने का। अब जनता भी क्या करे। एक ही राज्य में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए दलों व निर्दलियों में से चुनाव करना होता है। जिस प्रत्याशी की जहां बात बन गयी वही अपना भाव बताने लगता है। राजनैतिक विवशता के चलते ऐसे नेताओं की पौबारह हो जाती है।अब दीं ईमान तो कहीं रह नहीं गया है। जनता की यादास्त भी अगले चुनाव तक कई कारणों से धूमिल हो जाती है और इसी कारण काठ की हांडी बा-बार चढ़ जाती है। (मेरा अन्य ब्लॉग है:parat dar parat)

रविवार, 27 दिसंबर 2009

ये चुलबुले अफसर व राजनेता

आजकल हरियाणा के पूर्व डी.जी.पी.शंभू प्रसाद सिंह राठौड़ को अवयस्क बालिका रुचिका से छेड़छाड़ के मामले में १९ बरस के लम्बे अरसे के बाद मिली केवल छः माह की कैद व मात्र एक हजार रूपए के हास्यास्पद जुर्माने के विरुद्ध जनमानस को उद्वेलित व भयभीत करने वाली स्थिति बन जाने के कारण देशभर में पुलिस व राजनेताओं की मिलीभगत का विरोध करने हेतु सभी आयुवर्ग के व्यक्ति व बच्चे सडकों पर उतर आए हैं। उनका यह जनांदोलन बेशक शांतिपूर्ण है और धीरे-धीरे जोर पकड़ता जा रहा है। इसीकारण भारत सरकार व हरियाणा सरकार ने अपनी कुम्भकरणी नींद को तोड़ते हुए इस ओर ध्यान देते हुए राठौड़ से उनके पदक वापस लेने व पेंशन में कटौती करने के लिए कदम उठाने की बात कही है तथा मामले की नए सिरे से जांच कराने के संकेत दिए हैं। हरियाणा के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों व उच्च न्यायालय के एक जज की भूमिका पर भी ऊंगली उठी है। इसके साथ ही न्याय किए जाने में हुई देरी पर भी सबकी भौंहें तनी हैं।
अभी इस शर्मसार कर देने वाले वाकये से लोग उबर भी नहीं पाए थे कि आंध्रप्रदेश के राज्यपाल व उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री नारायणदत्त तिवारी की इश्कमिजाजी का कच्चा चिट्ठा सामने आ गया और उनहोंने बर्खास्त किए जाने से पहले ही अपने पद से स्वास्थ्य के आधार पर त्यागपत्र दे दिया। तिवारी एक सशक्त व कद्दावर राजनेता रहे हैं। उनकी महत्वाकांक्षा इसी से स्पष्ट होती है कि उन्होंने एक बार एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह के साथ मिलकर कांग्रेस को छोड़कर कांग्रेस(तिवारी) के नाम से अलग पार्टी बनाई थी।यह बात अलग है कि बाद में लौट के बुद्धू घर को आ गए थे।
यही कारण है कि राजनेता व अफसरशाह एक दूसरे के कुकृत्यों पर इसलिए पर्दा डालते रहते हैं कि आने वाले समय में " ऊष्ट्रानाम विवाहोस्ति, गर्दभा: गीत गायका:" की तर्ज पर एक दूसरे को पाकसाफ bataayaa जा सके। हमारे देश में लोकतंत्र का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। वरना इस तरह के कुकृत्य कराने वाले अधिकारी व नेता अपने पद पर बने रहने के लायक नहीं रह जाते और आम आदमी की तरह ही उन्हें भी कड़ी से कड़ी सजा मिल जानी चाहिए थी ताकि भविष्य में कोई इस तरह का दु:साहस न कर पाए। (मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

खंडित जनादेश के मायने

अभी कुछ समय पहले हरियाणा,महाराष्ट्र में संपन्न चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट जनादेश न मिलनेके कारण विधायकों की खरीद-फ़रोख्त के आरोपों के बीच सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत जुटाकर कांग्रेस ने दोनों ही जगह सरकार बना ली थीं । उन आरोपों की स्याही भी ठीक से नहीं सूखी थी कि अब झारखंड में भी जनता ने खंडित जनादेश देकर भानुमती के कुनबे की तरह बिखरे राजनैतिक दलों को जमा घटा में फिर से उलझने को मजबूर कर दिया है। जनता भी क्या करे। एक-एक राज्य में कई कई तरह के दल और निर्दलीय अलग। अब किसे किसे वोट दें। बस जिसका जहां दबदबा है, वह वहीं से कुछ सीटें जीतकर मोलभाव करने लगता है। जनता इतनी भोली कि भूल जाती है उनकी अतीत की करतूतों को और गाम-गोत ,जात-बिरादरी के चक्कर में फंस जाती है। इसी ऊहापोह में सही निर्णय लेने की सुधबुध नहीं रहती और जिसको जो भाया उसके पक्ष में मतदान कर देते हैं।चुने गए प्रतिनिधि यह भूलकर कि किससे उनकी विचारधारा(अगर है ) मेल खाती है और किससे नहीं; बस सत्ता के मोह में फंसकर गठबंधन कर सत्तासीन हो जाते हैं। ऐसा ही अब फिर होने जा रहा है। इस तरह के सिद्धांतहीन गठबंधन जनता का नहीं, अपना हित व अपना कल्याण करते हुए भ्रष्टाचार की किश्ती में सवार होकर निरंतर लक्ष्मी जी की कृपा के पात्र बनते जाते हैं और एक बार सत्तासीन होने पर अपनी पीढ़ियों का जुगाड़ कर लेते है। गाम-गुवान्ढ़ तथा रिश्तेदारों के भी पौबारह कर ही देते हैं। मतदाता फिर ठगा-सा रह जाता है-बेबस और लाचार। यही होने जा रहा है अब फिर। चाहे थोड़े दिन के लिए ही सही।
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मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

भ्रष्टाचार का दानव कैसे भागे

आज देश में भ्रष्टाचार का चहुँ ओर बोलबाला है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। इसके बावजूद कोई भी इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है कि वह स्वयं भी इसका एक हिस्सा है। यही बड़ी विडम्बना है। जबतक आपको किसी अपने नए पुराने साथी से कोई काम नहीं पड़ता है तभीतक वह आपके लिए स्वच्छ व बेदाग़ छवि वाला है। एक बार काम पड़ गया और उसे लगा कि उसका सच आपके सामने आ जाएगा या उसके भ्रष्ट आचरण से कमाए जा रहे धन में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सेंध लग जाएगी तो अनेक तरह से आपको टरकाने की कोशिश की जाएगी और उलटा आप पर ही कोई लांछन भी लगाया जा सकता है भ्रष्ट होने का।इसमें वह अकेला नहीं ,सारे वे जो इस हमाम में नंगे हैं,एक जुट हो जाएंगे।यदि आप इस वहम में हैं कि उनके उच्चाधिकारियों को शिकायत करके उनपर नकेल डलवा देंगे तो इस खुशफहमी से बाहर आइए क्योंकि सेटिंग नीचे से ऊपर तक है। बहुत सारे रास्ते निकाल लेते हैं ये भ्रष्ट अपने द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को जायज ठहराने की दिशा में । यही हमारे लोकतन्त्र का कोढ़ है जिसे हम सब किसी न किसी रूप में लिए फिर रहे हैं। इससे छुटकारा मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि पूरी की पूरी व्यवस्था इसके शिकंजे में है।ईमानदार बस कुढ़कर रह जाते हैं अथवा इन भ्रष्टों के कुचक्र में फंसकर अपनी ईमानदारी का खामियाजा भुगतने को मजबूर हो जाते हैं। राजव्यवस्था से लेकर समाज व शासन व्यवस्था तक भ्रष्ट हो चुकी है। न्याय व्यवस्था तक में भ्रष्ट तत्व पाए जाने से खुद न्यायपालिका शर्मसार है। चौथा स्तम्भ भी ब्लैकमेलिंग के कुचक्र रचाने वालों की घुसपैठ से नहीं बचा रह पाया है। एक क्रान्ति की जरूरत है,जबरदस्त क्रान्ति की, जिसमें भ्रष्टाचार का दानव व इसके पोषक धराशायी हो जाएंगे और एक नए युग का सूत्रपात होगा। लेकिन इसके लिए क्रान्ति के अग्रदूत की अभीहाल जरूरत है। (मेरा अन्य ब्लॉग है:paratdarparat)

मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

samvedanshoonyataa

it is very sad that only a few members of parliament turned up to offer tribute to the martyrs of attack by terrorist on the parlaiment of india. this shows the sanvedanheenta among our leaders whom we have elected to run our country. it is strange enough that they promise to take the nation in the forefront of progress,development and forwardness. is it a trailer of their future plans or an apathy towards those who laid their lives on the altar of the motherland and thus saved the honour of the country. very sad,very disgusting and shameful.

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

एक घाव भरने वाली सार्थक पहल

गत दिनों गुडगाँव के सोहना कस्बे में बिलाल नामक दूधिए की हत्या से हतप्रभ आसपास के गांवों के लोग इस मामले के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए लामबद्ध होकर सोहना कस्बे में एक सर्वजातीय पंचायत का आयोजन किया गया। इसमें आसपास के लगाभाग एक सौ गांवों के पंचायती शामिल हुए। इसमें एकमत से निर्णय लिया गया की हत्यारोपियों को पीड़ितों के लिए ७५ लाख रूपए का मुआवजा देना होगा जोकि पीड़ितों में बाँट दिया जाए। यह एक सराहनीय कदम है हरियाणा की जमीन से, जहाँ तथाकथित सर्वजातीय पंचायातियों के कारनामों से देश दुनिया में हरियाणा को एक दकियानूस छवि वाला एवं मध्यकालीन सोच वाला प्रदेश कहा जाने लगा था। इस तरह के कार्यक्रम चलते रहने चाहियें और इनका व्यापक संदेश समाज में फैलाया जाना चाहिए।
(मेरा अन्य ब्लॉग parat dar paratहै )