बुधवार, 11 नवंबर 2009

महाराष्ट्र विधानसभा में संविधान का मखौल

गत कई दिनों से संचार माध्यम इस समाचार व उसपर विभिन्न राजनैतिक दलों व प्रबुद्धजनों की तीखी प्रतिक्रियाओं से अंटे पड़े हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा में एक विधायक द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर एक क्षेत्रीय दल के विधायकों ने उसके साथ बदतमीजी व मारपीट की । बात बहुत दुर्भाग्य पूर्ण भी है और निराशाजनक भी ,क्योंकि संविधान की रखवाली के लिए चुने गए लोगों ने ही संविधान के प्रति शपथ लेकर यह कुकृत्य किया है। कुछ निहित राजनीतिक विवशताओं व स्वार्थों के चलते ऐसे हुडदंगियोंको उकसाने की बात कही है जो की गले नहीं उतरती, क्योंकि विधानसभा की गरिमा के अनुकूल व्यवहार करते हुए ही उकसाहट वाली हरकत का विरोध किया जाता तो बात कुछ और होती। यहां तो देश की भाषा में ही शपथ लेने से रोकने के पूर्वाग्रह से ग्रस्त मनसे नेताओं ने अपने सिरफिरे अगुआ के नेतृत्वमें पहले ही इस बारे में अपना मंतव्य बता दिया था कि उन्हें संविधान में उल्लिखित सभी भाषाओं में से सिर्फ मराठी ही स्वीकार्य है , अन्य कोई नहीं। उन्हें अपने लिए सिर्फ इस तरह कहने की छूट हो सकती है कि वे मराठी में ही शपथ लेंगे, लेकिन यदि कोई राष्ट्रीय कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकृत व देश की राष्ट्रीय भाषा में शपथ ले तो इन्हें उसे रोकने का कोई संवैधानिक व नैतिक अधिकार नहीं। वे यह भूल जाते हैं कि भारत देश किसी एक प्रांत के लोगों का नहीं है। अकेले मराठियों के लिए या अकेले मराठियों द्वारा मुम्बई या महाराष्ट्र के अन्य शहरों का विकास नहीं किया। देश के सभी भागों से आए गैर मराठियों का योगदान भी उतना ही है। अत: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना महाराष्ट्र को केवल अपना व मराठी को अपनी ही बपौती समझने की भूल न करे तो अच्छा है।फिर भी यदि आप चाहते हैं कि दूसरे आपकी माँ का सम्मान करें तो अपनी माँ की बड़ी बहन हिन्दी व उसकी सहोदरा अन्य भाषाओं का सम्मान करना सीखें।

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