मंगलवार, 24 मई 2011

अधिग्रहण उपजाऊ जमीन का नहीं बेकार की जमीन का हो

हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हूडा ने उत्तर प्रदेश के किसानों को उनकी अधिग्रहीत भूमि का उचित मुआवजा न देने के कारण पिछले दिनों वहां की सरकार को काफी खरी खोटी सुनाई थी। अब उसी तरह के आन्दोलन पर चल रहे हरियाणा के अम्बाला व सोनीपत तथा सिरसा जिलों के लोगों ने संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। सरकार की ओर से उनसे किस तरह से निपटा जाता है यह तो वक्त ही बता पाएगा, लेकिन औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत की कहावत को चरितार्थ करते हुए इस किसान पुत्र ने क्या अबतक यह भी नहीं तय किया था कि अधिग्रहीत उपजाऊ जमीन का मुआवजा भी तो भरपूर दिया जाना चाहिए था। उद्योगों के लिए जमीन के अधिग्रहण को सही बताने वाले मुख्यमंत्री को यह तो पता होगा ही कि उपजाऊ जमीन पर उद्योग स्थापित करके वे राज्य को दोहरा नुकसान पहुँचाने पर क्यों तुले हैं। यह सही है कि उद्योग देश की अर्थव्यवस्था की जान होते हैं; लेकिन इनके लिए बंजर पडी जमीन की ओर भी तो ध्यान दिया जा सकता है।। इससे बेकार पडी जमीन का उपयोग भी हो जाएगा और उपजाऊ जमीन पर पेट भरने के लिए अन्न भी मिलता रहेगा। उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण करके क्या सरकार अंडे खाने को बढ़ावा देना चाहती है? अथवा बढ़ती जनसंख्या के उदर को भरने का कुछ और विकल्प ढूंढ लिया है तो उसे स्पष्ट करे।

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