शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार और नैतिकता

देश में तरह तरह के भ्रष्टाचार के मामले सामने आते देखकर ऐसा लगता है कि हमारा पूरा का पूरा तंत्र ही चरमरा गया है। नैतिकता जैसी बातें केवल आदर्शों के साथ दम तोड़ चुकी हैं। स्वार्थ पिपासा इतनी बढ़ गयी है कि पैसा सबसे बड़ा हो गया है। न तो किसी के लिए किसी के पास समय है और न ही अपने और पराए का भेद ही नजर अत है। बस पैसे के साथ ही अपनापन है और पैसे के बिना सब परायापन नजर आता है। मन अपने दूध की कीमत मांग लेती है और बेटा अपने द्वारा माँ के लिए किए काम की मजदूरी अथवा फीस मांग रहा है।कैसा कलियुग अ गया है। अब आगे क्या होगा, कौन जाने । लेकिन इसी दिशा में हुआ तो निश्चित रूप से अनिष्टकारक और कष्टदायक तो होना तय है।

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