बुधवार, 27 अप्रैल 2011

प्रकृति के साथ मिलकर चलने में ही स्वास्थ्य है.

स्वास्थ्य के प्रति लोगों का नजरिया निरंतर बदलता रहता है। पहले लोग स्वास्थ्य के रक्षण के लिए प्रकृति के ज्यादा से ज्यादा करीब रहने की कोशिश किया करते थे। आज प्रकृति से दूर होते जा रहे मानव ने अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के भ्रम को दवाइयों व शल्य चिकित्सा में ढूंढना शुरू किया हुआ है। प्रकृति के अनुकूल अपनी प्रवृति को ढलने की खिल्ली उड़ाने वाले यह भूल जाते हैं कि यह प्रकृति ही है, जिसको लाख जतनों के बावजूद किसी भी तरह की सीमा में बांधना असंभव है। जितनी इलाज बढे उससे अधिक रोग बढे। यह सिलसिला अब भी निर्बाध जरी है। और यों ही चलता रहेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें