सोमवार, 23 अप्रैल 2012

bhrasht ko bhrasht kaha to....

भ्रष्ट शासन व्यवस्था में रहते हुए भ्रष्टाचार के  खिलाफ  आन्दोलन  चलाने का परिणाम बाबा रामदेव  और अन्ना हजारे से बेहतर कौन जान सकता है। बाबा के संगठन में फूट डालने के सभी प्रयास विफल होते देख आधी रात को दिल्ली पुलिस की मदद से बाबा को ही उठवा लिया गया। बुजुर्गों एवं महिलाओं तक को नहीं बख्शा गया। उन्हें बड़ी बेरहमी के साथ धरना स्थल से खदेड़ा गया। इधर अन्ना की गांधीगिरी के सामने अपने आपको बेबस महसूस करते हुए सरकार ने नया दांव खेला और अग्निवेश जैसे अवसरवादी को उनसे अलग कर दिया तथा उससे अन्ना के बारे में अनाप शनाप कहलवाया गया। फिर उनके एक सहायक को को अलग किया गया। बाद में अन्ना टीम के सदस्यों के बीच मनमुटाव को तूल देने की भरपूर कोशिश की गयी। कई सदस्यों को उसी तरह घेरने की चालें चली गयी. ऐसी ही चाल बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के विरुद्ध भी रची गयी थी। अब टीम अन्ना के ही सदस्य मौलाना काज़मी को पाला बदल कराकर अपने सुरों में बोलने के लिए तैयार कर लिया गया । टीम अन्ना हो या बाबा रामदेव का संगठन आपसी विचार कहीं न कहीं मेल न खाना स्वाभाविक है। क्या सरकार में बैठे सभी लोगों के बीच मतभेद नहीं हैं। होते हैं। स्वाभाविक है यह। फिर टीम अन्ना के लोगों के बीच के मतभेद ही क्यों उछाले जाते हैं। साफ बात है भ्रष्ट शासन में सत्ता में बैठे लोग अपने बचाव के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। साम दाम दंड भेद में से कीई भी साधन अपना सकते हैं। वही हो रहा है।

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