रविवार, 27 दिसंबर 2009

ये चुलबुले अफसर व राजनेता

आजकल हरियाणा के पूर्व डी.जी.पी.शंभू प्रसाद सिंह राठौड़ को अवयस्क बालिका रुचिका से छेड़छाड़ के मामले में १९ बरस के लम्बे अरसे के बाद मिली केवल छः माह की कैद व मात्र एक हजार रूपए के हास्यास्पद जुर्माने के विरुद्ध जनमानस को उद्वेलित व भयभीत करने वाली स्थिति बन जाने के कारण देशभर में पुलिस व राजनेताओं की मिलीभगत का विरोध करने हेतु सभी आयुवर्ग के व्यक्ति व बच्चे सडकों पर उतर आए हैं। उनका यह जनांदोलन बेशक शांतिपूर्ण है और धीरे-धीरे जोर पकड़ता जा रहा है। इसीकारण भारत सरकार व हरियाणा सरकार ने अपनी कुम्भकरणी नींद को तोड़ते हुए इस ओर ध्यान देते हुए राठौड़ से उनके पदक वापस लेने व पेंशन में कटौती करने के लिए कदम उठाने की बात कही है तथा मामले की नए सिरे से जांच कराने के संकेत दिए हैं। हरियाणा के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों व उच्च न्यायालय के एक जज की भूमिका पर भी ऊंगली उठी है। इसके साथ ही न्याय किए जाने में हुई देरी पर भी सबकी भौंहें तनी हैं।
अभी इस शर्मसार कर देने वाले वाकये से लोग उबर भी नहीं पाए थे कि आंध्रप्रदेश के राज्यपाल व उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री नारायणदत्त तिवारी की इश्कमिजाजी का कच्चा चिट्ठा सामने आ गया और उनहोंने बर्खास्त किए जाने से पहले ही अपने पद से स्वास्थ्य के आधार पर त्यागपत्र दे दिया। तिवारी एक सशक्त व कद्दावर राजनेता रहे हैं। उनकी महत्वाकांक्षा इसी से स्पष्ट होती है कि उन्होंने एक बार एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह के साथ मिलकर कांग्रेस को छोड़कर कांग्रेस(तिवारी) के नाम से अलग पार्टी बनाई थी।यह बात अलग है कि बाद में लौट के बुद्धू घर को आ गए थे।
यही कारण है कि राजनेता व अफसरशाह एक दूसरे के कुकृत्यों पर इसलिए पर्दा डालते रहते हैं कि आने वाले समय में " ऊष्ट्रानाम विवाहोस्ति, गर्दभा: गीत गायका:" की तर्ज पर एक दूसरे को पाकसाफ bataayaa जा सके। हमारे देश में लोकतंत्र का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। वरना इस तरह के कुकृत्य कराने वाले अधिकारी व नेता अपने पद पर बने रहने के लायक नहीं रह जाते और आम आदमी की तरह ही उन्हें भी कड़ी से कड़ी सजा मिल जानी चाहिए थी ताकि भविष्य में कोई इस तरह का दु:साहस न कर पाए। (मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)

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