शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

खंडित जनादेश के मायने

अभी कुछ समय पहले हरियाणा,महाराष्ट्र में संपन्न चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट जनादेश न मिलनेके कारण विधायकों की खरीद-फ़रोख्त के आरोपों के बीच सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत जुटाकर कांग्रेस ने दोनों ही जगह सरकार बना ली थीं । उन आरोपों की स्याही भी ठीक से नहीं सूखी थी कि अब झारखंड में भी जनता ने खंडित जनादेश देकर भानुमती के कुनबे की तरह बिखरे राजनैतिक दलों को जमा घटा में फिर से उलझने को मजबूर कर दिया है। जनता भी क्या करे। एक-एक राज्य में कई कई तरह के दल और निर्दलीय अलग। अब किसे किसे वोट दें। बस जिसका जहां दबदबा है, वह वहीं से कुछ सीटें जीतकर मोलभाव करने लगता है। जनता इतनी भोली कि भूल जाती है उनकी अतीत की करतूतों को और गाम-गोत ,जात-बिरादरी के चक्कर में फंस जाती है। इसी ऊहापोह में सही निर्णय लेने की सुधबुध नहीं रहती और जिसको जो भाया उसके पक्ष में मतदान कर देते हैं।चुने गए प्रतिनिधि यह भूलकर कि किससे उनकी विचारधारा(अगर है ) मेल खाती है और किससे नहीं; बस सत्ता के मोह में फंसकर गठबंधन कर सत्तासीन हो जाते हैं। ऐसा ही अब फिर होने जा रहा है। इस तरह के सिद्धांतहीन गठबंधन जनता का नहीं, अपना हित व अपना कल्याण करते हुए भ्रष्टाचार की किश्ती में सवार होकर निरंतर लक्ष्मी जी की कृपा के पात्र बनते जाते हैं और एक बार सत्तासीन होने पर अपनी पीढ़ियों का जुगाड़ कर लेते है। गाम-गुवान्ढ़ तथा रिश्तेदारों के भी पौबारह कर ही देते हैं। मतदाता फिर ठगा-सा रह जाता है-बेबस और लाचार। यही होने जा रहा है अब फिर। चाहे थोड़े दिन के लिए ही सही।
(मेरा अन्य ब्लॉग है:parat dar parat)

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