मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

भ्रष्टाचार का दानव कैसे भागे

आज देश में भ्रष्टाचार का चहुँ ओर बोलबाला है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। इसके बावजूद कोई भी इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है कि वह स्वयं भी इसका एक हिस्सा है। यही बड़ी विडम्बना है। जबतक आपको किसी अपने नए पुराने साथी से कोई काम नहीं पड़ता है तभीतक वह आपके लिए स्वच्छ व बेदाग़ छवि वाला है। एक बार काम पड़ गया और उसे लगा कि उसका सच आपके सामने आ जाएगा या उसके भ्रष्ट आचरण से कमाए जा रहे धन में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सेंध लग जाएगी तो अनेक तरह से आपको टरकाने की कोशिश की जाएगी और उलटा आप पर ही कोई लांछन भी लगाया जा सकता है भ्रष्ट होने का।इसमें वह अकेला नहीं ,सारे वे जो इस हमाम में नंगे हैं,एक जुट हो जाएंगे।यदि आप इस वहम में हैं कि उनके उच्चाधिकारियों को शिकायत करके उनपर नकेल डलवा देंगे तो इस खुशफहमी से बाहर आइए क्योंकि सेटिंग नीचे से ऊपर तक है। बहुत सारे रास्ते निकाल लेते हैं ये भ्रष्ट अपने द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को जायज ठहराने की दिशा में । यही हमारे लोकतन्त्र का कोढ़ है जिसे हम सब किसी न किसी रूप में लिए फिर रहे हैं। इससे छुटकारा मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि पूरी की पूरी व्यवस्था इसके शिकंजे में है।ईमानदार बस कुढ़कर रह जाते हैं अथवा इन भ्रष्टों के कुचक्र में फंसकर अपनी ईमानदारी का खामियाजा भुगतने को मजबूर हो जाते हैं। राजव्यवस्था से लेकर समाज व शासन व्यवस्था तक भ्रष्ट हो चुकी है। न्याय व्यवस्था तक में भ्रष्ट तत्व पाए जाने से खुद न्यायपालिका शर्मसार है। चौथा स्तम्भ भी ब्लैकमेलिंग के कुचक्र रचाने वालों की घुसपैठ से नहीं बचा रह पाया है। एक क्रान्ति की जरूरत है,जबरदस्त क्रान्ति की, जिसमें भ्रष्टाचार का दानव व इसके पोषक धराशायी हो जाएंगे और एक नए युग का सूत्रपात होगा। लेकिन इसके लिए क्रान्ति के अग्रदूत की अभीहाल जरूरत है। (मेरा अन्य ब्लॉग है:paratdarparat)

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