शनिवार, 7 मई 2011
रेल सड़क व वायु दुर्घटनाएँ
सड़क हादसों में रोजाना न जाने कितनी जानें जा रही हैं। रेल व सड़क दोनों के साथ-साथ वायु दुर्घटनाएँ भी मौत के दूत बनाकर उभर रहे हैं। यह चिंता के साथ-साथ चिंतन का विषय है। इसे सहज रूप में न लेकर इसके कारणों और निवारणों पर मंथन किया जाना अपेक्षित है। तत्पश्चात कोई ऐसी ठोस व कारगर नीति बनाई जानी जरूरी है जिसमें खामियों को जगह न मिल पे। यह बात अलग है कि कोई भी योजना अथवा नीति पूरी तरह त्रुटि रहित नहीं होती। उसमें हमेशा सुधर की गुंजायश बनी रहती है। इसलिए वर्तमान नीति की कमियों पर गौर करते हुए उन्हें दूर करने के लिए और हादसों की इंतज़ार न कर तुरंत कारगर कदम उठाए जाने चाहिएं। लालफीताशाही में न उलझ कर नीतियों को कार्यरूप देने में ढील कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। एक-एक आदमी की जन कितनी कीअती है यह तो वही जन सकते हैं जिनके घर से व्यक्ति इस तरह की दुर्घटनाओं में काल का ग्रास बन गया हो। देश के दूरदराज के क्षेत्रों में जन गंवाने वाले भी इन्सान ही होते हैं। उनके भी परिवार हैं, रिश्तेदार हैं। उनकी भी घर पर प्रतीक्षा होती है। उनको भी प्यार करने वाले व चाहने वाले होते हैं।
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