अनेकों रास्तों से होकर संसद की मंजूरी लेने वाले शिक्षा के अधिकार से सम्बंधित बिल की अधिसूचना अभीतक जारी न होने से सरकार की मंशा पर सवालिया निशाँ लगना स्वाभाविक है। आज देश में अनगिनत बच्चे पढाई की उम्र में अपने माँ-बाप के साठ काम में हाथ बंटाने को विवश हैं अथवा परिवार की आमदनी बढाने के लिए बेगार या कम पगार पर काम करने को मजबूर हैं। ऐसे में अधिसूचना के अभाव में इस बिल के प्रभावी होने की तिथि को निश्चित नहीं किया जा सकता और इस कारण नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा की बात ही बेमानी हो जाती है। इस संबंधी अधिसूचना जारी न किए जाने का कारण यह दिया जा रहा है कि मौलिक अधिकारों को लागू करने का नियम नहीं है। इसके लागत को लेकर चर्चा आदि में ही ७ साल का वक़्त लागा देने के बाद भी अधिसूचना की दिशा में कोई कदम उठाने के प्रति कोई सुगबुगाहट दिख नहीं रही है। हमारे मानव संसाधन मंत्री कपिल सब्बल यह तो कहते रहे हैं कि इस शिक्षा के अधिकार से सम्बंधित aधिनियम से शिक्षा का चेहरा पूर्णतबदल जाएगा क्योंकि कानूनी रूप के अभाव में यह अधिनियम ही लागू नहीं हो पाएगा।
(मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)
बुधवार, 6 जनवरी 2010
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