हरियाणवी बोली और आठवीं अनुसूची
अब इसे विडम्बना कहें या नेताओं की अपनी भाषा के प्रति उदासीनता कि अभी तक हरियाणवी बोली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए कोई विशेष सार्थक प्रयास नहीं किए गए हैं। कभी कभार इक्का दुक्का नेताओं ने इस बारे में आवाज उठाई तो, लेकिन बीच में ही उसे छोड़ दिया गया या इसे छुडवा दिया गया। आज फिर कुरुक्षेत्र के सांसद नवीन जिंदल ने इस बारे में आंकड़े देते हुए अपनी आवाज बुलंद की है। लोकसभा में इस बारे में बोलते हुए नवीन ने तथ्यात्मक जानकारी दी कि हरियाणा के साथ साथ हरियाणा से सटे उत्तर प्रदेश के जिलों, पंजाब व् राजस्थान के चार करोड़ से अधिक लोगों द्वारा यह भाषा बोली व् समझी जाती है। इस बारे में काफी महत्व का साहित्य भी प्राचीन कल सी रचा जा रहा है।उनकी इस मांग के बारे में सरकार की ओर से कहा गया कि यदि हरियाणा सरकार इस बारे में संस्तुति भेजती है तो उस पर विचार किया जाएगा। तो अभीतक राज्य सरकार इस बारे में सो रही थी अथवा उसे इस महत्ता के बारे में उसे जानकरी नहीं थी या फिर आधिकारियों की मर्जी के अनुसार नेतागण भी इस तरह के किसी भी प्रस्ताव से बचते रहे और संस्तुति नहीं कि गयी| अधिकारियों की उदासीनता तो समझ में कुछ हद तक इस कारण आ सकती है कि अभीतक हिन्दी के नाम पर नाक भौं सिकोड़ने वाले ये लोग एक नया पंगा क्यों लेते? लेकिन राजनेताओं की उदासीनता कतई समझ से परे है। अब भी नवीन जिंदल के साथ मिलकर इस बारे में आगे कदम बढाया जाए तो देर आये दुरुस्त आये के अनुसार आगे पहल की जा सकती है ।
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