मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
नारी और समाज
अब वह समय हवा हो गया जब नारी और चारदीवारी का साथ निरंतर बन रहता था। घर की चारदीवारी के बाहर की दुनिया से उनका नाता न के बराबर न होने की बातें कल्पना की चीज बन कर रह गयी हैं। नारी की स्वतंत्रता की बातें बड़े जोर शोर से उठ रही हैं। इनका असर भी चहुँ ओर दृष्टिगोचर हो रहा है। अपने हकों की लड़ाई लड़ने में नारियां पुरुषों को पछाड़ रही हैं। नारी रक्षा व नारी हितों की पैरवी करने वालों की बाढ़ सी आई हुई है। सरकारी स्तर पर भी महिला आयोग जैसी शक्तिसंपन्न संस्थाएं कार्यरत हैं। कई बार तो नारी की सहायता के नाम पर कुछ इस तरह की घटनाएं हो जाती हैं कि पुरुषों पर दया आने लगती है। नारी सम्मान के नाम पर कई बार बेगुनाह भी फंसा दी जाते हैं। ऐसे मामलों में व्यक्तिगत खुन्नस ज्यादा प्रभावी देखी जाती है। महिला उत्पीडन रोकने के लिए बनाए गए क़ानून अपने दुरुपयोग के कारण आलोचना का कारण बन रहे हैं। कानूनविदों को व सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना होगा।
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