शनिवार, 16 अप्रैल 2011
दिग्भ्रमित होती किशोरावस्था
आज बच्चे किशोरावस्था में पहुँचते पहुँचते काफी अडवांस हो रहे हैं। वे उन सभी अनुभवों को कर लेना चाहते हैं जो उन्हें युवावस्था में भी धीरे धीरे व संभालकर करने चाहिएं। इतना ही नहीं, इस अवस्था में वे कुछ तो ऐसी बातें भी स्वत: सीख रहे हैं जो कि युवावस्था में भी एक निश्चित अवस्था के बाद किए जाने का प्रावधान है। सैक्स के मामले में तो सारी हदें पर होती लग रही हैं। मन-मर्यादा को तक पर रखा कर नैतिकता को ठेंगा दिखाते हुए जो कुछ होरहा है उससे यह स्पष्ट लगाने लगा है कि इस अवस्था में किसी की परवाह करना उन्हें गवारा नहीं। इस कारन समाज में स्वेच्छाचार बढ़ रहा है। युवा पीढी दिग्भ्रमित हो रही है। वह दिशाहीन व दशाहीन होती जा रही है। परिवार बिखर रहे हैं। परम्पराएं दम तोड़ रही हैं। मर्यादाएं तहस नहस हो रही हैं। चरित्र के नाम को भुला देने जैसी स्थिति आती जा रही है। समाज में व्यभिचार तथा स्वेच्छाचार बढ़ रहा है। एन्जॉय करने के नाम पर सब तरह की वर्जनाएं टूट रही हैं।
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