बेरोजगारों से होता अन्याय
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि देश में लाखों बेरोजगारों को काम की तलाश है और देश को मानव शक्ति की निहायत जरुरत है। तिस पर भी न तो बेरोजगारों को रोजगार मिल पा रहा है और न ही देश को उपयुक्त मानवशक्ति। जो थोड़े बहुत रोजगार पा जाते हैं उनमें से अधिकतर सिफारिश या पैसा अथवा दोनों के सहारे इस काम को अंजाम देते पाए गए हैं। बाकी बचे बेरोजगारों को कुछ स्वार्थी व जालसाज लोग एक सुनियोजित तरीके से लूटने का षड्यंत्र रच लेते है। वे कभी प्राइवेट कम्पनी बनाकर तो कभी सरकारी एजेंसी से मिलते जुलते नाम से फर्जी कम्पनी बनाकर लाखों और कभी कभी तो करोड़ों रूपए ठग लेते हैं। न जाने कबतक चलता रहेगा यह सब?
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