हम न तो किसी को अपने से ज्यादा समझदार समझते हैं और न ही किसी को अपनी समझदारी में साझा करने देते हैं. किन्तु दूसरे समझदारों को हेय दृष्टि से देखन और उनकी समझदारी में हर वक्त साझेदारी करने तथा उस साझेदारी के बहाने उसे अपनी ही समझदारी मान लेने की एवं तदनुसार प्रचार व् प्रसार करने की अपनी कीय्त के कारन हम अनेक बार असमंजस की स्थिति में फंस जाते हैं. इस तरह हम न तो अपनी ही समझदारी को पूरी तरह विकसित होने देते हैं और न ही इसमें सुधार करने का ही प्रयास करते हैं.राजनीती में तो यह वायुरोग कुछ ज्यादा ही फैला हुआ है. एक से बढाकर एक धुरंधर भरे पड़े हैं और हर धुरंधर दूसरे को दिमागी रूप से दिवालिया घोषित करने में कोइ कसर नहीं छोड़ता है. कुल मिलकर इस हमाम में सभी नंगे हैं और दूसरे को शेम शेम कहे जा रहे हैं.मैं इस दौड़ में कई बार शामिल हुआ हूँ और अक्सर पिछड़ कर खड़ा देखता रहा हूँ. सच पूछो तो यों खड़ा होकर देखने में ज्यादा मजा आता है . इसीलिए अब तमाशा बनने की बजाय तमाशा देखने में ही जी लग गया है. - ईश्वर चन्द्र भारद्वाज
रविवार, 18 सितंबर 2011
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