आजकल लोग अपने मतलब को हल करने के लिए ज्यादा समय बर्बाद करने में विश्वास नहीं रखते हैं वे बस अपने मतलब की बात करते हैं और मतलब निकलते ही अपनी रह पकड़ लेते हैं किसी के पास इतना वक्त नहीं होता है कि वे दूसरे की बात भी सुन सकें और कोई उचित सलाह अथवा उत्तर दे दें लेकिन जब अपनी बारी आती है तो उन्हें दुनिया जहान से इस बात की शिकायत रहती है कि कोई उनकी मुश्किल को नहीं समझता , इसी तनाव में वे अपने आप में दुखी रहते हैं तथा दूसरों को कोसते रहते हैं वे नैतिकता का पाठ पूरी दुनिया को पढ़ाने लग जाते हैं और कदम कदम पर इसके झंडाबरदार होने का ढिंढोरा पीटने में अपनी शान समझते हैं वे यह भूल जाते हैं कि दूसरों की मुश्किल में वे स्वयं क्या करते रहे हैं
ईश्वर भारद्वाज (मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)
मंगलवार, 8 मार्च 2011
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