यह फैसला यों ही करना था तो?
हरियाणा की राजनीति वैसे तो आया राम गया राम का दंश शुरू से ही झेलती आ रही है, किन्तु वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा ने तो इसे महिमामंडित करने वाला फैसला देकर और भी किरकिरी करा दी है। वैसे शुऱू से ही लग रहा था कि हजकां की टिकट पर निर्वाचित जिन पांच विधायकों ने जनता व अपनी पार्टी के साथ धोखा करते हुए वर्तमान सरकार बनाने में जो भूमिका निभाई थी उसका प्रतिफल देने में हुडा के नेतृत्व में चल रही सरकार की पूरी मशीनरी एडी चोटी का जोर लगा देगी। इसी कारण विधान सभा के अध्यक्ष को बदला गया और अपने अधिक विश्वस्त को यह कुर्सी सौंपी गई,ताकि सभी दाँव पेच लड़ाकर इन पांचों को उपकृत किया जा सके। वैसे पहले विधानसभा अध्यक्ष ने भी मामले को लटकाकर रखने में कोई कमी नहीं छोडी थी। तभी तो उनको मंत्रिपद से नवाजा गया था ताकि आने वाला फैसला लेने में इस मेहरबानी को ध्यान में रखे। वैसे स्वर्गीय पंडित चिरंजीलाल जैसे जुझारू व स्वाभिमानी नेता के सुत से जनता को इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी।सीधी सी बात को कानून की चासनी में लपेटने की यह तरकीब पूरी तरह अनैतिक व जनविरोधी है। इसे मानना ही पड़ेगा। अध्यक्ष से निजी अथवा अपनी पार्टी के ही हितों के पक्ष में फैसला देने की अपेक्षा कोई नहीं करता होगा, पर यह फैसला दिया गया और वो भी न्यायालय के सख्त आदेशों के बाद वरना शायद पूरा कार्यकाल समाप्त होने तक इसे लटकाया भी जाता, ऐसी संभावना को नकारा नहीं जा सकता। यहां एक बात सीधी सी है कि अगर यही फैसला देना था तो इतना समय,धन बर्बाद करने की जरूरत नहीं थी। जनता अब इतनी भोली नहीम रह गई है की जिन्दा मक्खी को खा जाए।मेरे अन्य ब्लॉग हैं : parat dar parat & tau molad(haryanvi)
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