शराब को महफिल की रानी समझने वालों की आजकल पौबारह हैं। वे दिन निकलते ही इस अंगूर की बेटी की शरण में पहुंच जाते हैं। वे कहते हैं कि चुनाव बार-बार हों तथा एक समय पर एक ही चुनाव होने चाहिएं। वे ये भी कहते हैं कि इन चुनावों को लड़ने के लिए हर पैसे वाले जन को अपना भाग्य आजमाना चाहिए। आखिर उनका पैसा फिर कब काम आएगा? ये भी तो दान पुन ही मानते हैं ये पियक्कड़ वोटर । चुनाव बार-बार हों और हर चुनाव में पैसे वाले जन ज्यादा से ज्यादा संख्या में खड़े हों, यही तो सपना है इन सुरा सुन्दरी के कद्रदानों को। इनको अपने ग्राम, अपने इलाके या अपने राज्य अथवा देश से कुछ लेना देना नहीं रहता। विकास के नाम पर ये बस सुरा की किस्म व मात्रा में सुधार पर ध्यान देते हैं। इनपर ये कहावत बिलकुल फिट बैठती है कि कोई मरे कोई जीए, सुथरा घोल बताशा पिए।
(मेरा अन्य ब्लॉग है: parat dar parat)
शुक्रवार, 14 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
bahut sahi baat kahi...
जवाब देंहटाएं