मैं एक ग्रामीण क्षेत्र से सम्बन्ध रखता हूं जहां अधिकतर वयस्क अशिक्षित अथवा अल्प शिक्षित हैं। यह बात अलग है कि नव युवा पढाई के प्रति सजग हो रहे हैं और इस हेतु प्रयास भी कर रहे हैं। किन्तु उनमें ग्रामीण अल्हड़पन भरा पड़ा है। वे अपनी बोलचाल व आचार व्यवहार में परिष्कृत होने के कम ही प्रयास करते हैं। यदि उनको परिष्कृत करने के लिए कोई पहल होती है तो आसानी से उसके लिए कई ज्ञात-अज्ञात कारणों से तैयार नहीं होते। इनमें अपने अल्प ज्ञान को सम्पूर्ण व सही मानने की मानसिकता भी शामिल है। विशेषकर जब उनका कोई अपना यह शुरुआत करे। मैं कुछ ऐसा ही अनुभव कर रहा हूं क्योंकि मैंने अपने क्षेत्र में युवा वर्ग के लिए कुछ नवप्रयास करने की शुरुआत की है। कुछ को यह समझ नहीं आ रहा है और कुछ अपने ज्ञान के सामने इस प्रयास को कुछ खास नहीं मानने की मानसिकता से ग्रस्त हैं।यह उनके लिए अच्छा नहीं है। कई बार मैं अपने प्रयासों को गलत जगह की गयी शुरुआत भी सोचने को विवश होने लगता हूं लेकिन अगले ही पल मुझे अपनी इस कमजोरी पर तरस आने लगता है क्योंकि मैं औरों को जिस सबल मानसिकता सिखाने चला हूं वैसी मेरी अपनी तो पहले बने। यही विचार मुझे अपने प्रयास सतत रूप में जारी रखने को प्रेरित करता है।
(मेरा अन्य ब्लॉग है : parat dar parat)
गुरुवार, 4 मार्च 2010
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