मानव तेरी दुनिया में
मानव तेरी दुनिया में
यह क्या हो रहा है ;
एक ओर जलते भवन
बिकते जिस्म
दूसरी ओर राजनीति
जले घरों की राख पर
मरे जनों की लाश पर
एक तरफ भूख गरीबी
बहुमत में बदनसीबी
दूसरी तरफ विकास का ढिंढोरा
लगता है दिखावा कोरा
यहाँ भूख मिटाने को रोटी नहीं
नंगा तन ढकने को धोती नहीं
वहां खाने बहुत पर भूख नहीं
कपडे बहुत पर उनमें सलूक नहीं
कहीं प्रतिभा दम तोड़ रही
जवानियाँ बम फोड़ रहीं
कहीं खरीदी जा रही डिग्री
धन के आगे मानवता हिली
दंगे कहीं हो रहे धर्म के नाम पर
कर्णभेदी शोर है कर्म के नाम पर
कहीं धर्म की मर्यादा तोड़ते धर्मी
मिलें कुकर्मों में लिप्त शोरकर्मी
काम क्रोध लोभ मोह
त्यागने का उपदेश दे जो
इन्हीं विकारों में लिप्त वो
करें व्यर्थ उसी उपदेश को
मानवता की बात वो कर रहे
धर्मनिरपेक्षता का दम भर रहे
बाँट इंसानों को आज वो डटे हैं
दंगाइयों के सरताज जो बने हैं
किस किस को क्या क्या कहें
बेहतर है इतने में ही चुप रहें
हो चुकी जहाँ लाइलाज बीमारी है
वहां चुप रहना मजबूरी हमारी है
लेकिन मानव तेरी दुनिया की
ये हालत देखकर हताश हूँ
फिर भी तेरी असीम शक्ति को
जानते हुए मैं नहीं निराश हूँ.
-ईश्वर भरद्वाज
मानव तेरी दुनिया में
यह क्या हो रहा है ;
एक ओर जलते भवन
बिकते जिस्म
दूसरी ओर राजनीति
जले घरों की राख पर
मरे जनों की लाश पर
एक तरफ भूख गरीबी
बहुमत में बदनसीबी
दूसरी तरफ विकास का ढिंढोरा
लगता है दिखावा कोरा
यहाँ भूख मिटाने को रोटी नहीं
नंगा तन ढकने को धोती नहीं
वहां खाने बहुत पर भूख नहीं
कपडे बहुत पर उनमें सलूक नहीं
कहीं प्रतिभा दम तोड़ रही
जवानियाँ बम फोड़ रहीं
कहीं खरीदी जा रही डिग्री
धन के आगे मानवता हिली
दंगे कहीं हो रहे धर्म के नाम पर
कर्णभेदी शोर है कर्म के नाम पर
कहीं धर्म की मर्यादा तोड़ते धर्मी
मिलें कुकर्मों में लिप्त शोरकर्मी
काम क्रोध लोभ मोह
त्यागने का उपदेश दे जो
इन्हीं विकारों में लिप्त वो
करें व्यर्थ उसी उपदेश को
मानवता की बात वो कर रहे
धर्मनिरपेक्षता का दम भर रहे
बाँट इंसानों को आज वो डटे हैं
दंगाइयों के सरताज जो बने हैं
किस किस को क्या क्या कहें
बेहतर है इतने में ही चुप रहें
हो चुकी जहाँ लाइलाज बीमारी है
वहां चुप रहना मजबूरी हमारी है
लेकिन मानव तेरी दुनिया की
ये हालत देखकर हताश हूँ
फिर भी तेरी असीम शक्ति को
जानते हुए मैं नहीं निराश हूँ.
-ईश्वर भरद्वाज